उत्तर: सूरदास की भक्ति भावना सखा भाव पर आधारित है, जिसे प्रेमलक्षणा भक्ति भी कहा जाता है। उनका सम्पूर्ण काव्य कृष्ण-प्रेम और माधुर्य रस से ओत-प्रोत है। उन्होंने विशेष रूप से कृष्ण की बाल लीलाओं, गोपियों के साथ रासलीलाओं तथा ब्रज की भावनात्मक संस्कृति का अत्यंत भावुक एवं सजीव चित्रण किया है।
सूरदास लीला-भक्ति मार्ग के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी भक्ति भावना में साधक और भगवान के बीच घनिष्ठ आत्मीयता देखने को मिलती है। वे भगवान कृष्ण को केवल ईश्वर नहीं, बल्कि मित्र, प्रेमी और आत्मीय मानते हैं।
उनकी भक्ति का आधार वल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्ग है, जिसमें श्रद्धा, समर्पण और निष्काम प्रेम को प्रमुख स्थान प्राप्त है। इसीलिए सूरदास की भक्ति भावना भावनात्मकता, माधुर्य और आत्मीयता से परिपूर्ण है।
अन्य प्रश्न
- उपर्युक्त पद में गोपियों की कौन-सी विशेषता प्रकट हो रही है?
- पहले के भले लोगों का कैसा स्वभाव होता था?
- सूरदास जी ने उद्धव एवं कमल-पत्र में क्या समानता बताई है?
- गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है और क्यों?
- ‘प्रीति-नदी में पाउँ न बोर्यो’ के माध्यम से गोपियाँ उद्धव से क्या कहना चाहती हैं?
- कृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश सुन गोपियाँ हताश और कातर क्यों हो उठीं?
- गोपियाँ अब धैर्य क्यों नहीं रख पा रही हैं?
- सु तौ ब्याधि हमकों लै आए यहाँ गोपियों ने ‘व्याधि’ किसे माना है और क्यों?
- “ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए” – गोपियों ने इससे किस पर व्यंग्य किया है?
- “राजधरम तौ यहै” इस कथन के माध्यम से सूरदास ने किस जीवन-सत्य का बोध कराया है?
- अष्टछाप के कवियों का नामोल्लेख कीजिए। इसकी स्थापना का श्रेय किसे दिया जाता है?
- “ऊधो, तुम हौ अति बड़भागी” – इसमें किन लोगों पर व्यंग्य है? सूरदास ने इसके माध्यम से क्या सन्देश दिया है?
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