Anand Narayan Mulla Shayari : आनंद नारायण मुल्ला के चुनिंदा शेर, शायरी और गजल

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Anand Narayan Mulla Shayari

आनंद नारायण मुल्ला उर्दू भाषा के उन लोकप्रिय शायरों में से थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में उस समय के सामाजिक मुद्दों प्रेम और दर्शन जैसे विभिन्न विषयों का चित्रण किया था। आनंद नारायण मुल्ला एक शायर, कवि, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ और वकील भी थे। आनंद नारायण मुल्ला की शायरी युवाओं का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उन्हें सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित करेंगी। आनंद नारायण मुल्ला के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य की खूबसूरती से परिचित करवाएंगी। इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुछ चुनिंदा Anand Narayan Mulla Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

आनंद नारायण मुल्ला का जीवन परिचय

आनंद नारायण मुल्ला का जन्म 24 अक्टूबर 1901 को लखनऊ में हुआ था। आनंद नारायण मुल्ला ने अपनी आरम्भिक शिक्षा फिरंगी महल लखनऊ से प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ी में M.A. किया और क़ानून की पढाई करने के बाद वे वकालत के पेशे से जुड़ गए। वर्ष 1955 में आनंद नारायण मुल्ला को लखनऊ हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया गया।

आनंद नारायण मुल्ला के काव्य संग्रह में जुए शेर, कुछ ज़र्रे कुछ तारे, मेरी हदीसे उम्र गुरेज़ाँ, करबे आगही, जादहे मुल्ला आदि शामिल थे। जीवनभर उर्दू साहित्य के लिए अपना अहम योगदान देने वाले आनंद नारायण मुल्ला का देहांत 12 जून 1997 को दिल्ली में हुआ था।

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आनंद नारायण मुल्ला की शायरी – Anand Narayan Mulla Shayari

आनंद नारायण मुल्ला की शायरी पढ़कर युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है:

“सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले 
तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले…”

 -आनंद नारायण मुल्ला

“वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत 
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है…”

 -आनंद नारायण मुल्ला

“जिस के ख़याल में हूँ गुम उस को भी कुछ ख़याल है 
मेरे लिए यही सवाल सब से बड़ा सवाल है…”

 -आनंद नारायण मुल्ला

“हद-ए-तकमील को पहुँची तिरी रानाई-ए-हुस्न 
जो कसर थी वो मिटा दी तिरी अंगड़ाई ने…”

 -आनंद नारायण मुल्ला

“मैं फ़क़त इंसान हूँ हिन्दू मुसलमाँ कुछ नहीं 
मेरे दिल के दर्द में तफ़रीक़-ए-ईमाँ कुछ नहीं…”

 -आनंद नारायण मुल्ला

“नज़र जिस की तरफ़ कर के निगाहें फेर लेते हो 
क़यामत तक फिर उस दिल की परेशानी नहीं जाती…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“कहने को लफ़्ज़ दो हैं उम्मीद और हसरत 
इन में निहाँ मगर इक दुनिया की दास्ताँ है…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“उस इक नज़र के बज़्म में क़िस्से बने हज़ार 
उतना समझ सका जिसे जितना शुऊर था…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“अब बन के फ़लक-ज़ाद दिखाते हैं हमें आँख 
ज़र्रे वही कल जिन को उछाला था हमीं ने…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“हुस्न के जल्वे नहीं मुहताज-ए-चश्म-ए-आरज़ू 
शम्अ जलती है इजाज़त ले के परवाने से क्या…”

-आनंद नारायण मुल्ला

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मोहब्बत पर आनंद नारायण मुल्ला की शायरी

मोहब्बत पर आनंद नारायण मुल्ला की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी – 

“अब और इस के सिवा चाहते हो क्या ‘मुल्ला’ 
ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“इश्क़ करता है तो फिर इश्क़ की तौहीन न कर 
या तो बेहोश न हो, हो तो न फिर होश में आ…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“मुझे कर के चुप कोई कहता है हँस कर 
उन्हें बात करने की आदत नहीं है…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“इश्क़ में वो भी एक वक़्त है जब 
बे-गुनाही गुनाह है प्यारे…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“तुम जिस को समझते हो कि है हुस्न तुम्हारा 
मुझ को तो वो अपनी ही मोहब्बत नज़र आई…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“आईना-ए-रंगीन जिगर कुछ भी नहीं क्या 
क्या हुस्न ही सब कुछ है नज़र कुछ भी नहीं क्या…”

-आनंद नारायण मुल्ला

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आनंद नारायण मुल्ला के शेर

आनंद नारायण मुल्ला के शेर पढ़कर युवाओं को आनंद नारायण मुल्ला की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। आनंद नारायण मुल्ला के शेर युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं:

