अकबर इलाहाबादी उर्दू अदब के एक ऐसे मशहूर शायर थे, जिनके अल्फाजों और लेखन ने उर्दू साहित्य में हास्य-व्यंग्य की विधा को नया आयाम दिया। अकबर इलाहाबादी के शेर, शायरी और ग़ज़लों ने उर्दू भाषा के साहित्य में अपनी अमिट पहचान बनाने के साथ-साथ, सामाजिक और राजनीतिक चेतना जगाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अकबर इलाहाबादी के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को व्यंग का सही अर्थ बताती है। इस ब्लॉग में आपको अकबर इलाहाबादी की मशहूर शायरी (Akbar Allahabadi Shayari), चुनिंदा शेर, नज़्म और ग़ज़ल पढ़ने को मिलेंगी।
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अकबर इलाहाबादी का जीवन परिचय
अकबर इलाहाबादी की बेहतरीन साहित्य की समझ ने उन्हें एक मशहूर शायर और व्यंग्यकार बनाया, अकबर इलाहाबादी का पूरा नाम सैयद अकबर हुसैन था।
अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1846 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था। अकबर इलाहाबादी ने प्राथमिक शिक्षा मदरसे से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज, इलाहाबाद से कानून की डिग्री प्राप्त की।
शिक्षा को ग्रहण करने के बाद उन्होंने वकील और न्यायाधीश के रूप में कार्य किया, जिसके बाद वह वर्ष 1888 में सब जज बने और वर्ष 1907 में जिला न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए। उर्दू भाषा के सबसे प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी की रचनाओं में हास्य, व्यंग्य, सामाजिक टिप्पणी और राजनीतिक चेतना का मिश्रण देखने को मिल जाता है।
उर्दू साहित्य में अपना अविस्मरण योगदान देने वाले अकबर इलाहाबादी का निधन 9 सितंबर 1921 को इलाहाबाद में हुआ।
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अकबर इलाहाबादी की शायरी – Akbar Allahabadi Shayari
अकबर इलाहाबादी की शायरी (Akbar Allahabadi Shayari) पढ़कर युवाओं में उर्दू साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है –
“दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए…”
-अकबर इलाहाबादी
“दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ…”
-अकबर इलाहाबादी
“मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं…”
-अकबर इलाहाबादी
“पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए…”
-अकबर इलाहाबादी
“आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती…”
-अकबर इलाहाबादी
“रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद…”
-अकबर इलाहाबादी
“लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं…”
-अकबर इलाहाबादी
“अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से…”
-अकबर इलाहाबादी
“मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट…”
-अकबर इलाहाबादी
“हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है…”
-अकबर इलाहाबादी
मोहब्बत पर अकबर इलाहाबादी के मशहूर शेर
मोहब्बत पर अकबर इलाहाबादी के मशहूर शेर (Akbar Allahabadi Shayari) अलग अंदाज़ में मोहब्बत बयां करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं-
“अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
जब ख़ुदा का सामना होगा तो देखा जाएगा…”
-अकबर इलाहाबादी
“लोग कहते हैं कि बदनामी से बचना चाहिए
कह दो बे उसके जवानी का मज़ा मिलता नहीं…”
-अकबर इलाहाबादी
“उन्हीं की बे-वफ़ाई का ये है आठों-पहर सदमा
वही होते जो क़ाबू में तो फिर काहे को ग़म होता…”
-अकबर इलाहाबादी
“इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है…”
-अकबर इलाहाबादी
“आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते…”
-अकबर इलाहाबादी
“इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता…”
