विजयदशमी एक ऐसा पर्व है, जिसे दुनियाभर में रहने वाले सनातन हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा हर साल बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दशहरा हर साल अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है, जो सनातन हिन्दू धर्म में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दशहरा एक ऐसा पर्व है जो मानव को धर्म के सद्मार्ग पर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। इस पर्व के अवसर पर आप अपने परिजनों के साथ कुछ विशेष शायरी साझा करके इस पर्व के उत्सव में चार चाँद लगा सकते हैं। इस ब्लॉग में आपको दशहरा पर शायरी (Shayari on Dussehra) दी गई हैं, जिन्हें आप अपने हितैषियों, परिजनों और दोस्तों के साथ साझा कर पाएंगे।
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दशहरा पर शायरी – Shayari on Dussehra
दशहरा पर शायरी (Shayari on Dussehra) कुछ इस प्रकार हैं, जिन्हें आप अपने मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों को साझा कर पाएंगे –
“फिर से खुशियों का लगने वाला जमघट गहरा है
सकारात्मकता की अलख जगाता ये पर्व दशहरा है…”
-मयंक विश्नोई
“धर्म की धरा पर सदा ही होगी जय-जयकार
अधर्म का समूल नाश करेगा ये पवित्र त्योहार…”
-मयंक विश्नोई
“मन में भक्ति रखकर, आशाओं की अलख जगाना
दशहरे के महोत्सव पर अपने आपसी मतभेद मिटाना…”
-मयंक विश्नोई
“प्रभु श्रीराम का जयघोष करेंगे मैं और तुम मिलकर
काटों में भी मुस्कुराएंगे, फूलों की तरह खिलकर…”
-मयंक विश्नोई
“दशहरे पर होगा निराशाओं का होगा सत्यानाश
जीवन में सभी के फैलेगा आशाओं का प्रकाश…”
-मयंक विश्नोई
“शुभ हो सभी के लिए दशहरे का त्योहार
धर्म का मार्ग चुनें हम, सबका हो उद्धार…”
-मयंक विश्नोई
“दशहरे के उत्सव में बेसुध होकर घूमना है
जीवनभर अब हमें सकारात्मकता का माथा चूमना है…”
-मयंक विश्नोई
“दशहरा ही प्रतीक है उत्साह और उमंग का
जयघोष जय श्री राम का ऐसी गवाही देता है…”
-मयंक विश्नोई
“जीवन का आनंद लेते रहें हम, दुःखों से पल्ला झाड़कर
खुशियां अँगना में आएं हमारे, ऐसा हो दशहरे का त्योहार…”
-मयंक विश्नोई
विजयदशमी की शायरी – Shayari on Dussehra in Hindi
विजयदशमी की शायरी (Shayari on Dussehra in Hindi) पढ़कर आप इन्हें शुभकामनाओं के तौर पर अपने परिजनों के साथ साझा कर पाएंगे। नवरात्रि पर शेर कुछ इस प्रकार हैं –
“जब किया था प्रभु श्री राम ने रावण का संहार
तभी धर्म रक्षकों ने मनाया था दशहरे का त्योहार…”
-मयंक विश्नोई
“बुराई पर अच्छाई की जीत
दशहरा है न्याय का प्रतीक…”
-मयंक विश्नोई
“भक्ति से भरा हुआ हर नर का भाव है
उत्सव की तैयारी करो, विजयदशमी आज है…”
-मयंक विश्नोई
“विजयदशमी की विजयगाथाएं गाए सारा संसार
सकारात्मकता का संचार करे ये अलौकिक त्योहार…”
-मयंक विश्नोई
“जीवन में आपके न हो कोई दुःख
विजयदशमी का पर्व संसार में लाए सुख…”
-मयंक विश्नोई
“उत्सव के उत्साह से घिरा हो आपका आँगन
विजयदशमी का पर्व कहलाता है पवित्र और पावन…”
-मयंक विश्नोई
“विजयदशमी का पर्व हमें धर्म का मार्ग दिखाता है
न्याय का ये पर्व हमें जीवन जीना सिखाता है…”
-मयंक विश्नोई
“भयमुक्त हो जाओ और इस पर्व का आनंद उठाओ
बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व विजयदशमी मनाओ…”
-मयंक विश्नोई
“इस विजयदशमी आपके यश का विस्तार हो
विश्व का कल्याण हो, धर्म की जय-जयकार हो…”
-मयंक विश्नोई
दशहरा पर मशहूर शायरों की शायरी – Dussehra Shayari in Hindi
दशहरा पर मशहूर शायरों की शायरी (Dussehra Shayari in Hindi) को आप अपने दोस्तों के साथ साझा कर पाएंगे, ये कुछ इस प्रकार हैं –
जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
-जमुना प्रसाद राही
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत ‘नज़ीर’
पर दिवाली भी अजब पाकीज़ा-तर त्यौहार है
-नज़ीर अकबराबादी
‘नज़्र’ फिर आया है इक रस्म निभाने का दिन
सज सँवर के सभी रावन को जलाने निकले
-नज़्र फ़ातमी
अब नाम नहीं काम का क़ाएल है ज़माना
अब नाम किसी शख़्स का रावन न मिलेगा
-अनवर जलालपुरी
अच्छों से पता चलता है इंसाँ को बुरों का
रावन का पता चल न सका राम से पहले
-रिज़वान बनारसी
अब भी खड़ी है सोच में डूबी उजयालों का दान लिए
आज भी रेखा पार है रावण सीता को समझाए कौन
-अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
क़दम क़दम हैं रावन लेकिन
निर्बल के बस राम बहुत हैं
-सब बिलग्रामी
ये मंज़िल-ए-हक़ के दीवानो कुछ सोच करो कुछ कर गुज़रो
क्या जाने कब क्या कर गुज़रे ये वक़्त का रावन क्या कहिए
-पंडित विद्या रतन आसी
दर्द घनेरा हिज्र का सहरा घोर अंधेरा और यादें
राम निकाल ये सारे रावन मेरी राम कहानी से
-सय्यद सरोश आसिफ़
दशहरा पर मशहूर नज़्म
दशहरा पर मशहूर नज़्म कुछ इस प्रकार हैं, जिन्हें आप अपने दोस्तों के साथ साझा कर पाएंगे –
दसहरा
है दसहरा यादगार-ए۔अज़्मत۔ए۔हिन्दोस्ताँ
हिंदुओं की इक क़दीमी फ़त्ह-ओ-नुसरत का निशाँ
इक मिटी सी ये निशानी दौलत-ओ-इक़बाल की
याद दिलवाती है उन अय्याम-ए-फ़र्रुख़-फ़ाल की
जब कि थी हम में भी ऐसे ज़ोर-ओ-ताक़त की नुमूद
हेच थी दीवान रोएँ तन की जिस से हस्त-ओ-बूद
जब अकेले उठ खड़े होते थे हम बहर-ए-नबर्द
और कर देते थे अपने दुश्मनों को गर्द गर्द
दिल में हिम्मत हाथ में अपने फ़क़त शोर-ए-अल-अमाँ
बाँध कर वो पुल समुंदर को किया हम ने उबूर
जिस को हैराँ देख कर हैं आज भी अहल-ए-शुऊ’र
फ़ौज-ए-रावन ला-तअ’द थी रेग-ए-सहरा की तरह
और उमँड आई थी वक़्त-ए-जंग दरिया की तरह
रावन-ए-खूँ-ख़्वार और वो कोह-पैकर इस के देव
जिन की ख़ूँ-ख़्वारी का था सारे ज़माने में ग़रीव
क़िला वो लंका का जो ना-क़ाबिलुत्तसख़ीर था
जिस पे नाज़ाँ अपने दिल में रावन-ए-बे-पीर था
थे तिलाई बुर्ज जिस के और मुरस्सा बाम-ओ-दर
जिन की चोटी पर न पहुँचे कोई मुर्ग़-ए-तेज़-पर
सौदा-ए-लाल-ओ-जमुर्रद थी वहाँ की ख़ाक भी
इक तिलिस्म ऐसा कि क़ासिर था जहाँ और इक भी
हम ने ऐसे दुश्मनों पर फ़त्ह पाई थी कभी
अपने हिस्से में भी ये मोजिज़-नुमाई थी कभी
आज वो दिन है कि हम उस याद को ताज़ा करें
रू-ए-ज़ेबा-ए-उरूस-ए-फ़त्ह पुर ग़ाज़ा करें
मिल के गाएँ राम के गुन दिल में हो जोश-ए-सुरूर
क़ल्ब-ए-साफ़ी मख़्ज़न-ए-वहदत हो सीना रश्क-ए-तूर
ये दसहरा अश्रा-ए-इशरत है अपने वास्ते
ख़ालिक़-ए-कौनैन की ने’मत है अपने वास्ते
-मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
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