जीवन में कठिन हालातों व रास्तों को झुकाकर उस पर चल पड़ना एक कामयाब व्यक्ति की पहचान है। जीवन में दुखों की भरमार के बावजूद उन दुखों को अपने सपनों के आगे नहीं देने वाले लोग ही सितारा बनते हैं और ऐसे चमकते हैं कि अँधेरा उनके लिए मात्र एक शब्द बनकर जाता है। बुरा वक़्त किस का नहीं आता, लेकिन बुरा वक़्त ही अपनी ताकत को इकठ्ठा करने का सबसे बढ़िया समय होता है। आज का यह ब्लॉग इसी पर है। Aalo Aandhari यह बस एक शब्द नहीं है, यह है एक जूनून, जानिए Aalo Aandhari को इस पाठ के द्वारा।
पुस्तक | NCERT |
बोर्ड | CBSE |
कक्षा | 11 |
विषय | हिंदी वितान |
पाठ | 3 |
पाठ का नाम | आलो आंधारि |
मीडियम | हिंदी |
This Blog Includes:
लेखिका परिचय
लेखिका बेबी हालदार का जन्म जम्मू कश्मीर में हुआ था, वहां, उनके पिता सेना में थे। इनका जन्म संभवतया 1974 में हुआ। परिवार की आर्थिक दशा कमजोर होने के कारण तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह दोगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया। इस कारण उन्हें सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 12-13 वर्षों के बाद पति की ज्यादतियों से परेशान होकर वे तीन बच्चों सहित पति का घर छोड़कर दुर्गापुर से फरीदाबाद आ गई। वहां रहने का इनका महीने का किराया 800 रूपये था. कुछ समय बाद वह गुड़गाँव चली आई और घरेलू नौकरानी के रूप में काम कर रही हैं। इनकी एकमात्र रचना है-आलो-आँधारि। यह मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी गई तथा बाद में इसका हिंदी अनुवाद किया गया। Aalo Aandhari लेखिका का जीवन परिचय है, यह उनके जीवन के संघर्षों को दर्शाता है।
पाठ का सारांश
आलो आंधारि पाठ का सारांश नीचे दिया गया है-
आलो-आंधारि-लेखिका की आत्मकथा है, इसका अर्थ है – अँधेरे का उजाला
- यह समाज की करोड़ों झुग्गियों की कहानी है। यह साहित्य में उनके लिए चुनौती है जो साहित्य को वस्तु में देखने के आदी हैं, जो यह समझते हैं कि साहित्य को एक खास वर्ग की बपौती मानते हैं। यह आपबीती है, जो बांग्ला में लिखी गई, लेकिन पहली ऐसी रचना जो छपकर बाज़ार में आने से पहले ही मुख्य रूप में हिंदी में आई। इसके अनुवादक हैं प्रबोध कुमार।
- लेखिका अपने पति से अलग किराए के मकान में अपने तीन छोटे बच्चों के साथ रहती थी। उसे हर समय काम की तलाश रहती थी। वह सभी को अपने लिए काम ढूँढ़ने के लिए कहती थी। शाम को जब वह घर वापिस आती तो पड़ोस की औरतें काम के बारे में पूछतीं। काम न मिलने पर वह उसका हौंसला बढ़ाती थी। लेखिका सुनील नामक युवक से मिलती है। एक दिन उसने किसी मकान मालिक से लेखिका को मिलवाया। मकान मालिक ने आठ सौ रुपये महीने पर उसे रख लिया और घर की सफाई व खाना बनाने का काम दिया। उसने पहले काम कर रही महिला को हटा दिया। उस महिला ने लेखिका से भला-बुरा कहा। लेखिका उस घर में रोज सवेरे आती तथा दोपहर तक सारा काम खत्म करके चली जाती। घर जाकर बच्चों को नहलाती व खिलाती। उसे बच्चों के भविष्य की चिंता थी।
