दुनिया में वैसे तो कई विद्वान आए और गए, लेकिन उनमें से कुछ हमेशा-हमेशा के लिए अपने नाम इतिहास में दर्ज करवा गए। ऐसे ही एक महान विद्वान थे आर्यभट। गणित और खगोलशास्त्र (Astronomy) के विद्वान थे आर्यभट। इन्होंने अपनी खोज से पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ाया था. भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गणित में अपना सीना चौड़ा करने का अवसर दिया था। तो आइए, देते हैं आपको Aryabhatta ka Jeevan Parichay के बारे में विस्तार से जानकारी।
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बचपन से ही थी सीखने की चाह
ऐसा माना जाता है कि आर्यभट का जन्म 476 में हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार आर्यभट का जन्म बिहार में पटना में हुआ था, जिसका प्राचीन नाम पाटलीपुत्र था, जिसके पास स्थित कुसुमपुर में उनका जन्म माना जाता हैं। बचपन से ही उनमें नई-नई चीज़ें करने और सीखने की ललक थी। Aryabhatta ka Jeevan Parichay में उनका बचपन नई-नई चीज़ें सीखने में ज्यादा रहा।
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शिक्षा में थे अव्वल
Aryabhatta ka Jeevan Parichay की बात की जाय तो आर्यभट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। आर्यभट ने मात्र 23 वर्ष की आयु में ‘आर्यभट्टीय’ नामक एक ग्रंथ लिखा था। उनके इस ग्रंथ की प्रसिद्ध और स्वीकृति के चलते राजा बुद्धगुप्त ने उनको नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था।
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आर्यभट के कार्य
आर्यभट ने गणित और खगोलशास्त्र जैसी कई रचनाएं की, इसमें से कुछ रचनाए खो चुकी हैं। लेकिन आज भी कई रचनाओं का प्रयोग किया जाता है, तो चलिए, Aryabhatta ka Jeevan Parichay में जानते हैं उनके प्रमुख कार्य।
आर्यभटीय
Aryabhatta ka Jeevan Parichay में यह आर्यभट की एक गणितीय रचना हैं, जिसमें अंकगणित (Arithmetic), बीजगणित (Algebra), त्रिकोंमिति (Trigonometry) का विस्तृत वर्णन हैं। वहीँ इसमें सतत भिन्न [Continued Fractions], द्विघात समीकरण [Quadratic Equations], ज्याओं की तालिका [Table of Sines], घात श्रृंखलाओं का योग [Sums of Power Series], आदि भी शामिल हैं।
आर्यभट के कार्यों का वर्णन इसी रचना [आर्यभटीय] से मिलता है। इसका यह नाम भी आर्यभट ने नहीं, बल्कि बाद के समीक्षकों ने यह नाम दिया। भास्कर प्रथम, जो आर्यभट के शिष्य थे, वे इस रचना को अश्मक – तंत्र [Treatise from the Ashmaka] कहते थे। सामान्य रूप से इसे आर्य – शत – अष्ट [Aryabhata’s 108] भी कहा जाता है, इसमें 108 छंद/श्लोक हैं। यह बहुत ही सार – गर्भित रूप में लिखा गया सूत्र – साहित्य हैं। यह रचना, जो कि 108 छंदों एवं 13 परिचयात्मक छंदों से बनी हैं और यह 4 पदों अथवा अध्यायों में बंटे हैं; वे अध्याय निम्न-लिखित हैं :
- गीतिकापाद [13 श्लोक]
- गणितपाद [33 श्लोक]
- कालक्रियापाद [25 श्लोक]
- गोलपाद [50 श्लोक]
आर्य – सिद्धांत
आर्यभट की यह रचना पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इसके अवशेषों में अनेक खगोलीय उपकरणों के उपयोग का वर्णन मिलता हैं, तो आइए, बताते हैं Aryabhatta ka Jeevan Parichay में उनके आर्य-सिद्धांत के बारे में।
- शंकु – यंत्र [Gnomon]
- छाया – यन्त्र [Shadow Instrument]
- बेलनाकार यस्ती – यन्त्र [Cylindrical Stick]
- छत्र–यन्त्र [Umbrella Shaped Device]
