क्या आप जानते हैं संस्कृत, पाली, प्राकृत आदि जो हिन्दी की पूर्ववर्ती भाषा हैं उनमें स्वयं के अनुनासिक स्वर नहीं है जबकि अनुनासिक हिन्दी के अपने स्वर हैं। इसलिए इन भाषाओं में अनुनासिक शब्द नहीं लिखे जाते हैं। आपने संस्कृत में देखा होगा अनुनासिक स्वर नहीं है इसलिए ही अनुनासिक स्वरों को लिखने के लिए देवनागरी वर्णमाला में कोई अलग से वर्ण नहीं हैं। इंटरेस्टिंग है ना यह टॉपिक? तो चलिए इस इंटरेस्टिंग टॉपिक anunasik के बारे में अधिक जानकारी लेते हैं इस ब्लॉग के माध्यम से।
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परिभाषा
कई स्वरों को बोलने के लिए मुख और नासिका दोनों का प्रयोग करना पड़ता है या यह कह सकते हैं कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। वर्णों के ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा कर anunasik स्वर लिखे जाते हैं।
अनुनासिक शब्द के उदाहरण
अनुनासिक शब्द के उदारहण नीचे दिए है:
- मुँह
- धुँधले
- कुआँ
- चाँद
- भाँति
- काँच
- बाँधकर
- पहुँच
- ऊँचाई
- टाँग
- पाँच
- दाँते
- साँस
- रँगी
- अँगूठा
- बाँधकर
- बाँट
- अँधेर
- माँ
- फूँकना
- आँखें
- झाँका
- मुँहजोर
- उँड़ेल
- बाँस
- सँभाले
- मियाँ
- अजाँ
- ऊँगली
- ठूँस
- गूँथ
- काँव-काँव
- उँगली
- काँच
- बूँदें
- रोएँ
- पूँछ
- झाँकते
अनुनासिक का प्रयोग
जिस प्रकार Anunasik की परिभाषा में बताया गया है कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है, वे अनुनासिक कहलाते हैं और इन्हीं स्वरों को लिखते समय इनके ऊपर anunasik के चिह्न चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग किया जाता है।
यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है। अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है। जैसे – कुआँ, चाँद, अँधेरा आदि।
10 अनुनासिक शब्द
10 अनुनासिक शब्द नीचे दिए गए हैं:
- उँड़ेल
- बाँस
- सँभाले
- धँसकर
- गाँव
- मुँह
- धुँधले
- धुआँ
- चाँद
- काँप
20 अनुनासिक शब्द
20 अनुनासिक शब्द नीचे दिए गए हैं:
- बूँदा-बाँदी
- आँखें
- बाँधकर
- पहुँच
- मियाँ
- अजाँ
- आँगन
- कँप-कँपी
- ठूँस
- गूँथ
- दाँते
- साँस
- झाँका
- मुँहजोर
- भाँति
- रँगी
- सँभाले
- जाऊँगा
अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार (बिंदु) का प्रयोग
आप क्या यह सोच रहे हैं कि स्वरों में तो इ, ई, ए, ऐ, ओ और औ भी आते हैं तो anunasik इन स्वरों में क्यों प्रयुक्त नहीं होता? इसका एक कारण है कि जिन स्वरों में शिरोरेखा (शब्द के ऊपर खींची जाने वाली लाइन) के ऊपर मात्रा-चिह्न आते हैं, वहाँ अनुनासिक के लिए जगह की कमी के कारण अनुस्वार (बिंदु) लगाया जाता है। जैसे : नहीं, मैं, गोंद आदि। इन शब्दों में anunasik के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है इसलिए इन सभी मात्राओं (इ, ई, ए, ऐ, ओ और औ) के साथ अनुनासिक (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) लगाया गया है। लेकिन क्या आपने यह नोटिस किया anunasik (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग करने पर भी इन शब्दों के उच्चारण में किसी प्रकार का अंतर नहीं आया। लेकिन कई बार सिर्फ एक अनुस्वार या अनुनासिक से शब्द का अर्थ बिल्कुल बदल जाता है इसके बारे में आप आगे जानेंगे।
अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर
अनुस्वार और अनुनासिक निम्नलिखित है :-
अनुनासिक | अनुस्वार |
