Munawwar Rana Hindi Shayari : मुनव्वर राना के चुनिंदा शेर, शायरी, नज़्म और गजल

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Munawwar Rana Hindi Shayari

Munawwar Rana Hindi Shayari: मुनव्वर राना उर्दू अदब में अपने अनोखे अंदाज़ के चलते उर्दू साहित्य जगत में एक विशिष्ट स्थान रखने वाले शायर थे, जिन्होंने अपने लेखन से उर्दू साहित्य में अपनी विधा का लोहा मनवाया। मुनव्वर राना के शेर, शायरी और ग़ज़लों ने उर्दू भाषा के साहित्य में अपनी अमिट पहचान बनाने के साथ-साथ, सामाज में सकारात्मक भूमिका निभाने का भी काम किया है। मुनव्वर राना के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों का परिचय उर्दू साहित्य के व्यापक स्वरुप से करवाती है। इस ब्लॉग के माध्यम से आप Munawwar Rana Hindi Shayari के साथ-साथ, मुनव्वर राना के बारे में भी पढ़ पाएंगे। मुनव्वर राना की शायरी, आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

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मुनव्वर राना का जीवन

मुनव्वर राना की बेहतरीन साहित्य की समझ ने उन्हें एक मशहूर शायर बनाया, मुनव्वर राना का मूल नाम सय्यद मुनव्वर अली था।मुनव्वर राना का जन्म 26 नवंबर 1952  को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था। मुनव्वर राना ने प्राथमिक शिक्षा कोलकाता में हुई थी। आगे चलकर हिंदी और उर्दू भाषा के जानकार मुनव्वर राना ने बी. कॉम. की डिग्री प्राप्त की।

वर्ष 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘माटी रतन सम्मान’, ‘अमीर खुसरो पुरस्कार’, ‘ग़ालिब पुरस्कार’ आदि से सम्मानित मुनव्वर राना का जीवन परिचय उर्दू साहित्य को समझने के लिए युवाओं का मार्गदर्शन करेगा। उर्दू साहित्य में अपना अविस्मरण योगदान देने वाले मुनव्वर राना का निधन 14 जनवरी, 2024 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।

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मुनव्वर राना की शायरी – Munawwar Rana Hindi Shayari

मुनव्वर राना की शायरी पढ़कर युवाओं में उर्दू साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है:

“चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 
 मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है…”

 -मुनव्वर राना

Munawwar Rana Hindi Shayari

“अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा 
 मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है…”

 -मुनव्वर राना

“इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है 
 माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है…”

 -मुनव्वर राना

“किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई 
 मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई…”

 -मुनव्वर राना

“जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है 
 माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है…”

 -मुनव्वर राना

“सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर 
 मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते…”

-मुनव्वर राना

“कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में 
 ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है…”

-मुनव्वर राना

“तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक 
 मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी…”

-मुनव्वर राना

“मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
 जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती…”

-मुनव्वर राना

“ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ 
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा…”

-मुनव्वर राना

मोहब्बत पर मुनव्वर राना के मशहूर शेर

मोहब्बत पर मुनव्वर राना के मशहूर शेर अलग अंदाज़ में मोहब्बत बयां करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं;

“अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो 
 तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो…”

-मुनव्वर राना

“तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो 
 तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है…”

-मुनव्वर राना

“कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे 
 कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था…”

-मुनव्वर राना

“तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता
 तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने…”

-मुनव्वर राना

“तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको 
 तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है…”

-मुनव्वर राना

“तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
 चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं…”

-मुनव्वर राना

“हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं 
 उस की आँखें कई सदियों की जगी लगती हैं…”

-मुनव्वर राना

Munawwar Rana Hindi Shayari

“दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन 
 बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था…”

-मुनव्वर राना

“इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए 
 आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए…”

-मुनव्वर राना

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मुनव्वर राना के शेर

मुनव्वर राना के शेर पढ़कर युवाओं को साहित्य के आँगन में फलने-फूलने की प्रेरणा मिलेगी। मुनव्वर राना के शेर युवाओं का परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं;

“बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर 
 माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है…”

-मुनव्वर राना

“फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं 
 वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं…”

-मुनव्वर राना

“ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता 
 मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है…”

-मुनव्वर राना

“मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें 
 सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया…”

-मुनव्वर राना

“बच्चों की फ़ीस उन की किताबें क़लम दवात 
 मेरी ग़रीब आँखों में स्कूल चुभ गया…”

-मुनव्वर राना

“गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना 
 आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले…”

-मुनव्वर राना

“तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते 
 हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं…”

-मुनव्वर राना

“सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में 
 कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता…”