- जल – घड़ी [Water Clock]
- कोण – मापी उपकरण [Angle Measuring Device]
- धनुर – यंत्र/चक्र यंत्र [Semi – Circular/ Circular Instrument]
धनुर – यंत्र/चक्र यंत्र [Semi – Circular/ Circular Instrument] इस रचना में सूर्य सिद्धांत का प्रयोग किया गया है। सूर्य सिद्धांत में सूर्योदय की उपेक्षा की जाती है और इसमें अर्द्ध – रात्रि गणना [Midnight Calculations] का उपयोग किया जाता हैं।
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आर्यभट के महत्वपूर्ण और गौरवपूर्ण योगदान
आर्यभट द्वारा गणित एवं खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनेक योगदान दिए, Aryabhatta ka Jeevan Parichay में उनके महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार हैं।
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गणितज्ञ के रूप में योगदान
पाई (Pi) की खोज
आर्यभट ने पाई के मान (Values) की खोज की, इसका वर्णन आर्यभटीय के गणितपाद 10 में मिलता हैं। Aryabhatta ka Jeevan Parichay में वह लिखते हैं –
सौ में चार जोड़ें, फिर आठ से गुणा करें और फिर 62,000 जोड़ें और 20,000 से भागफल (Quotient) निकालें, इससे प्राप्त उत्तर पाई का मान होगा।
[ ( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832 / 20,000 = 3.1416
शून्य (Zero) की खोज
आर्यभट ने शून्य की खोज की, जो कि गणित की सर्वश्रेष्ठ खोज है, जिसके अभाव में गणनाएँ असंभव होती थी क्योंकिं किसी संख्या के आगे शुन्य लगाते ही उसका मान 10 गुना बढ़ जाता है। इन्होंने ही सर्वप्रथम स्थानीय मानक पद्धति के बारे में जानकारी दी।
त्रिकोणमिति
आर्यभटीय के गणितपद 6 में त्रिभुज के क्षेत्रफल की बात कही है। आर्यभट ने Concept of Sine की भी व्याख्या की हैं, जिसे उन्होंने ‘अर्द्ध – ज्या’ [Half – Chord] नाम दिया है। आमतौर पर इसे ‘ज्या’ कहा जाता है।
बीजगणित
आर्यभट ने आर्यभटीय में वर्गों एवं घनो [Squares & Cubes] की श्रंखला के जोड़ का भी उचित परिणाम का वर्णन किया है –
12 + 22 + …………. + n2 =[ n ( n+1) ( 2n + 1) ] / 6
&
13 + 23+ ………….. + n3 = ( 1+2 + ……….. + n )2
खगोलशास्त्री (Astronomer) के रूप में योगदान
आर्यभट के खगोलशास्त्र के सिद्धांतों को सामूहिक रूप से Audayaka System कहते हैं। उनके बाद की कुछ रचनाओं में पृथ्वी के परिक्रमा की बात कही गई है और उनका यह भी मानना था कि पृथ्वी की कक्षा गोलाकार नहीं, लेकिन अंडाकार है। Aryabhatta ka Jeevan Parichay में खगोलशास्त्री के रूप में भी उनका अहम योगदान है।
सौरमंडल (Solar System) की गतिशीलता
आर्यभट ने यह तथ्य स्थापित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर निरंतर रूप से घुमती रहती है और यहीं कारण है कि आकाश में तारों की स्थिति बदलती रहती है। यह तथ्य इसके बिल्कुल विपरीत है कि आकाश घूमता है। इसका जिक्र उन्होंने आर्यभटीय में भी किया हैं।
ग्रहण
हिंदू मान्यता के अनुसार राहु नामक ग्रह द्वारा सूर्य और चंद्रमा को निगल जाने के कारण सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होता है। आर्यभट द्वारा इस धारणा को गलत सिद्ध किया गया और उन्होंने इस सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण का वैज्ञानिक ढंग से वर्णन किया है। उन्होंने ये बताया कि चाँद एवं अन्य ग्रह सूर्य – प्रकाश के परावर्तित [Reflection] होने के कारण प्रकाशमान होते हैं, वास्तव में उनका अपना कोई प्रकाश नहीं होता।