- जिस मकान में वह रहती थी, वह महंगा था। उसने सस्ता किराए वाला मकान ले लिया। लोग उसके अकेले रहने पर तरह-तरह की बातें बनाते थे। घर के खर्च चलाने के लिए वह और काम चाहती थी। वह मकान मालिक से काम की नई जगह ढूँढ़ने को कहती है। उसे बच्चों की पढ़ाई, घर के किराए व लोगों की बातों की भी चिंता थी। एक दिन उन्होंने लेखिका से पूछा कि वह घर जाकर क्या-क्या करती है। लेखिका की बात सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने स्वयं को ‘तातुश’ कहकर पुकारने को कहा। वे उसे बेबी कहते थे तथा अपनी बेटी की तरह मानते थे। उनका सारा परिवार लेखिका का ख्याल रखता था। वह पुस्तकों की अलमारियों की सफाई करते समय पुस्तकों को उत्सुकता से देखने लगती। यह देखकर तातुश ने उसे एक किताब पढ़ने के लिए दी।
- तातुश ने उससे लेखकों के बारे में पूछा तो उसने कई बांग्ला लेखकों के नाम बता दिए। एक दिन तातुश ने उसे कॉपी व पेन दिया और कहा कि समय निकालकर वह कुछ जरूर लिखे। काम की अधिकता के कारण लिखना बहुत मुश्किल था, परंतु तातुश के प्रोत्साहन से वह रोज कुछ पृष्ठ लिखने लगी। शौक आदत में बदला। उसका अकेले रहना समाज में कुछ लोगों को सहन नहीं हो रहा था। वे उए परेशान करते थे। बाथरूम न होने से भी विशेष दिक्कत थी। मकान मालिक के लड़के के दुव्र्यवहार की वजह से वह नया घर तलाशने की सोचने लगी।
- एक दिन लेखिका काम से घर लौटी तो देखा कि मकान टूटा हुआ है तथा उसका सारा सामान खुले में बाहर पड़ा हुआ है। वह रोने लगी। इतनी जल्दी मकान ढूंढना भी मुश्किल था। वह सारी रात बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे बैठी रही। दो भाई नजदीक रहने के बावजूद उसकी सहायता नहीं करते। तातुश को बेबी का घर टूटने का पता चला तो उन्होंने अपने घर में कमरा दे दिया। इस प्रकार वह तातुश के घर में रहने लगी। उसके बच्चों को ठीक खाना मिलने लगा। तातुश उसका बहुत ख्याल रखते।
- बच्चों के बीमार होने पर वे उनकी दवा का प्रबंध करते। उसका बड़ा लड़का किसी घर में काम करता था। तातुश ने उसके लड़के को खोजा तथा उसे बेबी से मिलवाया। लड़के को दूसरी जगह काम दिलवाया। लेखिका सोचती कि तातुश पिछले जन्म में उसके बाबा रहे होंगे। तातुश उसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने कई मित्रों के पास बेबी के लेखन के कुछ अंश भेज दिए थे। उन्हें यह लेखन पसंद आया और वे भी लेखिका का उत्साह बढ़ाते रहे। तातुश के छोटे लड़के अर्जुन के दो मित्र वहाँ आकर रहने लगे, परंतु उनके अच्छे व्यवहार से लेखिका बढ़े काम को खुशी-खुशी करने लगी। उसने उसे रोजाना शाम के समय पार्क में बच्चों को घुमा लाने के लिए कहा। अब वह पार्क में जाने लगी।
- पार्क में नए-नए लोगों से मुलाकात होती। उसकी पहचान बंगाली लड़की से हुई जो जल्दी ही वापिस चली गई। लोगों के दुव्र्यवहार के कारण उसने पार्क में जाना छोड़ दिया। लेखिका को किताब, अखबार पढ़ने व लेखन-कार्य में आनंद आने लगा। तातुश के जोर देने पर वह अपने जीवन की घटनाएँ लिखने लगी। तातुश के दोस्त उसका उत्साह बढ़ाते रहे। एक मित्र ने उसे आशापूर्णा देवी का उदाहरण दिया। इससे लेखिका का हौसला बढ़ा और उसने उन्हें जेलू कहकर संबोधित किया। एक दिन लेखिका के पिता उससे मिलने पहुँचे। उसने उसकी माँ के निधन के बारे में बताया। लेखिका के भाइयों को पता था, परंतु उन्होंने उसे नहीं बताया । लेखिका काफी देर तक माँ की याद करके रोती रही। बाबा ने बच्चों से माँ का ख्याल रखने के लिए समझाया। लेखिका पत्रों के माध्यम से कोलकाता और दिल्ली के मित्रों से संपर्क रखने लगी। उसे हैरानी थी कि लोग उसके लेखन को पसंद करते हैं।
