Mohsin Naqvi Shayari : मोहसिन नक़वी के चुनिंदा शेर, शायरी और ग़ज़ल

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Mohsin Naqvi Shayari

मोहसिन नक़वी उर्दू भाषा की उन लोकप्रिय शायरों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम, विरह के साथ-साथ कई सामाजिक विषयों का भी खूबसूरती से चित्रण किया है। मोहसिन नक़वी पाकिस्तान की सबसे लोकप्रिय शायरात में शामिल एक ऐसे शायर थे, जिन्होंने अपनी शायरियों में तब के दौर के हालातों का भी बखूबी वर्णन किया है। मोहसिन नक़वी के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य की खूबसूरती और साहित्य की समझ से परिचित करवाने का काम करती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप चुनिंदा Mohsin Naqvi Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

मोहसिन नक़वी की शायरी – Mohsin Naqvi Shayari

मोहसिन नक़वी की शायरी पढ़कर युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है:

"हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे 
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर..."

-मोहसिन नक़वी

"यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन' 
वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें..."

-मोहसिन नक़वी

"सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ो 
कुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं..."

-मोहसिन नक़वी

"कल थके-हारे परिंदों ने नसीहत की मुझे 
शाम ढल जाए तो 'मोहसिन' तुम भी घर जाया करो..."

-मोहसिन नक़वी

"वो अक्सर दिन में बच्चों को सुला देती है इस डर से 
गली में फिर खिलौने बेचने वाला न आ जाए..."

-मोहसिन नक़वी

“ये किस ने हम से लहू का ख़िराज फिर माँगा 
अभी तो सोए थे मक़्तल को सुर्ख़-रू कर के…”

-मोहसिन नक़वी
“अज़ल से क़ाएम हैं दोनों अपनी ज़िदों पे 'मोहसिन' 
चलेगा पानी मगर किनारा नहीं चलेगा…”

-मोहसिन नक़वी

“क्यूँ तिरे दर्द को दें तोहमत-ए-वीरानी-ए-दिल 
ज़लज़लों में तो भरे शहर उजड़ जाते हैं…”

-मोहसिन नक़वी

“गहरी ख़मोश झील के पानी को यूँ न छेड़ 
छींटे उड़े तो तेरी क़बा पर भी आएँगे…”

-मोहसिन नक़वी

“लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ 
हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी…”

-मोहसिन नक़वी

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मोहब्बत पर मोहसिन नक़वी की शायरी

मोहब्बत पर मोहसिन नक़वी की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी –

“कौन सी बात है तुम में ऐसी 
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो…”

-मोहसिन नक़वी

“तुम्हें जब रू-ब-रू देखा करेंगे 
ये सोचा है बहुत सोचा करेंगे…”

-मोहसिन नक़वी

“कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ को 
शहर वाले मिरा मौज़ू-ए-सुख़न जानते हैं…”

-मोहसिन नक़वी

“ज़िक्र-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत उसे भी थी 
मेरी तरह किसी से मोहब्बत उसे भी थी…”

-मोहसिन नक़वी

“मौसम-ए-ज़र्द में एक दिल को बचाऊँ कैसे 
ऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं…”

-मोहसिन नक़वी

“ये शाइ'री ये किताबें ये आयतें दिल की 
निशानियाँ ये सभी तुझ पे वारना होंगी…”

-मोहसिन नक़वी

“बड़ी उम्र के बा'द इन आँखों में कोई अब्र उतरा तिरी यादों का 
मिरे दिल की ज़मीं आबाद हुई मिरे ग़म का नगर शादाब हुआ…”

-मोहसिन नक़वी

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मोहसिन नक़वी के शेर

मोहसिन नक़वी के शेर पढ़कर युवाओं को मोहसिन नक़वी की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। मोहसिन नक़वी के शेर युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं:

“जो दे सका न पहाड़ों को बर्फ़ की चादर 
वो मेरी बाँझ ज़मीं को कपास क्या देगा…”

-मोहसिन नक़वी

“हम अपनी धरती से अपनी हर सम्त ख़ुद तलाशें 
हमारी ख़ातिर कोई सितारा नहीं चलेगा…”

-मोहसिन नक़वी

“सुना है शहर में ज़ख़्मी दिलों का मेला है 
चलेंगे हम भी मगर पैरहन रफ़ू कर के…”

-मोहसिन नक़वी

“वो लम्हा भर की कहानी कि उम्र भर में कही 
अभी तो ख़ुद से तक़ाज़े थे इख़्तिसार के भी…”

-मोहसिन नक़वी

“पलट के आ गई ख़ेमे की सम्त प्यास मिरी 
फटे हुए थे सभी बादलों के मश्कीज़े…”

-मोहसिन नक़वी

“जिन अश्कों की फीकी लौ को हम बेकार समझते थे 
उन अश्कों से कितना रौशन इक तारीक मकान हुआ…”

-मोहसिन नक़वी

“वो मुझ से बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया 
वर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी…”

-मोहसिन नक़वी

“दश्त-ए-हस्ती में शब-ए-ग़म की सहर करने को 
हिज्र वालों ने लिया रख़्त-ए-सफ़र सन्नाटा…”