“’मुल्ला’ बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग 
इक सुल्ह का पयाम थी उर्दू ज़बाँ कभी…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“अक़्ल के भटके होऊँ को राह दिखलाते हुए 
हम ने काटी ज़िंदगी दीवाना कहलाते हुए…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“दिल-ए-बेताब का अंदाज़-ए-बयाँ है वर्ना 
शुक्र में कौन सी शय है जो शिकायत में नहीं…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“ख़ून-ए-जिगर के क़तरे और अश्क बन के टपकें 
किस काम के लिए थे किस काम आ रहे हैं…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“तू ने फेरी लाख नर्मी से नज़र 
दिल के आईने में बाल आ ही गया…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“ख़ुदा जाने दुआ थी या शिकायत लब पे बिस्मिल के 
नज़र सू-ए-फ़लक थी हाथ में दामान-ए-क़ातिल था…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“दयार-ए-इश्क़ है ये ज़र्फ़-ए-दिल की जाँच होती है 
यहाँ पोशाक से अंदाज़ा इंसाँ का नहीं होता…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“मुख़्तसर अपनी हदीस-ए-ज़ीस्त ये है इश्क़ में 
पहले थोड़ा सा हँसे फिर उम्र भर रोया किए…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“अश्क-ए-ग़म-ए-उल्फ़त में इक राज़-ए-निहानी है 
पी जाओ तो अमृत है बह जाए तो पानी है…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“शम्अ’ इक मोम के पैकर के सिवा कुछ भी न थी 
आग जब तन में लगाई है तो जान आई है…”

-आनंद नारायण मुल्ला

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आनंद नारायण मुल्ला की दर्द भरी शायरी

आनंद नारायण मुल्ला की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं:

“रोने वाले तुझे रोने का सलीक़ा ही नहीं 
अश्क पीने के लिए हैं कि बहाने के लिए…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“हम ने भी की थीं कोशिशें हम न तुम्हें भुला सके 
कोई कमी हमीं में थी याद तुम्हें न आ सके…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“तिरी जफ़ा को जफ़ा मैं तो कह नहीं सकता 
सितम सितम ही नहीं है जो दिल को रास आए…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“एक इक लम्हे में जब सदियों की सदियाँ कट गईं 
ऐसी कुछ रातें भी गुज़री हैं मिरी तेरे बग़ैर…”

-आनंद नारायण मुल्ला

“निज़ाम-ए-मय-कदा साक़ी बदलने की ज़रूरत है 
हज़ारों हैं सफ़ें जिन में न मय आई न जाम आया…”

-आनंद नारायण मुल्ला

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आनंद नारायण मुल्ला की गजलें

आनंद नारायण मुल्ला की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया

आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया 
और वो ये समझे कि मुझ को रंज सहना आ गया 

पोंछता कोई नहीं अब मुझ से मेरा हाल-ए-दिल 
शायद अपना हाल-ए-दिल अब मुझ को कहना आ गया 

सब की सुनता जा रहा हूँ और कुछ कहता नहीं 
वो ज़बाँ हूँ अब जिसे दाँतों में रहना आ गया 

ज़िंदगी से क्या लड़ें जब कोई भी अपना नहीं 
हो के शल धारे के रुख़ पर हम को बहना आ गया 

लाख पर्दे इज़्तिराब-ए-शौक़ पर डाले मगर 
फिर वो इक मचला हुआ आँसू बरहना आ गया 

तुझ को अपना ही लिया आख़िर निगार-ए-इश्क़ ने 
ऐ उरूस-ए-चश्म ले मोती का गहना आ गया 

पी के आँसू सी के लब बैठा हूँ यूँ इस बज़्म में 
दर-हक़ीक़त जैसे मुझ को रंज सहना आ गया 

एक ना-शुकरे चमन को रंग-ओ-बू देता रहा 
आ गया हाँ आ गया काँटों में रहना आ गया 

लब पे नग़्मा और रुख़ पर इक तबस्सुम की नक़ाब 
अपने दिल का दर्द अब 'मुल्ला' को कहना आ गया

-आनंद नारायण मुल्ला

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दिल की दिल को ख़बर नहीं मिलती

दिल की दिल को ख़बर नहीं मिलती 
जब नज़र से नज़र नहीं मिलती 

सहर आई है दिन की धूप लिए 
अब नसीम-ए-सहर नहीं मिलती 

दिल-ए-मासूम की वो पहली चोट 
दोस्तों से नज़र नहीं मिलती 

जितने लब उतने उस के अफ़्साने 
ख़बर-ए-मो'तबर नहीं मिलती 

है मक़ाम-ए-जुनूँ से होश की रह 
सब को ये रहगुज़र नहीं मिलती 

नहीं 'मुल्ला' पे उस फ़ुग़ाँ का असर 
जिस में आह-ए-बशर नहीं मिलती

-आनंद नारायण मुल्ला

दुनिया है ये किसी का न इस में क़ुसूर था

दुनिया है ये किसी का न इस में क़ुसूर था 
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था 

उस के करम पे शक तुझे ज़ाहिद ज़रूर था 
वर्ना तिरा क़ुसूर न करना क़ुसूर था 

तुम दूर जब तलक थे तो नग़्मा भी था फ़ुग़ाँ 
तुम पास आ गए तो अलम भी सुरूर था 

उस इक नज़र के बज़्म में क़िस्से बने हज़ार 
उतना समझ सका जिसे जितना शुऊर था 

इक दर्स थी किसी की ये फ़नकारी-ए-निगाह 
कोई न ज़द में था न कोई ज़द से दूर था 

बस देखने ही में थीं निगाहें किसी की तल्ख़ 
शीरीं सा इक पयाम भी बैनस्सुतूर था 

पीते तो हम ने शैख़ को देखा नहीं मगर 
निकला जो मय-कदे से तो चेहरे पे नूर था 

'मुल्ला' का मस्जिदों में तो हम ने सुना न नाम 
ज़िक्र उस का मय-कदों में मगर दूर दूर था

-आनंद नारायण मुल्ला

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