OSI Model in Hindi: OSI मॉडल क्या है? जानें OSI मॉडल के 7 लेयर, फीचर्स, फायदे और उनके कार्य

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OSI Model in Hindi

 

OSI Model in Hindi: OSI मॉडल की फुल फॉर्म – Open Systems Interconnection Model है। यह एक ऐसी अवधारणा है जो नेटवर्किंग के विभिन्न पहलुओं को समझाने और उनके मानकीकरण के लिए उपयोग में लाई जाती है। वर्ष 1984 में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (ISO) द्वारा इसे विकसित किया गया था, जिसका उद्देश्य नेटवर्किंग की जटिलताओं को समझने की दिशा में आगे बढ़ना था। OSI मॉडल सात परतों (layers) में नेटवर्किंग प्रक्रियाओं को विभाजित करता है, जिससे नेटवर्क के विभिन्न घटकों के बीच इंटरऑपरेबिलिटी (interoperability) सुनिश्चित होती है। इस ब्लॉग में आपके लिए OSI मॉडल (OSI Model in Hindi) की विस्तृत जानकारी दी गई है। OSI Model के बारे में जानने के लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।

OSI मॉडल किसे कहते हैं? 

OSI मॉडल का पूरा नाम Open System Interconnection Model हैं। OSI model in Hindi एक रेफेरेंस मॉडल है जिसका उपयोग वास्तविक जीवन में नही होता है, इसका उपयोग  केवल रेफेरेंस मॉडल के रूप में किया जाता है। OSI मॉडल को इंटरनैशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर स्टैंडर्डाइज़ेशन ने  सन् 1984 में विकसित किया था | OSI मॉडल नेटवर्क में डेटा या जानकारी कैसे सेंड और रिसीव होगी इसे विस्तृत करता है। OSI मॉडल, किसी नेटवर्क में दो उपयोगकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन के लिए एक रेफेरेंस मॉडल है।

इस मॉडल में 7 लेयर्स होती है जो एक-दूसरे से जुड़ी नहीं होती है। OSI मॉडल की प्रत्येक लेयर एक- दूसरे पर निर्भर नहीं रहती है लेकिन डेटा का ट्रांसमिशन एक लेयर से दूसरी लेयर में होता है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर का अपना अलग काम होता है जिससे डाटा आसानी से एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक पहुंच सके। OSI मॉडल, वर्ल्ड वाइड कंमुनिकेशन नेटवर्क का एक ISO स्टैंडर्ड मॉडल है जो एक नेटवर्किंग फ्रेमवर्क को डिफाइन करता है जिससे की प्रोटोकॉल्स को उसकी 7 लेयर्स में इम्प्लीमेंट किया जा सके । यहाँ एक लेयर सैद्धांतिक रूप से तुलनीय कार्य का एक वर्गीकरण होता है जो नीचे वाली लेयर से सर्विस पाती है और ऊपर वाली लेयर को सर्विस ऑफर करती है। इसमे एक लेयर से दूसरी लेयर तक प्रोसेसिंग कण्ट्रोल एक्ससीड होता है और ये प्रोसेस आखिर लेयर तक चलता है। इसमे प्रोसेसिंग, बॉटम लेयर से स्टार्ट होकर पूरे चैनल से होती हुई आगे के स्टेशन मे जाती है फिर वापस अपनी हायरार्की मे आ जाती हैं। 

इसे OSI क्यों कहा जाता है? 

इस मॉडल को Open System Interconnection (OSI) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मॉडल किन्हीं दो अलग-अलग सिस्टम को आपस मे कम्यूनिकेट करने के लिए अनुमति देता है फिर चाहे उनका इंटरनल आर्किटेक्चर कैसा भी हो। इसलिए OSI रेफेरेंस मॉडल दो अलग-अलग सिस्टम के बीच ओपन कम्युनिकेशन करती है, इसके लिए उसके इंटरनल हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में कोई भी बदलाव करने की जरूरत नहीं होती है। यह मॉडल, लॉजिकल फंक्शन और सेट ऑफ़ रूल्स को ग्रुप्स में कर देता हैं, जिन्हें प्रोटोकॉल्स कहा जाता है। दो या दो से ज्यादा सिस्टम के बीच कम्युनिकेशन स्थापित और कंडक्ट करने के लिए लॉजिकल फंक्शन और सेट ऑफ़ रूल्स को ग्रुप्स में करना जरूरी होता है। इंटरनेट नेटवर्किंग और इंटर कंप्यूटिंग के लिए  OSI रेफेरेंस मॉडल को अब एक प्राइमरी स्टैण्डर्ड माना जाता है। 

