भारतीय संस्कृति में मनाए जाने वाले कई सुप्रसिद्ध पर्वों में एक पर्व गणेश चतुर्थी का भी होता है, सही मायनों में ये पर्व एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्वों में से एक है। इस पर्व में भगवान गणेश की उपासना करके बेहतर स्वास्थ्य, बुद्धि और समृद्धि की कामना की जाती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि का देवता माना जाता है, इसी कारण से हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ काम को करने से पहले भगवान गणेश की वंदना की जाती है। इस ब्लॉग में आपको गणेश चतुर्थी पर विशेष कविता (Poem on Ganesh Chaturthi in Hindi) पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, जिनके माध्यम से आप आस्था और विश्वास के साथ गणेश चतुर्थी के इस पर्व को मना पाएंगे।
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गणेश चतुर्थी पर विशेष कविता – Poem on Ganesh Chaturthi in Hindi
गणेश चतुर्थी पर विशेष कविता (Poem on Ganesh Chaturthi in Hindi) पढ़कर आप आस्था के इस महापर्व को पूरे हर्सोल्लास के साथ मना पाएंगे। ये कविता कुछ इस प्रकार हैं –
गणपति उत्सव
कितना रूप राग रंग
कुसुमित जीवन उमंग!
अर्ध्य सभ्य भी जग में
मिलती है प्रति पग में!
श्री गणपति का उत्सव,
नारी नर का मधुरव!
श्रद्धा विश्वास का
आशा उल्लास का
दृश्य एक अभिनव!
युवक नव युवती सुघर
नयनों से रहे निखर
हाव भाव सुरुचि चाव
स्वाभिमान अपनाव
संयम संभ्रम के कर!
कुसमय! विप्लव का डर!
आवे यदि जो अवसर
तो कोई हो तत्पर
कह सकेगा वचन प्रीत,
‘मारो मत मृत्यु भीत,
पशु हैं रहते लड़कर!
मानव जीवन पुनीत,
मृत्यु नहीं हार जीत,
रहना सब को भू पर!’
कह सकेगा साहस भर
देह का नहीं यह रण,
मन का यह संघर्षण!
‘आओ, स्थितियों से लड़ें
साथ साथ आगे बढ़ें
भेद मिटेंगे निश्वय
एक्य की होगी जय!
‘जीवन का यह विकास,
आ रहे मनुज पास!
उठता उर से रव है,
एक हम मानव हैं
भिन्न हम दानव हैं!’
-सुमित्रानंदन पंत
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गणपति बब्बा आइयो
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
इते परो बुद्धि को टोटा सद्बुद्धि लेतैयो।
वायुयान सुरक्षित नइहां बा में सफर मती करियो
रोड हो गये उबड़ खाबड़ बस में पाँव नहीं धरियो
मूषा छोड़ कबहुँ धोखे से रेल में मत चढ़ जइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
करियो मती अबेर तनिक दिनछित मुकाम पे आजइयो
बिजली को कछु नहीं ठिकानो मती भरोसे में रहियो
बीच सड़क में खुदी तलैंयें कींच में मत धस जइयो
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
अबकी साल पढान गुरु जी कक्षा में नहिं आ रहे हैं
घर-घर घूमत फिरें गाँव में वोटर लिस्ट बना रहे हैं
आये परीक्षा सपने में पेपर आउट कर दइयो
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
हो रहे अबहिं चुनाव सबइर अपनी-अपनी चिल्ला रहे हैं
आश्वासन वादों के मन के लड्डू खूब खिला रहें हैं
बचके रहियेगा तुम चुनाव को चिन्ह मती बन जइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
नकली भगत तुम्हारे तुमको गोदी में बैठा लेंगे
कंधों पर ले ले के तुमको सारो शहर घुमा देंगे
मोदी और बघेला के चक्कर में मत पड़ जइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
सबरो दूध गाँव को बाबू व्यर्थ चाय में खो रहे हैं
खाके तेल मिलावट बारो हम सब कांटे हो रहे हैं
तुम्हहिं उते से कामधेनु को देशी घी लेत अइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
निर्भय हो बंदूकें लेके घूम रहे हैं हत्यारे
भये अनाथ कई मोड़ा-मोड़ी भटक रहे मारे-मारे
तुम आतंकवादियों की अब खाल में भुस भर दैयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
पैसा बारे तुम्हें बतेंहैं सोना चाँदी और मेवा
हम फट्टी पे बैठन वारे का कर पाएँगे सेवा
तुम महलों को मेवा तजके साग हमारो खइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋद्धि सिद्धि लइयो।
–शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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जय हो गणेश
जय हो गनेश, प्रथम तुमका मनाय लेई,
कारज के सारे ही विघ्न टल जायेंगे!
नाहीं तो देवन के दफ़्तर में गुजर नहीं,
तुमका मनाय सारे काज सर जायेंगे!
सारे पत्र-बंधन के तुम ही भँडारी हो,
हमरे निवेदन को पत्र तुम करो सही,
हमसों पुजापा लेइ आगे बढ़ाय देओ!