सूर्यग्रहण (Solar Eclipse)
पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा के साथ ही सूर्य की भी परिक्रमा करता है और इस दौरान जब पृथ्वी और सूर्य के बीच जब चंद्रमा आ जाता हैं तो चंद्रमा के बीच में आने से सूर्य का उतना हिस्सा छुप जाता है और वह हमें काला या प्रकाशहीन दिखाई देता है और यह घटना सूर्यग्रहण कहलाती है।
चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse)
चूँकि चंद्रमा अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा के साथ ही सूर्य की भी परिक्रमा करता है और इस दौरान सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की परछाई चंद्रमा पर पड़ती है और वह सूर्य प्रकाश प्राप्त नहीं कर पाता और यह घटना चंद्रग्रहण कहलाती है। पृथ्वी की छाया जितनी बड़ी होती है, ग्रहण भी उतना ही बड़ा होगा।
कक्षाओं का वास्तविक समय (Sidereal Periods)
आर्यभट ने पृथ्वी की एक परिक्रमा का बिल्कुल उचित समय ज्ञात किया। यह अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा प्रतिदिन 24 घंटों में नहीं, बल्कि 23 घंटें, 56 मिनिट और 1 सेकेण्ड में पूरी कर लेती है। इस प्रकार हमारे 1 साल में 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनिट और 30 सेकेंड होते हैं।
ज्योतिर्विद (Astrologer) के रूप में योगदान
आर्यभट ने लगभग डेढ़ हजार साल पहले ही ज्योतिष विज्ञान की खोज कर ली थी, जब इतने उन्नत साधन एवं उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे।
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रोचक तथ्य
Aryabhatta ka Jeevan Parichay में अब आप जानेंगे उनसे जुड़े कुछ अद्भुत रोचक तथ्य, जो करवाएँगे आपको उनसे परिचित।
- आर्यभट द्वारा रचित आर्यभटिय का उपयोग आज भी हिंदू पंचांग में किया जाता हैं।
- गणित और खगोलशास्त्र में उनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए भारत के प्रथम उपग्रह का नाम उन्हीं के नाम पर ‘आर्यभट’ रखा गया।
- आर्यभट ने दशमलव (Decimal) प्रणाली की खोज की थी।
- आर्यभट ने सूर्य सिद्धांत की भी रचना की थी।
- 23 वर्ष की आयु में आर्यभट ने ‘आर्यभटिय ग्रंथ’ की रचना की, जिसकी उपयोगिता और सफलता को देखते हुए तत्कालीन राजा बुद्धगुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया।
- आर्यभट ने बिहार के तरेगाना क्षेत्र में सूर्य मंदिर में एक निरिक्षण शाला की स्थापना की।
- विद्वानों के अनुसार अरबी रचनाएं ‘अल – नत्फ़’ और ‘अल – नन्फ’ आर्यभट के कार्यों का ही अनुवाद है।
- आर्यभट ने अंकों को दर्शाने के लिए कभी भी ब्राह्मी लिपि का उपयोग नहीं किया, जो कि वैदिक समय से सांस्कृतिक प्रथा के अनुसार चले आ रहे थे। उन्होंने सदैव अक्षर (Alphabets) ही प्रयोग किए।
- इस प्रकार आर्यभट हमारे देश के महान गणितज्ञ, ज्योतिर्विद एवं खगोलशास्त्री थे, जिनका इन क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान है।
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Aryabhatta ka Jeevan Parichay के इस ब्लॉग में आपने जाना इनकी खोज और बुद्धिमता के बारे में. हम आशावान हैं कि आपको Aryabhatta ka Jeevan Parichay का यह ब्लॉग आर्यभट से आपको परिचित करेगा। इसे आगे भी शेयर कीजिए जिससे बाकी लोगों को भी आर्यभट की खोज को अधिक से अधिक जानने का मौका मिले। नए-नए तरह के और ब्लॉग्स पढ़ने के लिए आप हमारी Leverage Edu वेबसाइट पर जाकर इन्हें पढ़ सकते हैं।