OSI मॉडल की लेयर्स

तो अभी तक आप OSI model in Hindi इस बारे में जान गये होंगे तो अब चलते है OSI मॉडल के लेयर्स की तरफ। OSI मॉडल मे  7 लेयर्स होती है तथा इन सभी लेयर्स का अपना कार्य होता है तथा ये  सभी लेयर्स आपस में इंटरकनेक्टेड नहीं होती केवल एक लेयर से दूसरी लेयर में ट्रांसमिशन होता है। OSI मॉडल की 7 लेयर्स में नेटवर्क या डेटा कंमुनिकेशन को परिभाषित किया जाता है। इन सातों लेयर्स को तीन ग्रुप्स विभाजित किया जाता है – नेटवर्क, ट्रांसपोर्ट और एप्लीकेशन लेयर |

OSI मॉडल की लेयर्स –

  • फिजिकल लेयर
  • डेटा लिंक लेयर
  • नेटवर्क लेयर
  • ट्रांसपोर्ट लेयर
  • सेशन लेयर
  • प्रेजेंटेशन लेयर
  • एप्लीकेशन लेयर
  1. फिजिकल लेयर- फिजिकल लेयर, OSI मॉडल की पहली व सबसे लोवेस्ट लेयर होती है, इसको बिट यूनिट लेयर भी कहते हैं। 
  2. यह लेयर फिजिकल व इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार होती।
  3. इस लेयर में डिजिटल, सिग्नल, इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल जाता है।
  4. यह लेयर यह भी बताती है कि कनेक्शन वायर्ड होगा या वायरलेस। 
  5. फिजिकल लेयर की मुख्य एबिलिटी अलग-अलग बिट्स को एक नोड से दूसरे नोड में ट्रांसमिट करना है। 
  6. यह फिजिकल कनेक्शन को एस्टब्लिश, मेन्टेन व इनएक्टिव करती है। 

फिजिकल लेयर के कार्य

OSI model in Hindi के लिए फिजिकल लेयर के कार्य नीचे दिए गए हैं-

  1. यह दो या दो से अधिक डिवाइस को फिजिकली साथ कैसे जोड़ सकते हैं उस तरीके को परिभाषित करती हैं। 
  2. यह ट्रांसमिशन मोड को परिभाषित करती है अर्थात चाहे नेटवर्क पर 2 डिवाइस के बीच सिम्प्लेक्स, हाफ डुप्लेक्स, फुल डुप्लेक्स मोड हो। 
  3. यह इनफार्मेशन ट्रांसमिशन के लिए उपयोग किए जाने वाले सिग्नल के प्रकार को निर्धारित करती है। 
  4. यह लेयर सिग्नल को कैरी करती है और फिजिकल मीडियम में इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और फंक्शनल इंटरफ़ेस को भी परिभाषित करती है। 
  5. यह वास्तव में दो डिवाइस के बीच फिजिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार होती है। 
  6. यह लेयर डाटा लिंक लेयर द्वारा भेजे गए फ्रेम को रिसीव करती है और उन्हें ऐसे सिग्नल में बदल देती है जो दूसरे ट्रांसमिशन मीडियम के साथ कम्पेटिबल हो। 
  1. डाटा लिंक लेयर-  OSI मॉडल में, डाटा लिंक लेयर दूसरी लेयर होती है इसे फ्रेम यूनिट भी कहा जाता है।
    1.  डेटा लिंक लेयर में नेटवर्क लेयर द्वारा भेजे गए पैकेट्स को डिकोड व एनकोड किया जाता है। 
    2. साथ ही यह लेयर यह भी कन्फर्म करती है कि सभी पैकेट्स एरर फ्री हो। 
    3. इस लेयर में निम्न दो प्रोटोकॉल डेटा ट्रांसमिशन के लिए प्रयोग किये जाते हैै- हाई लेवल डेटा लिंक कंट्रोल (HDLC), पॉइंट-टू-पॉइंट प्रोटोकॉल (PPP)
    4.  यह मुख्य रूप से डिवाइस की यूनिक आइडेंटिफिकेशन के लिए जिम्मेदार होती है ।  
    5. इस लेयर की दो सब-लेयर होती है: 
  • लॉजिकल लिंक कंट्रोल लेयर- यह लेयर पैकेट को रिसीव कर नेटवर्क लेयर पर ट्रांसफर करने के लिए जिम्मेदार होती है यह पैकेट को फ्लो कंट्रोल प्रदान कर दी है। 
  • मीडिया एक्सेस कंट्रोल लेयर- यह लेयर लॉजिकल लिंक लेयर और नेटवर्क की फिजिकल लेयर के बीच की कड़ी है इसका उपयोग पैकेट को नेटवर्क पर ट्रांसफर करने के लिए किया जाता। 