बाबू हैं गनेस, तिन्हें पूज लेओ पहले ई!
दस चढ़ाय देओ, ई हजार बनवाय दिंगे
कलम की मार बड़े-बड़े नाचि जायँगे,
उदर बिसाल सब चढ़ावा समाय लिंगे
इनकी किरपा से सारे संकट कटि जाहिंगे!
कहूँ जाओ द्वारे पे बैठे मिलि जावत हैं,
देखत रहत कौन, काहे इहाँ आयो है!
कायदा कनून तो जीभै पे धर्यो है पूरो!
नाक बड़ी लंबी, सूँघ लेत सब उपायो हैं
चाहे लिखवार, तबै लिखन बैठ जाइत हैं
क्लर्की निभात बड़े बाबू पद पायो है.
वाह रे गनेस, तोरी महिमा अपार
आज तक किसउ से जौन बुद्धि में न हार्यो है!
विधना के दफ़्तर के इहै बड़े बाबू हैं
पूजै प्रथम बिना तो काजै न होयगो,
सारी ही लिखा-पढ़ी इनही के हाथ,
जौन उनते बिगार करे जार-जार रोयगो!
हाथन में लडुआ धरो, पत्र-पुस्प अर्पन करो,
सुख से निचिंत ह्वैके जियो जिय खोल के
पहुँचवारे पूत, रुद्र और चण्डिका के है जे,
इनके गुन गान करो, सदा जय बोल के!
-प्रतिभा सक्सेना
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गणपति का विवाह
ऋद्धि-सिद्ध हेतु वर की खोज -,बर खोजन चले विधना!
दुइ कन्या गुनखानी !
‘ऋद्धि-सिद्धि दोउ जुड़वाँ बहिनी अब लौ क्वाँरी रहलीं,
का सों का भइल सँजोग ‘,विधात्री आकुल विधि सों कहिलीं !
‘सुघर सयानी दोनिउ बहिनी बहुत जतन सों पालीं,
सुर नर देखि सिहावैं न जनौ केहिके भाग जगइलीं!
सब विध सुन्दर कल्याण!’
बर खोजन की ठानि मनहिं मन ठाड़े भै बिधना,
लायक लरिका होय न जने दौरन परि है केतना !
सतुआ बाँध निकलि गे घर ते काँधे डारि अँगौछा,
बाँधि गठरिया धरि लीनो तिन संग डोर औ’ लोटा!
मन में चिन्त समानी!
सूरज तपत ,चंद्रमा रोगी अइसन बर ना चहिले,
पवनदेव को ठौर-ठिकाना केऊ जान न पइले
देवराज के देखि चरित्तर मुँह घुमाइ हँस रहिले,
पुरुसोत्तम हरि सेसनाग परि छीरसिन्धु में सोइले!
शिव-शंकर अवढर दानी, तौन बर खोजन…
सोर भयो सब लोकन में बर खोजन विधना आय़ेल
ऋषि-मुनि ललचैं रिधि-सिधि कारन ,जप-तप सबै हेराइल,
कौन उपाय मिलहि कन्या, जागी हिय अस अभिलासा,
भारी सोच कौन विध जीत लेहुँ विधि को बिसबासा!
मति सबहिन केर हिरानी ! तौन बर खोजन
तीनहुँ लोक कउन अस जन्म्यो कन्यन के संजोगे,
घूमि,घूमि थक गइले विधना कोउ न लग अनुरूपे!!
आइ देवता सारे सजि-बजि , बढि आपुन गुन बरनै!
विधि विसमित अब हँसैं कि रोवैं ,सिर पीटत खिसियौंने!
का सों कहों कहानी! तौन बर खोजन
देवि सुरसती दया लागि -‘ काहे कैलास न गइले,
दुइ कुमार गिरिजा के अब तो ब्याहन लायक भइले
अन्नपूरणा सासु ,बहुरियाँ रिधि-सिधि अनुपम जोगा,
अरपन करि निज कर सों नरियल तुरतै करो बरीच्छा!
आपुन मन में ठानी!’ तौन बर खोजन
देखि नारियल ,कुँवर मुदित भे ,हर-गिरजा हरषइले,
घूम मचिल सारे शंकर गण ताली दै-दै नचिले!
गौरा हँस चुप रहलीं ,बोलेल विधना ते तुरतै हर,
‘पहिल परिच्छा होइल करबे काहू को केहि का बर!
दोउ कन्या गुनखानी!’ तौन बर खोजन
षड्मुख -गणपति देखि आँख भऱ विधना सब सुख लहिले,
कोउ ब्याहिल पीछे तो का , कोऊ ब्याहिल पहिले!
‘परिकरमा तीनिहुँ लोकन करि जौन पहिल जस लहिले
समरथ होइल , गुणमंती कन्या सो निहचय पइले!
इहाँ न कोउ मनमानी !’ जबै बर खोजन चले बिधना!
तौन बर खोजन…”
-प्रतिभा सक्सेना
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