अनुनासिक स्वर है | अनुस्वार मूलत: व्यंजन |
अनुनासिक (चंद्रबिंदु) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता | अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है। |
अनुनासिक का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है, जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगी हों। | अनुस्वार का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है, जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर लगी हों। |
मुख्य रूप से अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है। | शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है। |
उदा. – हँस (हँसने की क्रिया), अँगना (घर के बाहर खुला बरामदा), स्वाँग (ढोंग), हँस, चाँद, पूँछ आदि। | उदा. – हंस (एक जल पक्षी), अंगना (सुंदर अंगों वाली स्त्री), स्वांग (स्व+अंग)(अपने अंग), गोंद, कोंपल, आदि। |
पाठ्य-पुस्तक ‘संचयन-I’ में प्रयुक्त अनुनासिक शब्द
पाठ्य-पुस्तक ‘संचयन-I’ में प्रयुक्त कुछ अनुनासिक शब्द नीचे दिए गए हैं:
- धूल- गाँव, मुँह, धुँधले, कुआँ, चाँद, भाँति, काँच।
- दुःख का अधिकार- बाँट, अँधेर, माँ, फूँकना, आँखें।
- एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा– बाँधकर, पहुँच, ऊँचाई, टाँग, पाँच, दाँते, साँस।
- तुम कब जाओगे, अतिथि- धुआँ, चाँद, काँप, मँहगाई, जाऊँगा।
- वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन्- ढूँढने, ऊँचे, भाँति।
- कीचड़ का काव्य- रँगी, अँगूठा, बाँधकर।
- धर्म की आड़- मियाँ, अजाँ।
- शुक्रतारे के समान- जालियाँवाला, ऊँगली, ठूँस, गूँथ।
- गिल्लू – काँव-काँव, उँगली, काँच, बूँदें, रोएँ, पूँछ, काँच, झाँकते।
- स्मृति– बूँदा-बाँदी, गाँव, आँगन, कँप-कँपी, बाँध, साँप, कुएँ, पाँच, फुँकार, फूँ-फूँ, दाँत।
- कल्लू कुम्हार की उनाकोटी– झाँका, मुँहजोर, उँड़ेल, बाँस, सँभाले, धँसकर।
Anunasik Worksheet
नीचे दी गई वर्कशीट में अनुनासिक लगाकर शब्दों को पूरा करें :
अनुनासिक शब्द का वाक्य में प्रयोग
अनुनासिक शब्द का वाक्य में प्रयोग का उदाहरण नीचे दिया गया है:
- हँसना सेहत के लिए अच्छा होता है।
- आज राजस्थान में बूँदा-बाँदी हुई है।
- आज खाना इतना स्वदिष्ट था कि सब उँगली चाटते रह गए।
- लगता है गाड़ी का इंजन ख़राब हो गया है इसमें से बहुत धुआँ निकल रहा है।
- सीता की आँखें बहुत खूबसूरत है।
FAQs
कई स्वरों को बोलने के लिए मुख और नासिका दोनों का प्रयोग करना पड़ता है या यह कह सकते हैं कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। वर्णों के ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा कर anunasik स्वर लिखे जाते हैं। जैसे : हँसना, आँख, ऊँट आदि अनुनासिक है।
हिंदी में अनुनासिक वर्णों की कुल संख्या 5 हैं। जो कि ङ, ञ, ण, म, न हैं।
गिल्लू – काँव-काँव, उँगली, काँच, बूँदें, रोएँ, पूँछ, काँच, झाँकते। स्मृति- बूँदा-बाँदी, गाँव, आँगन, कँप-कँपी, बाँध, साँप, कुएँ, पाँच, फुँकार, फूँ-फूँ, दाँत। कल्लू कुम्हार की उनाकोटी- झाँका, मुँहजोर, उँड़ेल, बाँस, सँभाले, धँसकर।
आशा करते हैं कि इस ब्लॉग के माध्यम से आपको anunasik के बारे में सभी जानकारी मिल गई होगी। यदि आप हिंदी व्याकरण के और भी ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं तो Leverage Edu की वेबसाइट पर बनें रहें।
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