डाटा लिंक लेयर के कार्य

OSI model in Hindi के लिए डाटा लिंक लेयर के कार्य नीचे दिए गए हैं-

  1. डाटा लिंक लेयर, फिजिकल लेयर की फ्रेम में रॉ बिट स्ट्रीम को जोड़ती है जिसे फ्रेमिंग कहा जाता है। यह फ्रेम में हैडर और ट्रेलर को जोड़ती है जिसमे हार्डवेयर डेस्टिनेशन और सोर्स एड्रेस होता है। 
  2. डाटा लिंक लेयर, एक हैडर को फ्रेम में जोड़ती है जिसमें डेस्टिनेशन का एड्रेस होता है और फिर उस फ्रेम को डेस्टिनेशन एड्रेस पर सेंड किया जाता है। 
  3. डाटा लिंक लेयर का मुख्य कार्य फ्लो कण्ट्रोल और एरर कण्ट्रोल करना है। 
  4. डाटा लिंक लेयर के ट्रेलर में रखी जाने वाली वैल्यू CRC को जोड़कर एरर कंट्रोल को प्राप्त करता है। 
  5. यह लेयर जब दो या दो से अधिक डिवाइस एक ही कम्युनिकेशन चैनल से जुड़े होते हैं तो उनके बीच एक्सेस कंट्रोल को निर्धारित करती है। 

3. नेटवर्क लेयर –  यह OSI मॉडल की तीसरी लेयर होती है। इस लेयर को पैकेट यूनिट भी कहा जाता हैं।

  1. इस लेयर मे स्विचिंग और रूटिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। 
  2. इस लेयर का कार्य आईपी एड्रेस प्रदान कराना  है। 
  3. नेटवर्क लेयर में जो डाटा होता है वह पैकेट(डेटा के group) के रूप में होता है और इन पैकेट्स को सोर्स से डेस्टिनेशन तक पहुंचाने का काम नेटवर्क लेयर का होता है।  
  4. यह अलग-अलग डिवाइस में लॉजिकल कनेक्शन उपलब्ध कराती है।
  5. इस लेयर का काम राउटिंग का भी है यह डेटा ट्रांसफरिंग के लिए सबसे अच्छे रूट को बताती है। 
  6. नेटवर्क लेयर के मुख्य काम एरर हैंडलिंग, पैकेट सीक्वेंसिंग, इंटरनेटवर्किंग, एड्रेसिंग और कंजेशन कंट्रोल हैं।
  7. नेटवर्क लेयर की तीन सब-लेयर होती हैं-
    • सब नेटवर्क एक्सेस- यह एक प्रोटोकॉल के रूप में जानी जाती है और यह इंटरफ़ेस का नेटवर्क के साथ डील के लिए जिम्मेदार होता है। 
    • सब नेटवर्क डिपेंडेंट कन्वर्जेन्स- यह नेटवर्क लेयर के किसी भी साइड तक ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क के लेवल को कैरी करने के लिए जिम्मेदार है। 
    • सब नेटवर्क इंडिपेंडेंट कन्वर्जेन्सइसका उपयोग मल्टीपल नेटवर्क नेटवर्क पर ट्रांसपोर्टेशन को मैनेज करने के लिए किया जाता है।

