उत्तर: सूरदास के पदों की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी वाग्विदग्धता, अर्थात् बोलने की सहज, प्रभावशाली और चतुराई भरी कला। वे गोपियों के माध्यम से ऐसी बातें कहवाते हैं, जो सतही दिखावे के पीछे गहरे भाव और व्यंग्य को दर्शाती हैं।
उदाहरण के लिए, जब गोपियाँ उद्धव से कहती हैं—”ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी,” तो वे सतह पर उनकी प्रशंसा करती हैं, लेकिन असल में व्यंग्य कर रही हैं कि तुम कितने अभागे हो जो कृष्ण के प्रेम के बावजूद उससे दूर रह गए।
इसी प्रकार योग-संदेश को गोपियाँ “कड़वी ककड़ी” और एक ऐसे रोग के समान बताती हैं, जिसे न समझा जा सकता है न सहा। यह रूपक उनकी भावुकता और तीव्र आलोचना को दर्शाता है।
जब वे कहती हैं—”इक अति चतुर हुतै पहिले ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए,” तो यहाँ कृष्ण की चतुराई की बात होती है, पर साथ ही गुरु उद्धव द्वारा दिया गया संदेश भी व्यंग्यपूर्ण ढंग से व्यक्त होता है।
अंत में, गोपियाँ अपने मन को वापस पाने की इच्छा प्रकट करती हैं, जो कृष्ण जाते समय उनके साथ चला गया था।
इस प्रकार, सूरदास की भाषा में सरसता और गहराई से भरा भाव तो है ही, साथ ही वाग्विदग्धता भी इतनी प्रबल है कि वह सीधे और परोक्ष दोनों रूपों में अर्थ व्यक्त करती है।
अन्य प्रश्न
- कृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश सुन गोपियाँ हताश और कातर क्यों हो उठीं?
- गोपियाँ अब धैर्य क्यों नहीं रख पा रही हैं?
- सूर की भ्रमरगीत परम्परा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए
- सु तौ ब्याधि हमकों लै आए यहाँ गोपियों ने ‘व्याधि’ किसे माना है और क्यों?
- “ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए” – गोपियों ने इससे किस पर व्यंग्य किया है?
- “राजधरम तौ यहै” इस कथन के माध्यम से सूरदास ने किस जीवन-सत्य का बोध कराया है?
- सूरदास की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
- अष्टछाप के कवियों का नामोल्लेख कीजिए। इसकी स्थापना का श्रेय किसे दिया जाता है?
- “ऊधो, तुम हौ अति बड़भागी” – इसमें किन लोगों पर व्यंग्य है? सूरदास ने इसके माध्यम से क्या सन्देश दिया है?
- सूरसागर में वर्णित ‘भ्रमरगीत’ का अभिप्राय बताइये।
- संकलित पदों में व्यक्त गोपियों की विरह-विवशता पर प्रकाश डालिए।
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