करुण रस कितने प्रकार के होते हैं?: Karun Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain

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Karun Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain
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प्रिय विद्यार्थियों करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है। इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव बिछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस (Karun Ras) कहते हैं।

करुण रस क्या है?

करुण रस का स्थायी भाव शोक है। किसी प्रिय व्यक्ति या वस्तु के नष्ट हो जाने पर ह्रदय में जो भाव उत्पन्न होता है, वही शोक होता है। बताना चाहेंगे जब शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग करता है तब करुण रस की निष्पति होती है। 

करुण रस का पहला उदाहरण 

रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना – विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।।

करुण रस का दूसरा उदाहरण 

शोक विकल सब रोवहिं रानी।
रूप सीलु सबु देखु बरख़ानी।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा।
परिहिं भूमि तल वारहिं बारा।।

रस किसे कहते हैं?

रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनंद’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। भारतीय आचार्य भरतमुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ में कहा है: “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसं निष्पत्तिः।” अर्थात् विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी भाव) के साथ जब स्थायी भाव का संयोग होता है तब रस की निष्पत्ति होती है।

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