नेटवर्क लेयर के कार्य

OSI model in Hindi के लिए नेटवर्क लेयर के कार्य नीचे दिए गए हैं-

  1. नेटवर्क लेयर की मुख्य जिम्मेदारी विभिन्न डिवाइस के बीच लॉजिकल कनेक्शन प्रोवाइड कराना है। 
  2. नेटवर्क लेयर, फ्रेम के हैडर में सोर्स और डेस्टिनेशन एड्रेस को जोड़ती हैं। 
  3. इंटरनेट पर डिवाइस को पहचानने के लिए एड्रेसिंग का उपयोग किया जाता है। 
  4. राउटिंग, नेटवर्क लेयर का प्रमुख कार्य है और यह सोर्स से डेस्टिनेशन तक के रास्तों में से सबसे अच्छे रास्ते को निर्धारित करता है। 
  5. नेटवर्क लेयर फ्रेम को अपनी अपर लेयर से प्राप्त करती है और उन्हें पैकेट्स में परिवर्तित करती है इस प्रक्रिया को पैकेटीज़िंग कहा जाता है। 
  6. ट्रांसपोर्ट लेयर के रिक्वेस्ट पर,ये बेस्ट क्वालिटी की सर्विस भी प्रदान करती है। इस लेयर में TCP/IP इम्प्लीमेंटेड प्रोटोकॉल हैं। 
  7. यह लॉजिकल एड्रेस या नेम्स को फिजिकल एड्रेस में ट्रांसलेट करती है। 

4. ट्रांसपोर्ट लेयर –  यह OSI मॉडल की चौथी लेयर है, इसे सेगमेंट यूनिट भी कहा जाता है। 

  • ट्रांसपोर्ट लेयर का मुख्य कार्य डाटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक बिना एरर और क्रम में ट्रांसमिट करना है। 
  •  इस लेयर का कार्य दो कंप्यूटरों के मध्य कम्युनिकेशन को उपलब्ध कराना भी है। 
  • ट्रांसपोर्ट लेयर 2 तरह से कम्यूनिकेट करती हैं- कनेक्शन लेस और कनेक्शन ओरिएंटेड।
  • इस लेयर को एन्ड टू एन्ड लेयर के रूप मे जाना जाता है क्योंकि यह डाटा डिलीवरी के लिए सोर्स व डेस्टिनेशन के बीच पॉइंट टू पॉइंट कनेक्शन प्रोवाइड करती है। 
  • इस लेयर के मुख्य दो प्रोटोकॉल्स है-
  1. ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल (TCP)- यह एक स्टैण्डर्ड प्रोटोकॉल है जो सिस्टम को इंटरनेट पर कम्यूनिकेट करने की अनुमति देता है। जब डेटा को TCP प्रोटोकॉल पर भेज जाता है तो यह डेटा को सेगमेंट में विभाजित करता है। ये सेगमेंट विभिन्न मार्ग द्वारा अपने डेस्टिनेशन पर पहुँचते हैं जहाँ इन्हे व्यवस्थित कर क्रम में लाया जाता है। 
  2. यूजर डाटाग्राम प्रोटोकॉल(UDP)- यह एक ट्रांसपोर्ट लेयर प्रोटोकॉल है जो अविश्वसनीय है, क्योंकि इसमें पैकेट के रिसीव होने पर, रिसीवर किसी भी तरह का स्वीकृति सेंड नहीं करता। 

ट्रांसपोर्ट लेयर के कार्य

  1. ट्रांसपोर्ट लेयर की जिम्मेदारी मैसेज को सही प्रोसेस में ट्रांसमिट करना, जबकि नेटवर्क लेयर की जिम्मेदारी डेटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर करना हैं। 
  2. जब ट्रांसपोर्ट लेयर को ऊपरी लेयर से मैसेज मिलता है तो वह इसे कई सारे सेगमेंट मे डिवाइड कर देती है और प्रत्येक सेगमेंट को एक क्रम नंबर दिया जाता है जिससे उनकी पहचान होती है। जब मैसेज डेस्टिनेशन पर आता है तो ट्रांसपोर्ट लेयर मैसेज को उसके क्रम नंबर के आधार पर पुनर्व्यवस्थित करती हैं। 
  3. एक कनेक्शन लेस सर्विस प्रत्येक सेगमेंट को एक पर्सनल पैकेट के रूप में माना जाता  है और वे सभी  विभिन्न मार्गो से होते हुए डेस्टिनेशन तक जाते  हैं।
  4. जबकि एक कनेक्शन ओरिएंटेड सर्विस, पैकेट देने से पहले डेस्टिनेशन मशीन पर ट्रांसपोर्ट लेयर के साथ एक कनेक्शन बनाती है इसमें सभी पैकेट एक सिंगल रूट से होते हुए डेस्टिनेशन तक पहुँचते है।
  5. ट्रांसपोर्ट लेयर फ्लो कण्ट्रोल व एरर कण्ट्रोल के लिए जिम्मेदार है। एरर कण्ट्रोल सिंगल लिंक के बजाए एन्ड टु एन्ड परफॉर्म किया जाता है। ट्रांसपोर्ट लेयर मैसेज सुनिश्चित करती है कि सभी मैसेज बिना किसी एरर के डेस्टिनेशन तक पहुंचे। 

