‘इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥’ का भाव स्पष्ट कीजिए।

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इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना ।। का भाव स्पष्ट कीजिए
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उत्तर: इस चौपाई में लक्ष्मण परशुराम के क्रोध और शस्त्र प्रदर्शन पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि मैं कोई कुम्हड़बतिया नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी (उंगली) दिखाते ही डरकर मर जाऊँ। आपके पास फरसा और धनुष-बाण हैं—यह मैं जानता हूँ, और उन्हें भली-भाँति देख-परख कर ही मैंने आपसे कुछ कहा है।

मैं न तो निर्बल हूँ और न ही ऐसा मूर्ख जो बिना सोच-विचार के कुछ बोल दे। आपकी शस्त्रधारी मुद्रा मुझे डराने के लिए पर्याप्त नहीं है। मैंने जो भी कहा है, वह साहस, आत्मसम्मान और अभिमान के साथ कहा है। इसलिए मुझे कमज़ोर या डरपोक समझने की भूल न करें।

इस चौपाई के माध्यम से लक्ष्मण अपने कुल की वीर परंपरा, अपनी तर्कशीलता और आत्मगौरव को स्पष्ट करते हैं। वे परशुराम जैसे महायोद्धा से भी बिना डरे निडरता से बात करते हैं, जो उनके तेजस्वी और आत्मविश्वासी स्वभाव को दर्शाता है।

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