शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास जिनमें दिखता है समाज की सच्चाईयों का आईना

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शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास

आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘नयी कहानी आंदोलन’ के आरम्भकर्ताओं में से एक शिवप्रसाद सिंह जो न केवल प्रतिष्ठित साहित्यकार बल्कि शिक्षाविद भी थे। उन्होंने साहित्य की गद्य विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया हैं। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में कई कहानी-संग्रह, उपन्यास, नाटक, निबंध-संग्रह, ललित-निबंध, जीवनी, समीक्षा, रिपोर्ताज और संपादन लिखे हैं। उनके उपन्यासों में सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषयों की जटिलताओं को चित्रित किया गया है। इस ब्लॉग में शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास के बारे में जानेगें।

शिवप्रसाद सिंह का जीवन परिचय

शिवप्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1928 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में जलालपुर नामक गांव में एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘चंद्रिका प्रसाद सिंह’ व माता का नाम ‘कुमारी देवी’ था। शिवप्रसाद सिंह ने वर्ष 1954 में ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ में प्राध्यापक के रूप में करियर की शुरुआत की थी। इसी दौरान साहित्य के क्षेत्र में उनका पर्दापण हो गया था। 31 अगस्त, 1988 में प्रोफेसर पद से सेवानिवृत होने के बाद भी वे ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’, ‘साहित्य अकादमी’ और ‘बिरला फाउंडेशन’ से संबद्ध रहे। उन्हें कई साहित्य अकादमी पुरस्कार, हिंदी संस्थान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार सहित कई पुरस्कार और सम्मान से नवाज़ा गया। 28 सितंबर 1998 को 70 वर्ष की आयु में उनका बनारस में निधन हो गया।

शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास

उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी का जादू बिखेरा है। शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास उनकी साहित्यिक दृष्टि और भारतीय समाज के विविध पहलुओं की गहन समझ को प्रकट करते हैं। शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों को भी गहराई से प्रभावित करते हैं। शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास कुछ इस प्रकार हैं-

  • अलग-अलग वैतरणी
  • गली आगे मुड़ती है
  • वैश्वानर
  • शैलूष
  • मंजुशिला
  • नीला चाँद
  • दिल्ली दूर है
  • औरत
  • कुहरे में युद्ध

अलग-अलग वैतरणी 

शिव प्रसाद सिंह जी द्वारा रचित उपन्यास कालम्फसी ‘अलग अलग वैतरणी’ में भारतीय गाँवों के प्रतिनिधि के रूप में ‘करैता’ गाँव का अत्यन्त यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत किया गया है। आजादी के बाद भारतीय जीवन की कठिनाइयों और वास्तविकताओं को समझने के लिए इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन की खास पहचान को दर्शाने की कोशिश की गई है।

गली आगे मुड़ती है

शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास “गली आगे मुड़ती हैं” में धार्मिक आडंबर, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गुंडई, बाढ़, हिंदी भाषा आंदोलन, पुलिस कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, ग्राहकों को ठगने की समस्या, अश्लिलता, आतंकवाद, जातिवाद आदि समस्याओं की तस्वीर देखने को मिलती हैं। इस उपन्यास में ये समस्याएं गहराई से चित्रित नहीं हो पायी हैं, क्योंकि इस उपन्यास का उद्देश्य समाज समाज की भलाईयाँ-बुराईयाँ दिखाना नहीं है। इसका उद्देश्य है युवा शक्ति की उर्जा और लोगों की हारी हुई मानसिकता के बारे में सोचना। इस उपन्यास में चित्रित सामाजिक समस्याएँ लेखक की समाज के प्रति प्रतिबध्दता और जुड़ाव को सिद्ध करती हैं। समस्याएँ संकेतमात्र होकर भी उसमें गहरी चुभन है।

वैश्वानर

शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास ‘वैश्वानर’, जिसका शाब्दिक अर्थ अग्नि या आग होता है। वह आग जिसे वैदिक मान्यताओं में स्वयं भी पवित्र माना जाता है और ये भी माना जाता है कि ये जिसे छुएगी उसे भी पवित्र कर देती है। ये मुख्यतः धन्वन्तरि नाम के एक वैद्य की कहानी के साथ-साथ चलता उपन्यास है।

शैलूष

शैलूष एक आलोचक उपन्यास है जिसमें दलित जीवन की तस्वीर देखने को मिलती है। दलित जीवन के अंतर्गत इसमें स्थित अंधविश्वास, उनके तीज त्यौहार, उनकी रूढी परंपरा, उनके विवाह संस्कार, उनकी देवी-देवता संबंधी मान्यताएँ, उनका बलिप्रथा में विश्वास, उनकी आर्थिक स्थिति और रहन-सहन, निवास व्यवस्था, उनकी शिक्षा संबंधी धारणा, जातीय भेदभाव, जातीय पंचायत, संगठन और समूह भावना, राजनीतिक स्थिति, लोककथा, लोकगीत आदि पर रोशनी डाली है।

नीला चाँद 

कुछ ऐसे सवाल और घटनाएं होती हैं जो रहस्मयी और विस्मयी होते हैं उन्हें विरल घटनाओं को नाम दिया गया है इसी और खींचता है शिवप्रसाद सिंह का उपन्यास ‘नीला चाँद’। क्या इस दुनिया में हम अकेले हैं और क्या धरती के अलावा ये पूरा अंतरिक्ष बंजर है? क्या इस अनंत आकाश में धरती जैसा कहीं कोई एक भी ग्रह नहीं है? ये तमाम वे सवाल हैं जो इंसानी दिमाग को सदियों से उलझन में डालते आए हैं लेकिन आज विज्ञान की नजर से हम इन तमाम सवालों के जवाबों को इस उपन्यास में पिरोया गया है। इस उपन्यास के लिए उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 

कुहरे में युद्ध और दिली दूर है

‘कुहरे में युद्ध या ‘दिल्ली दूर है’ उपन्यासों में इतिहास और संस्कृति के कितने ही अर्थ परत-दर-परत खुलते हैं। जो भयावहता ‘कुहरे में युद्ध जैसे उपन्यास में उभरी है उसका लेखा-जोखा हमें किसी इतिहास में नहीं मिल सकता।

FAQs

नीला चाँद उपन्यास के लेखक कौन है?

नीला चाँद उपन्यास के लेखक शिव प्रसाद सिंह है।

शिवप्रसाद सिंह का जन्म कब हुआ था?

शिवप्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त 1928 में हुआ था। 

शिवप्रसाद सिंह ने कौन-कौनसे से उपन्यास लिखे?

शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित उपन्यास – अलग-अलग वैतरणी, गली आगे मुड़ती है, वैश्वानर, शैलूष, मंजुशिला, नीला चाँद, दिल्ली दूर है, औरत, कुहरे में युद्ध हैं।

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