5. सेशन लेयर- यह OSI मॉडल की पांचवी लेयर है।  इसका कार्य यह देखना होता है की कनेक्शन को किस तरह से स्थापित, मेन्टेन तथा टर्मिनेट किया जाता है अर्थात सेशन लेयर दो डिवाइस के बीच कम्युनिकेशन के लिए सेशन उपलब्ध करवाती है। 

सेशन लेयर के कार्य

  • सेशन लेयर डायलॉग कंट्रोलर की तरह काम करती हैं जो हाफ-डुप्लेक्स या फुल-डुप्लेक्स हो सकता है।
  • यह दो प्रोसेस के बीच डायलॉग को क्रिएट करता हैं।
  • यह सिंक्रनाइज़ेशन के कार्य को भी पुरा करती हैं अर्थात् जब भी किसी ट्रांसमिशन में एरर आती हैं तो उस ट्रांसमिशन को दोबारा किया जाता हैं। 
  • यह डिवाइस के बीच क्रम संचार प्रदान करती है इसके लिए डाटा के फ्लो को रेगुलेट करना होता है। 
  • डाटा का फॉर्मेट जिसे कनेक्शंस में सेंड किया जाना है उसे सेशन प्रोटोकॉल डिफाइन करता है। 
  • सेशन लेयर किन्ही दो यूजर के बीच सेशन को नेटवर्क के दो अलग-अलग एंड्स पर मैनेज व एस्टब्लिश करता है। 
  • किसी भी क्रम में डाटा ट्रांसमिट करते समय सेशन लेयर कुछ चेकपॉइंट ऐड करती है यदि डाटा ट्रांसमिशन में कोई एरर आती है तो डेटा का इन्ही चेकपॉइंट से फिर ट्रांसमिशन किया जाता है इस प्रोसेस को सिंक्रोनाइजेशन और रिकवरी के रूप में जाना जाता है। 

6. प्रेजेंटेशन लेयर यह OSI मॉडल की छठी लेयर है,इसे ट्रांसलेशन लेयर भी कहा जाता है। प्रेजेंटेशन लेयर दो अलग अलग प्रकार के सिस्टम के बीच डेटा के विभिन्न फॉर्मेट को एक यूनिफार्म फॉर्मेट में प्रेजेंट करता है। 

  • यह लेयर ऑपरेटिंग सिस्टम से संबंधित हैं।
  • इसका उपयोग डाटा को एन्क्रिप्ट व डिक्रिप्ट करने मे किया जाता है। 
  • इसे डेटा कम्प्रेशन के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।
  • प्रेजेंटेशन लेयर मुख्य रूप से दो सिस्टम के बीच ट्रांसफर की गई जानकारी के सिंटेक्स और सेमेंटिक्स से संबंधित हैं। 

प्रेजेंटेशन लेयर के कार्य

  1. इस लेयर का कार्य एन्क्रिप्शन व डेक्रिप्शन का होता है।
  2. डेटा की प्राइवेसी के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 
  3. इस लेयर का मुख्य कार्य कम्प्रेशन का भी  होता है।
  4. कम्प्रेशन बहुत जरुरी होता है क्योंकि हम कम्प्रेशन द्वारा डाटा को कम्प्रेस करके उसके साइज को कम कर सकते है।
  5. यह लेयर, एप्लीकेशन लेयर में प्रेजेंट किये जाने वाले डाटा को फॉर्मेट करता है इसे आप एक नेटवर्क का ट्रांसलेटर भी समझ सकते हैं। 

7. एप्लीकेशन लेयर-  एप्लीकेशन लेयर ,OSI मॉडल की सातवीं और सबसे उच्चतम लेयर है।

  •  एप्लीकेशन लेयर का मुख्य काम हमारी वास्तविक(Real) एप्लीकेशन तथा अन्य लेयर्स के बीच इंटरफ़ेस प्रोवाइड कराना है।
  • एप्लीकेशन लेयर एन्ड यूजर के सबसे नजदीक होती है। इस लेयर के अंतर्गत HTTP, FTP, SMTP तथा NFS आदि प्रोटोकॉल आते है।
  • यह लेयर,कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार नेटवर्क से एक्सेस करती है और इसे कण्ट्रोल करती है। 

