उत्तर: इस चौपाई में लक्ष्मण परशुराम के क्रोध और शस्त्र प्रदर्शन पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि मैं कोई कुम्हड़बतिया नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी (उंगली) दिखाते ही डरकर मर जाऊँ। आपके पास फरसा और धनुष-बाण हैं—यह मैं जानता हूँ, और उन्हें भली-भाँति देख-परख कर ही मैंने आपसे कुछ कहा है।
मैं न तो निर्बल हूँ और न ही ऐसा मूर्ख जो बिना सोच-विचार के कुछ बोल दे। आपकी शस्त्रधारी मुद्रा मुझे डराने के लिए पर्याप्त नहीं है। मैंने जो भी कहा है, वह साहस, आत्मसम्मान और अभिमान के साथ कहा है। इसलिए मुझे कमज़ोर या डरपोक समझने की भूल न करें।
इस चौपाई के माध्यम से लक्ष्मण अपने कुल की वीर परंपरा, अपनी तर्कशीलता और आत्मगौरव को स्पष्ट करते हैं। वे परशुराम जैसे महायोद्धा से भी बिना डरे निडरता से बात करते हैं, जो उनके तेजस्वी और आत्मविश्वासी स्वभाव को दर्शाता है।
इस पाठ के अन्य प्रश्न
- परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौनसे तर्क दिए?
- परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
- लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
- परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए।
- लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
- साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
- ‘बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
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