-मुनव्वर राना

“किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा 
 अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा…”

-मुनव्वर राना

Munawwar Rana Hindi Shayari

“हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ 
 हम न होंगे तो क्या कमी होगी…”

-मुनव्वर राना

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माँ पर मुनव्वर राना के शेर

माँ पर मुनव्वर राना के शेर पढ़कर आप अपने जीवन का आधार अपनी माँ के प्रति अटूट बंधन को चलाना सीख जाएंगे। माँ पर मुनव्वर राना के शेर कुछ इस प्रकार हैं;

“दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन 
 माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है…”

-मुनव्वर राना

“लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है 
 मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है…”

-मुनव्वर राना

मुनव्वर राना के शेर

“शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ 
 माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा…”

-मुनव्वर राना

“निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें 
 कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं…”

-मुनव्वर राना

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मुनव्वर राना की ग़ज़ल

मुनव्वर राना की ग़ज़ल आपको उर्दू साहित्य के सौंदर्य से परिचित कराएंगी, जो नीचे दी गई हैं-

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई 
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई 
यहाँ से जाने वाला लौट कर कोई नहीं आया 
मैं रोता रह गया लेकिन न वापस जा के माँ आई 
अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता 
बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहाँ आई 
किसी को गाँव से परदेस ले जाएगी फिर शायद 
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआँ आई 
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी 
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई 
क़फ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता 
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या ख़िज़ाँ आई 
घरौंदे तो घरौंदे हैं चटानें टूट जाती हैं 
उड़ाने के लिए आँधी अगर नाम-ओ-निशाँ आई 
कभी ऐ ख़ुश-नसीबी मेरे घर का रुख़ भी कर लेती 
इधर पहुँची उधर पहुँची यहाँ आई वहाँ आई

-मुनव्वर राना

इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए

इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए 
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए 
आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं 
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए 
ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों 
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए 
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें 
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए 
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे 
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए

-मुनव्वर राना

मुनव्वर राना की नज़्म

मुनव्वर राना की नज़्म पढ़कर आप उर्दू साहित्य में किए गए मुनव्वर राना के योगदान को महसूस कर पाएंगे, जो नीचे दी गई हैं-

मेरे स्कूल

मेरे स्कूल मिरी यादों के पैकर सुन ले 
मैं तिरे वास्ते रोता हूँ बराबर सुन ले 
तेरे उस्तादों ने मेहनत से पढ़ाया है मुझे 
तेरी बेंचों ने ही इंसान बनाया है मुझे 
ना-तराशीदा सा हीरा था तराशा तू ने 
ज़ेहन-ए-तारीक को बख़्शा है उजाला तू ने 
इल्म की झील का तैराक बनाया है मुझे 
ख़ौफ़ को छीन के बेबाक बनाया है मुझे
तुझ से शफ़क़त भी मिली तुझ से मोहब्बत भी मिली 
दौलत-ए-इल्म मिली मुझ को शराफ़त भी मिली 
शफ़्क़तें ऐसी मिली हैं मुझे उस्तादों की 
परवरिश करता हो जैसे कोई शहज़ादों की 
तेरी चाहत में मैं इस दर्जा भी खो जाता था 
तेरी बेंचों पे ही कुछ देर को सो जाता था

-मुनव्वर राना

आख़िरी सच

चेहरे तमाम धुँदले नज़र आ रहे हैं क्यूँ 
क्यूँ ख़्वाब रतजगों की हवेली में दब गए 
है कल की बात उँगली पकड़ कर किसी की मैं 
मेले मैं घूमता था खिलौनों के वास्ते 
जितने वरक़ लिखे थे मिरी ज़िंदगी ने सब 
आँधी के एक झोंके में बिखरे हुए हैं सब 
मैं चाहता हूँ फिर से समेटूँ ये ज़िंदगी 
बच्चे तमाम पास खड़े हैं बुझे बुझे 
शोख़ी न जाने क्या हुई रंगत कहाँ गई 
जैसे किताब छोड़ के जाते हुए वरक़ 
जैसे कि भूलने लगे बच्चा कोई सबक़ 
जैसे जबीं को छूने लगे मौत का अरक़ 
जैसे चराग़ नींद की आग़ोश की तरफ़ 
बढ़ने लगे अँधेरे की ज़ुल्फ़ें बिखेर कर 
भूले हुए हैं होंट हँसी का पता तलक 
दरवाज़ा दिल का बंद हुआ चाहता है अब
क्या सोचना कि फूल से बच्चों का साथ है 
अब मैं हूँ अस्पताल का बिस्तर है रात है

-मुनव्वर राना

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