एप्लीकेशन लेयर के कार्य

  1. एक एप्लीकेशन लेयर एक यूजर को रिमोट कंप्यूटर पर फाइल अपलोड करने, रेट्रिएव करने और एक्सेस करने की अनुमति देता है। 
  2. एप्लीकेशन लेयर, ईमेल फॉरवर्डिंग व स्टोरेज के लिए फैसिलिटी उपलब्ध करवाती हैं। 
  3. यह डायरेक्टरी सर्विस प्रोवाइड कराती हैं। 
  4. इसका उपयोग डाटा की ग्लोबल इंफॉर्मेशन को प्रदान करने में किया जाता है। 

OSI मॉडल के फीचर्स

अभी तक आपने देखा कि OSI Model in Hindi में कितनी लेयर्स होती हैं? तो अब चलते हैं इसके फीचर्स की तरफ-

  1. यह मॉडल दो लेयर्स में विभाजित होता है-एक अपर लेयर और दूसरा लोवर लेयर।  
  2. इसकी अपर लेयर मुख्यतया एप्लीकेशन से सम्बन्धित इश्यूज को हैंडल करती है और ये केवल सॉफ्टवेयर पर लागू होती हैं।
  3. एप्लीकेशन लेयर, एन्ड यूजर के सबसे नजदीक होती है। 
  4. OSI मॉडल की लोवर लेयर जो है वह डाटा ट्रांसपोर्ट के इशू को हैंडल करती है। 
  5. डाटा लिंक लेयर और फिजिकल लेयर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में लागू होती है ।
  6. फिजिकल लेयर सबसे निम्नतम लेयर होती है और यह फिजिकल मीडियम के सबसे नजदीक होती है।
  7. फिजिकल लेयर का मुख्य कार्य फिजिकल मीडियम में डाटा या इनफार्मेशन को रखना होता है। 

OSI मॉडल के फायदे

अभी तक हमने देखा कि OSI model in Hindi, इसकी कितनी लेयर होती है और प्रत्येक लेयर का क्या कार्य होता है अब हम  जानेंगे कि OS मॉडल के फायदे क्या होते हैं-

  1. यह एक जेनेरिक मॉडल है तथा इसे स्टैण्डर्ड मॉडल के रूप मे भी माना जाता है। 
  2. OSI मॉडल की लेयर्स सर्विस, इंटरफ़ेस तथा प्रोटोकॉल के लिए बहुत स्पेशल होती है। 
  3. यह मॉडल बहुत ही फ्लेक्सिबल होता है क्योंकि इसमें किसी भी प्रोटोकॉल को इम्प्लीमेंट किया जा सकता है। 
  4. OSI मॉडल कनेक्शन-ओरिएंटेड तथा कनेक्शनलेस दोनों प्रकार की सर्विस को सपोर्ट करता है। 
  5.  OSI मॉडल की प्रत्येक लेयर आपस मे इंटरकनेक्टेड नही होती। इसमें अगर एक लेयर मे चेंज कर दिया जाए तो भी दूसरी लेयर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  6. यह मॉडल बहुत ही ज्यादा सिक्योर और अनुकूलनीय होता है।
  7. ओ एस आई मॉडल लोगों को  नेटवर्क के बारे में समझाने के लिए बहुत अच्छा तरीका है। 
  8. यह वर्ल्ड वाइड कम्युनिकेशन का एक, ISO स्टैण्डर्ड होता हैं जो नेटवर्किंग फ्रेमवर्क को दर्शाता है। 
  9. यह अंतरराष्ट्रीय मानक संगठन (ISO) का एक एफर्ट हैं जिसमें ओपन नेटवर्क को प्रोत्साहित किया जाता हैं और साथ ही में एक ओपन सिस्टम इंटरकनेक्ट रेफरेंस मॉडल भी बनाया जाता है। 

OSI मॉडल के नुकसान

OSI model in Hindi के नुकसान निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें कभी-कभी नये प्रोटोकॉल को लागू करना कठिन होता हैं क्योंकि यह मॉडल इन प्रोटोकॉल्स के बनने से पहले ही बन गया था। 
  2. यह मॉडल किसी विशेष प्रोटोकॉल को परिभाषित नहीं करता है। 
  3. इस मॉडल के सभी लेयर्स एक- दूसरे पर इंटरडिपेंडनेट होती है। 
  4. इस मॉडल की ट्रांसपोर्ट-लेयर और सत्ता लिंक लेयर दोनों एरर कण्ट्रोल करती है जिसकी वजह से इसमें सर्विस का डुप्लीकेशन हो जाता है। 

FAQs

OSI की फुल फॉर्म क्या है?

