“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है…” इस कथन के आधार पर क्रोध के पक्ष या विपक्ष में अपना मत स्पष्ट कीजिए।

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samajik jeevan mein krodh ki zarurat barabar padti hai is kathan ke aadhar par krodh ke paksh ya vipaksh mein apna mat spasht kijiye
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उत्तर:

क्रोध के पक्ष में मत –

क्रोध सदैव नकारात्मक नहीं होता। यह कभी-कभी अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का माध्यम बनता है। जब कोई व्यक्ति या समाज अत्याचार सहते-सहते थक जाता है, तब क्रोध एक प्रेरक शक्ति बनकर न्याय की राह प्रशस्त करता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्लजी का कथन भी इसी सन्दर्भ में सत्य प्रतीत होता है।
उदाहरणस्वरूप, जब कोई दुष्ट व्यक्ति बार-बार अपमान करता है और कोई प्रतिक्रिया न हो, तो वह और साहसी हो जाता है। ऐसे में संयमित क्रोध ही उसे रोकेगा।
इसी तरह परशुराम जैसे घमंडी और क्रोधित योद्धा के सामने यदि लक्ष्मण चुप रहते, तो स्थिति और बिगड़ सकती थी। इसलिए लक्ष्मण की व्यंग्यात्मक प्रतिक्रिया आत्मरक्षा के रूप में आवश्यक थी। इस दृष्टि से क्रोध साहस, आत्मसम्मान और प्रतिकार का प्रतीक बन जाता है।

क्रोध के विपक्ष में मत –

क्रोध यदि नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो वह गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है। यह विवेक को नष्ट करता है और संबंधों में दरार डालता है। मनुष्य के श्रेष्ठ गुण जैसे विनम्रता, धैर्य और विवेक, क्रोध के आगे दब जाते हैं।
उदाहरण के लिए, लक्ष्मण की तीखी व्यंग्यात्मक वाणी ने परशुराम को इतना उत्तेजित कर दिया कि युद्ध की स्थिति बन गई। यदि राम ने लक्ष्मण को संकेत न दिया होता, तो संकट और भी गहरा हो सकता था।
इसलिए कहा गया है – “क्रोधेणावृतम् ज्ञानम्”, अर्थात क्रोध ज्ञान को ढँक देता है। अतः क्रोध से बचना चाहिए और धैर्यपूर्वक व्यवहार करना ही श्रेयस्कर है।

निष्कर्ष –

क्रोध यदि नियंत्रित और उद्देश्यपूर्ण हो तो यह सकारात्मक बन सकता है, परन्तु यदि वह सीमा लांघ जाए, तो विनाशकारी सिद्ध होता है। अतः परिस्थिति के अनुसार विवेकपूर्ण निर्णय आवश्यक है।

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