- शर्मिला उससे तरह-तरह की बातें करती थी। लेखिका सोचती कि तातुश उससे न मिलते तो यह जीवन कहाँ मिलता। लेखिका का जीवन तातुश के घर में आकर बदल गया। उसका बड़ा लड़का काम पर लगा था। दोनों छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे। वह स्वयं लेखिका बन गई थी। पहले वह सोचती थी कि अपनों से बिछुड़कर कैसे जी पाएगी, परंतु अब उसने जीना सीख लिया था। वह तातुश से शब्दों के अर्थ पूछने लगी थी। तातुश के जीवन में भी खुशी आ गई थी। अंत में वह दिन भी आ गया जब लेखिका की लेखन-कला को पत्रिका में जगह मिली। पत्रिका में उसकी रचना का शीर्षक था- ‘आलो-आँधारि” बेबी हालदार। लेखिका अत्यंत प्रसन्न थी। तातुश के प्रति उसका मन कृतज्ञता से भर आया। उसने तातुश के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
Aalo Aandhari पाठ के कठिन शब्द
आलो आंधारि पाठ के कठिन शब्द इस प्रकार हैं:
शब्द | मतलब |
आपबीती | अपने पर बीती हुई |
बांग्ला | बंगाली |
दुव्र्यवहार | बुरा बर्ताव |
बपौती | जागीर |
अनुवादक | अनुवाद करने वाला |
प्रोत्साहित | प्रेरणा देने वाला |
अर्थ | मतलब |
अत्यंत | बहुत |
कृतज्ञता | शुक्रिया का भाव |
सांचा | वस्तु |
Aalo Aandhari पाठ से संबंधित प्रश्न-उत्तर
Aalo Aandhari पाठ से संबंधित प्रश्न-उत्तर आपके लिए दिए हैं. क्या आपको पता हैं इन प्रश्नों के उत्तर, तो चलिए दीजिए उत्तर –
उत्तर: उसने जाना कि रिश्तों का संबंध दिल से होता है, अन्यथा रिश्ते बेगाने होते हैं। पति का घर छोड़कर आने के बाद वह अकेली व असहाय थी। वह अकेले ही बच्चों के साथ किराये के मकान में रहने लगी।उसके अपने ही उसके लिए अंजान थे। उल्टा, अनजानों ने उसकी सहायता की थी। सुनील के रास्ते ही उसने अपना मकाम पाया।
उत्तर: घरेलू नौकरों को आर्थिक सुरक्षा व मदद नहीं मिलती। नौकरी पर मुश्किल बनी रहती है। उन्हें गदे व सस्ते मकानों में रहना पड़ता है, क्योंकि ये अधिक किराया नहीं दे पाते। इन लोगों का शारीरिक शोषण भी किया जाता है। नौकरानियों को अकसर शोषण का शिकार होना पड़ता है।
उत्तर: तातुश के संपर्क में आने से पहले बेबी कई घरों में काम कर चुकी थी। उसका जीवन कष्टों से भरा था। तातुश के परिवार में आने के बाद उसे घर, पैसा, भोजन आदि समस्याओं से राहत मिली। यहाँ उसके बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से होने लगा। यदि उसकी जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन बहुत बुरे दौर में होता।
उत्तर: तातुश के व्यक्तित्व से हमें दूसरों की मदद करने की प्रेरणा, शिक्षा के प्रति बच्चों को जागरूक बनाने, सहृदय बनने, दूसरों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने की प्रेरणा मिलती है। वहीँ, सबसे ज़रूरी है हमारा दूसरों के लिए बर्ताव कैसे है।
उत्तर: तातुश को जिंदगी का अनुभव था। वे जानते थे कि शिक्षा से व्यक्ति का जीवन, रहन-सहन बदल जाता है तथा व्यक्ति अधिक सभ्य एवं समाजसेवी नागरिक बनता है। इसीलिए वे लेखिका को इतना पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