-अकबर इलाहाबादी
“हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना…”
-अकबर इलाहाबादी
“जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है…”
-अकबर इलाहाबादी
“इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है…”
-अकबर इलाहाबादी
“बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता…”
-अकबर इलाहाबादी
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अकबर इलाहाबादी के शेर
अकबर इलाहाबादी के शेर युवाओं का परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं –
“बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
मेहनत की है वो बात ये क़िस्मत की बात है…”
-अकबर इलाहाबादी
“ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ ‘अकबर’
यही वो दर है कि ज़िल्लत नहीं सवाल के बा’द…”
-अकबर इलाहाबादी
“आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी…”
-अकबर इलाहाबादी
“खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो…”
-अकबर इलाहाबादी
“हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए
बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए…”
-अकबर इलाहाबादी
“हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं…”
-अकबर इलाहाबादी
“लिपट भी जा न रुक ‘अकबर’ ग़ज़ब की ब्यूटी है
नहीं नहीं पे न जा ये हया की ड्यूटी है…”
-अकबर इलाहाबादी
“जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
हुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख…”
-अकबर इलाहाबादी
“ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए…”
-अकबर इलाहाबादी
“वस्ल हो या फ़िराक़ हो ‘अकबर’
जागना रात भर मुसीबत है…”
-अकबर इलाहाबादी
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अकबर इलाहाबादी के हास्य व्यंग
अकबर इलाहाबादी के हास्य व्यंग पढ़कर आप व्यंग के बारे में जान पाएंगे। अकबर इलाहाबादी के व्यंग कुछ इस प्रकार हैं –
“हो न रंगीन तबीयत भी किसी की या रब
आदमी को यह मुसीबत में फँसा देती है…”
-अकबर इलाहाबादी
“क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ…”
-अकबर इलाहाबादी
“शेख़ जी घर से न निकले और लिख कर दे दिया
आप बी०ए० पास हैं तो बन्दा बीवी पास है…”
-अकबर इलाहाबादी
“नौकरों पर जो गुज़रती है, मुझे मालूम है
बस करम कीजे मुझे बेकार रहने दीजिये…”
-अकबर इलाहाबादी
“क्योंकर ख़ुदा के अर्श के क़ायल हों ये अज़ीज़
जुगराफ़िये में अर्श का नक़्शा नहीं मिला…”
-अकबर इलाहाबादी
“गुले तस्वीर किस ख़ूबी से गुलशन में लगाया है
मेरे सैयाद ने बुलबुल को भी उल्लू बनाया है…”
-अकबर इलाहाबादी
“फ़िरंगी से कहा, पेंशन भी ले कर बस यहाँ रहिये
कहा-जीने को आए हैं,यहाँ मरने नहीं आये…”
-अकबर इलाहाबादी
“ख़ुदा की राह में बेशर्त करते थे सफ़र पहले
मगर अब पूछते हैं रेलवे इसमें कहाँ तक है?”
-अकबर इलाहाबादी
“क़द्रदानों की तबीयत का अजब रंग है आज
बुलबुलों को ये हसरत, कि वो उल्लू न हुए…”
-अकबर इलाहाबादी
“कर दिया कर्ज़न ने ज़न मर्दों की सूरत देखिये
आबरू चेहरों की सब, फ़ैशन बना कर पोंछ ली…”
-अकबर इलाहाबादी
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अकबर इलाहाबादी की ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी की ग़ज़ल आपको उर्दू साहित्य के सौंदर्य से परिचित कराएंगी, जो नीचे दी गई हैं-
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर-चंद कि हूँ होश में हुश्यार नहीं हूँ
इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बे-लौस
साया हूँ फ़क़त नक़्श-ब-दीवार नहीं हूँ
अफ़्सुर्दा हूँ इबरत से दवा की नहीं हाजत
ग़म का मुझे ये ज़ोफ़ है बीमार नहीं हूँ
वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ
या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ
गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हों ख़ुश ऐसा गुनहगार नहीं हूँ
अफ़्सुर्दगी ओ ज़ोफ़ की कुछ हद नहीं ‘अकबर’
काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दीं-दार नहीं हूँ
-अकबर इलाहाबादी
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते
ख़ातिर से तिरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को सँभलने नहीं देते
किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यूँ हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते
हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
गर्मी-ए-मोहब्बत में वो हैं आह से माने’
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते
-अकबर इलाहाबादी
अकबर इलाहाबादी की नज़्म
अकबर इलाहाबादी की नज़्म पढ़कर आप उर्दू साहित्य में किए गए अकबर इलाहबादी के योगदान को महसूस कर पाएंगे, जो नीचे दी गई हैं-
सब जानते हैं इल्म से है ज़िंदगी की रूह
सब जानते हैं इल्म से है ज़िंदगी की रूह
बे-इल्म है अगर तो वो इंसाँ है ना तमाम
बे-इल्म-ओ-बे-हुनर है जो दुनिया में कोई क़ौम
नेचर का इक़तिज़ा है रहे बन के वो ग़ुलाम
ता’लीम अगर नहीं है ज़माने के हस्ब-ओ-हाल
फिर क्या उमीद-ए-दौलत-ओ-आराम-ओ-एहतिराम
सय्यद के दिल में नक़्श हो इस ख़याल का
डाली बिना-ए-मदरसा ले कर ख़ुदा का नाम
सदमे उठाए रंज सहे गालियाँ सुनीं
लेकिन न छोड़ा क़ौम के ख़ादिम ने ये काम
दिखला दिया ज़माने को ज़ोर-ए-दिल-ओ-दिमाग़
बतला दिया वो करते हैं करने वाले काम
निय्यत जो थी ब-ख़ैर तो बरकत ख़ुदा ने दी
कॉलेज हुआ दुरुस्त ब-सद शान-ओ-एहतिशाम
सरमाए में कमी थी सहारा कोई न था
सय्यद का दिल था दरपय तकमील-ए-इंतिज़ाम
आख़िर उठा सफ़र को वो मर्द ख़स्ता पए
अहबाब चंद साथ थे ज़ी-इल्म-ओ-ख़ुश-कलाम
क़िस्मत कि रहबरी से मिली मंज़िल-ए-मुराद
फ़रमाँ-रवा-ए-मुल्क-ए-दकन को किया सलाम
हालत दिखाई और ज़रूरत बयान की
ख़ूबी से इल्तिमास किया क़ौम का पयाम
रहम आ गया हुज़ूर को हालत पे क़ौम की
फिर क्या था मौजज़न हुआ दरिया-ए-फ़ैज़-ए-आम
माहाना दो हज़ार किया इक हज़ार से
उम्मीद से ज़ियादा अता थी ये ला-कलाम
‘अकबर’ की ये दुआ है ख़ुदा की जनाब में
ता-हश्र इस रईस-ओ-रियासत को हो क़याम
क्या वक़्त पर हुई है कि बे-एहतिजाज-ए-फ़िक्र
तारीक अपनी आप है फ़य्याज़ी-ए-निज़ाम
-अकबर इलाहाबादी
नई तहज़ीब
ये मौजूदा तरीक़े राही-ए-मुल्क-ए-अदम होंगे
नई तहज़ीब होगी और नए सामाँ बहम होंगे
नए उनवान से ज़ीनत दिखाएँगे हसीं अपनी
न ऐसा पेच ज़ुल्फ़ों में न गेसू में ये ख़म होंगे
न ख़ातूनों में रह जाएगी पर्दे की ये पाबंदी
न घूँघट इस तरह से हाजिब-ए-रू-ए-सनम होंगे
बदल जाएगा अंदाज़-ए-तबाए दौर-ए-गर्दूं से
नई सूरत की ख़ुशियाँ और नए असबाब-ए-ग़म होंगे
न पैदा होगी खत-ए-नस्ख़ से शान-ए-अदब-आगीं
न नस्तालीक़ हर्फ़ इस तौर से ज़ेब-ए-रक़म होंगे
ख़बर देती है तहरीक-ए-हवा तबदील-ए-मौसम की
खिलेंगे और ही गुल ज़मज़मे बुलबुल के कम होंगे
अक़ाएद पर क़यामत आएगी तरमीम-ए-मिल्लत से
नया काबा बनेगा मग़रिबी पुतले सनम होंगे
बहुत होंगे मुग़न्नी नग़्मा-ए-तक़लीद यूरोप के
मगर बेजोड़ होंगे इस लिए बे-ताल-ओ-सम होंगे
हमारी इस्तलाहों से ज़बाँ ना-आश्ना होगी
लुग़ात-ए-मग़रिबी बाज़ार की भाषा से ज़म होंगे
बदल जाएगा मेयार-ए-शराफ़त चश्म-ए-दुनिया में
ज़ियादा थे जो अपने ज़ोम में वो सब से कम होंगे
गुज़िश्ता अज़्मतों के तज़्किरे भी रह न जाएँगे
किताबों ही में दफ़्न अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम होंगे
किसी को इस तग़य्युर का न हिस होगा न ग़म होगा
हुए जिस साज़ से पैदा उसी के ज़ेर-ओ-बम होंगे
तुम्हें इस इंक़िलाब-ए-दहर का क्या ग़म है ऐ ‘अकबर’
बहुत नज़दीक हैं वो दिन कि तुम होगे न हम होंगे
-अकबर इलाहाबादी
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