OSI की फुल फॉर्म Open System Interconnection Model है।

OSI मॉडल की दूसरी परत के लिए संचार उपकरण कौन सा है?

OSI मॉडल की दूसरी परत के लिए संचार उपकरण डेटा लिंक परत है।

OSI मॉडल को OSI क्यों कहां जाता है?

इस मॉडल को Open System Interconnection (OSI) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मॉडल किन्हीं दो अलग-अलग सिस्टम को आपस मे कम्यूनिकेट करने के लिए अनुमति देता है फिर चाहे उनका इंटरनल आर्किटेक्चर कैसा भी हो।

OSI मॉडल की 7 परतें क्या हैं?

OSI मॉडल में कुल 7 परतें होती हैं, जिनके नाम क्रमशः भौतिक परत (Physical Layer), डेटा लिंक परत (Data Link Layer), नेटवर्क परत (Network Layer), ट्रांसपोर्ट परत (Transport Layer), सत्र परत (Session Layer), स्तुति परत (Presentation Layer), एप्लिकेशन परत (Application Layer) है।

OSI मॉडल का महत्व क्या है?

OSI मॉडल नेटवर्किंग प्रक्रियाओं को समझने और विश्लेषण करने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह नेटवर्किंग प्रोटोकॉल के मानकीकरण में मदद करता है और नेटवर्क के विभिन्न घटकों के बीच संचार को सरल बनाता है।

OSI मॉडल और TCP/IP मॉडल में क्या अंतर है?

OSI मॉडल और TCP/IP मॉडल दोनों नेटवर्किंग के मानक हैं, जहाँ OSI मॉडल में 7 परतें होती हैं, जबकि TCP/IP मॉडल में 4 परतें होती हैं। वहीं दूसरी ओर OSI मॉडल एक थ्योरिटिकल मॉडल है, जबकि TCP/IP मॉडल व्यावहारिक है और इंटरनेट पर आधारित है।

OSI मॉडल का प्रयोग कहां किया जाता है?

OSI मॉडल का प्रयोग नेटवर्क डिजाइन, नेटवर्क प्रोटोकॉल के विकास, और नेटवर्किंग समस्याओं के समाधान में किया जाता है। यह नेटवर्क इंजीनियरों और IT पेशेवरों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

OSI मॉडल के प्रत्येक स्तर में कौन से प्रोटोकॉल काम करते हैं?

OSI मॉडल के प्रत्येक स्तर में विभिन्न प्रोटोकॉल कार्य करते हैं:

भौतिक परत: Ethernet, USB, Bluetooth
डेटा लिंक परत: Ethernet, PPP, Frame Relay
नेटवर्क परत: IP, ICMP, ARP
ट्रांसपोर्ट परत: TCP, UDP
सत्र परत: NetBIOS, RPC
प्रस्तुति परत: SSL, TLS, JPEG
एप्लिकेशन परत: HTTP, FTP, SMTP, DNS

OSI मॉडल का उपयोग क्यों किया जाता है?

OSI मॉडल का उपयोग नेटवर्किंग प्रणालियों के डिजाइन, विकास और समस्याओं को हल करने के लिए किया जाता है। यह नेटवर्किंग के प्रत्येक स्तर के कार्य को स्पष्ट करता है और नेटवर्क इंजीनियरों को डेटा ट्रांसमिशन को बेहतर बनाने में मदद करता है।

OSI मॉडल का अध्ययन UPSC के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

UPSC परीक्षा में, विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंतर्गत, OSI मॉडल का अध्ययन नेटवर्किंग और संचार प्रौद्योगिकियों के बारे में समझ प्रदान करता है। यह विषय सामान्य अध्ययन (GS) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रश्नों में उपयोगी हो सकता है।

उम्मीद हैं कि आप OSI मॉडल (OSI Model in Hindi) के बारे में जान गए होंगे। इसी प्रकार के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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