उत्तर: जब बेबी हालदार अपने पति से अलग अपने बच्चों के साथ रह रही थी, उसकी आर्थिक और सामाजिक हालत बहुत ही ख़राब थी। वह अपने लिए काम ढूंढती, लेकिन निराश नहीं होती। उसने सीखा कि मेहनत से जीवन जीना है तो ठोकरे खानी पड़ती हैं। उसने यह भी सीखा कि बस काम के लिए लोग आपको पूछते हैं। सुनील के सहारे वो तातुश नाम के व्यक्ति से मिलती है और उसकी जिंदगी बदल जाती है।
बेरोजगार लेखिका से सुनील से काम के लिए कह रखा था, जिसे उसने पूरा भी किया। इस प्रकार उसके व्यवहार में परोपकार, सहानुभूति, सदयता तथा पर दुखकातरता जैसे मूल्य उभरकर सामने आते हैं।
यदि मैं सुनील की जगह होता तो लेखिका को हर प्रकार से मदद करने का आश्वासन देता। उसके लिए काम तलाशने का काम पहली प्राथमिकता के आधार पर करता। काम न मिलने तक मैं लेखिका के समक्ष आर्थिक मदद का भी प्रस्ताव रखता। काम मिलने पर उसकी पहचान की जिम्मेदारी मैं स्वयं लेता।
इस गद्यांश में बेरोजगारी की समस्या की झलक मिलती है। इसे दूर करने के लिए मैं अनपढ़ों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करता तथा लोगों की शिल्प प्रशिक्षण लेने की प्रेरणा देता।
‘आज बच्चों का अनपढ़ रहना कल के समाज पर बोझ बन जाएगा।” इस कथन से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। अनपढ़ बच्चे अपने जीवन में कोई विशेष प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर पाएंगे। ऐसे में वे आजीवन मजदूर बनकर रह जाएँगे। उचित कौशल के अभाव में शायद वे अपराध की ओर कदम बढ़ा दें और समाज-देश के लिए अपना योगदान न दे सकें।
साहब’ के व्यक्तित्व से परोपकार, सदस्यता, दूसरों के जीवन में उजाला फैलाने जैसे मूल्यों को अपनाना चाहेंगे।
यदि मैं ‘साहब’ की जगह होता तो लेखिका को अन्यत्र काम करने के लिए प्रोत्साहित न करता, क्योंकि समाज में अकेली रह रही औरत के प्रति कुछ लोगों का दृष्टिकोण अच्छा नहीं होता। ऐसे लोग इस तरह की औरतों से अनुचित फायदा का अवसर खोजते रहते हैं।
मैं ‘साहब’ के व्यक्तित्व को समाज के लिए प्रेरणादायक मानता हूँ. क्योंकि उन्होंने अपने घर में काम करने वाली को भरपूर सम्मान दिया और उसकी मदद की। उन्होंने अपने अनुभव के कारण ही लेखिका को अन्यत्र काम करने से मना ही नहीं किया वरना लेखिका के सारे खचों का भी ध्यान रखते थे।
यदि मैं लेखिका जैसी परिस्थितियों में जी रहा होता मैं भी अपने बच्चों की शिक्षा का समुचित प्रबंध करने के लिए चिंतित रहता, क्योंकि अनपढ़ बच्चे बाद में समाज पर बोझ साबित होते हैं।
कोलकाता की शर्मिला दीदी ने लेखिका को अपने घर आने का निमंत्रण दिया तथा सजने-सँवरने आदि की बात कही। सजने-संवरने की बात पर लेखिका को हैरानी होती है। बचपन से ही उसे सजने का शौक नहीं था। उसे ये काम फालतू के लगते थे। उसने देखा कि लड़कियाँ व बहुएँ घंटों शीशे के सामने खड़ी होकर श्रृंगार करती हैं। वे नयी साड़ी पहनती हैं ताकि पति उनकी तारीफ करे। वे दूसरों से प्रशंसा भी चाहती हैं। कई प्रकार के गहने पहनकर वे घूमने जाती हैं। लेखिका स्वयं को औरों से अलग मानती है। वह तो शादी के बाद भी इन चीजों से दूर रही। उसने सीधी तरह कंघी करके माँग से सिंदूर लगाना ही सीखा था।
शर्मिला दी कोलकाता में रहती थीं। वह बेबी को हिंदी में चिट्ठयाँ लिखती थीं। उनकी चिट्ठयों में अलग तरह की ही बात होती थी। बेबी सोचती थी कि वे भी तो घर के काम के लिए कोई लड़की रखी होंगी। क्या वह उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करती होंगी जैसा मेरे साथ। उसे तो वह किसी के घर काम करने वाली लड़की की तरह नहीं देखतीं और चिट्ठयाँ भी अपनी बाँधवी की तरह लिखती हैं। तातुश उसकी चिट्ठयों को पढ़कर सुनाते तो वह अपनी टूटी-फूटी बांग्ला में उन्हें लिख लेती थी। उदास होने पर वह इन्हें पढ़ती तथा प्रसन्न होती थी।
तातुश ने बेबी को काम पर रखा। वे उसके बच्चों के बारे में पूछते हैं तथा उन्हें स्कूल में भेजने के लिए उसे प्रेरित करते हैं। वे बच्चों के स्कूल में प्रवेश के लिए बेबी की मदद करते हैं। जब बेबी उन्हें दूसरे घर में काम तलाशने के लिए कहती तो वे उसे दूसरी कोठी में काम न करने की सलाह देते थे। वे कहते तो कुछ न थे, परंतु कुछ ऐसा सोचा करते थे कि बेबी को महसूस होता था कि वे बेबी के प्रति माया रखते हैं, कभी-कभी वे बरतन पोंछ रहे होते थे तो कभी जाले ढूँढ़ रहे होते थे।
सुनील तीस-बत्तीस साल का युवक था जो एक कोठी में ड्राइवर का काम करता था। बेबी ने उसे कहीं काम दिलवाने के लिए कह रखा था, जब सुनील को पता चला कि बेबी को डेढ़ सप्ताह से कोई काम नहीं मिला तो वह उसे तातुश के घर ले गया। उनसे बातचीत करके उसने बेबी को उनके घर का काम दिला दिया।
तातुश ने बेबी की पढ़ने-लिखने में रुचि देखी तो उसने उसे पेन व कॉपी दी तथा लिखने को कहा। उसने कहा कि होश संभालने के बाद से अब तक की जितनी भी बातें तुम्हें याद आएँ, सब इस कॉपी में रोज थोड़ा-थोड़ा लिखना। पेन-कॉपी लेकर बेबी सोचने लगी कि इसका तो कोई ठिकाना नहीं कि जो लिखेंगी, वह कितना गलत या सही होगा। तातुश ने पूछा तो वह चौंक पड़ी। उसने कहा कि सोच रही थी कि लिख सकूंगी या नहीं।
तातुश के घर पर बेबी को बहुत सुविधा व सहायता मिली, परंतु उसे अपने बड़े लड़के की याद आती थी। उसकी सूचना दो महीने से नहीं आई थी। जो लोग उसके लड़के को लेकर गए थे, उनके दिए पते पर वह लड़का नहीं रहता था। उसने कुछ दूसरे लोगों से पूछा तो किसी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। इसलिए वह कभी-कभी उदास हो जाती थी।
MCQs
आलो आंधारि पाठ के MCQs नीचे दिए गए हैं-
A. कुमार गंधर्व
B. अनुपम मिश्र
C. बेबी हालदार
D. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: C
A. दो
B. तीन
C. चार
D. पाँच
उत्तर: B
A. सुनील
B. भोला दा
C. उसके भाई
D. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: A
A. ₹500
B. ₹800
C. ₹1000
D. ₹1200
उत्तर: B
A. 35 से 40
B. 40 से 45
C. 45 से 50
D. 50 से 55
उत्तर: A
A. चौथी तक
B. पाँचवी तक
C. छठी तक
D. सातवीं तक
उत्तर: D
A. पिता
B. बाबा
C. तातुश
D. पापा
उत्तर: C
A. एक
B. दो
C. तीन
D. चार
उत्तर: C
A. एक
B. दो
C. तीन
D. चार
उत्तर: C
A. सुनील
B. जेठू
C. भोला दा
D. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: B
FAQs
सुनील से बेबी ने उसे कहीं काम दिलवाने के लिए कह रखा था, जब सुनील को पता चला कि बेबी को डेढ़ सप्ताह से कोई काम नहीं मिला तो वह उसे तातुश के घर ले गया। उनसे बातचीत करके उसने बेबी को उनके घर का काम दिला दिया।
‘तातुश’ का अर्थ होता है, पिता के समान व्यक्ति।
आलो आंधारि पाठ की लेखक का नाम बेबी हालदार है।
लेखिका बेबी हालदार का जन्म जम्मू कश्मीर में हुआ था।
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