-मोहसिन नक़वी

“चुनती हैं मेरे अश्क रुतों की भिकारनें 
'मोहसिन' लुटा रहा हूँ सर-ए-आम चाँदनी…”

-मोहसिन नक़वी

“शाख़-ए-उरियाँ पर खिला इक फूल इस अंदाज़ से 
जिस तरह ताज़ा लहू चमके नई तलवार पर…”

-मोहसिन नक़वी

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मोहसिन नक़वी की दर्द भरी शायरी

मोहसिन नक़वी की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं:

“वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था 
कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है…”

-मोहसिन नक़वी

“जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ 
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ…”

-मोहसिन नक़वी

“अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता 
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें…”

-मोहसिन नक़वी

“कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की 
कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ…”

-मोहसिन नक़वी

“अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था 
अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था…”

-मोहसिन नक़वी

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मोहसिन नक़वी शायरी २ लाइन्स

मोहसिन नक़वी शायरी 2 लाइन्स पढ़कर आप मोहसिन नक़वी की लेखनी के बारे में आसानी से जान पाएंगे,  Mohsin Naqvi Shayari कुछ इस प्रकार है:

“ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ 
मैं आवाज़ों के बन में घिर गया हूँ…”

-मोहसिन नक़वी

“इस शान से लौटे हैं गँवा कर दिल-ओ-जाँ हम 
इस तौर तो हारे हुए लश्कर नहीं आते…”

-मोहसिन नक़वी

“जो अपनी ज़ात से बाहर न आ सका अब तक 
वो पत्थरों को मता-ए-हवास क्या देगा…”

-मोहसिन नक़वी

“काश कोई हम से भी पूछे 
रात गए तक क्यूँ जागे हो…”

-मोहसिन नक़वी

“ढलते सूरज की तमाज़त ने बिखर कर देखा 
सर-कशीदा मिरा साया सफ़-ए-अशजार के बीच…”

-मोहसिन नक़वी

“तेज़ हवा ने मुझ से पूछा 
रेत पे क्या लिखते रहते हो…”

-मोहसिन नक़वी

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मोहसिन नक़वी की गजलें

मोहसिन नक़वी की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ 
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ 
ये दिल ये आसेब की नगरी मस्कन सोचूँ वहमों का 
सोच रहा हूँ इस नगरी में तू कब से मेहमान हुआ 
सहरा की मुँह-ज़ोर हवाएँ औरों से मंसूब हुईं 
मुफ़्त में हम आवारा ठहरे मुफ़्त में घर वीरान हुआ 
मेरे हाल पे हैरत कैसी दर्द के तन्हा मौसम में 
पत्थर भी रो पड़ते हैं इंसान तो फिर इंसान हुआ 
इतनी देर में उजड़े दिल पर कितने महशर बीत गए 
जितनी देर में तुझ को पा कर खोने का इम्कान हुआ 
कल तक जिस के गिर्द था रक़्साँ इक अम्बोह सितारों का 
आज उसी को तन्हा पा कर मैं तो बहुत हैरान हुआ 
उस के ज़ख़्म छुपा कर रखिए ख़ुद उस शख़्स की नज़रों से ?
उस से कैसा शिकवा कीजे वो तो अभी नादान हुआ 
जिन अश्कों की फीकी लौ को हम बे-कार समझते थे 
उन अश्कों से कितना रौशन इक तारीक मकान हुआ 
यूँ भी कम-आमेज़ था 'मोहसिन' वो इस शहर के लोगों में 
लेकिन मेरे सामने आ कर और भी कुछ अंजान हुआ

-मोहसिन नक़वी

ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी

ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी 
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी 
कल शब मुझे बे-शक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया 
मैं ने कहा तू कौन है उस ने कहा आवारगी 
लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ 
हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी 
ये दर्द की तन्हाइयाँ ये दश्त का वीराँ सफ़र 
हम लोग तो उक्ता गए अपनी सुना आवारगी 
इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मिरे ग़म का सबब 
सहरा की भीगी रेत पर मैं ने लिखा आवारगी 
उस सम्त वहशी ख़्वाहिशों की ज़द में पैमान-ए-वफ़ा 
उस सम्त लहरों की धमक कच्चा घड़ा आवारगी 
कल रात तन्हा चाँद को देखा था मैं ने ख़्वाब में 
'मोहसिन' मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी

-मोहसिन नक़वी

उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर

उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर 
हालात की क़ब्रों के ये कतबे भी पढ़ा कर 
क्या जानिए क्यूँ तेज़ हवा सोच में गुम है 
ख़्वाबीदा परिंदों को दरख़्तों से उड़ा कर 
उस शख़्स के तुम से भी मरासिम हैं तो होंगे 
वो झूट न बोलेगा मिरे सामने आ कर 
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे 
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर 
वो आज भी सदियों की मसाफ़त पे खड़ा है 
ढूँडा था जिसे वक़्त की दीवार गिरा कर 
ऐ दिल तुझे दुश्मन की भी पहचान कहाँ है 
तू हल्क़ा-ए-याराँ में भी मोहतात रहा कर 
इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं 'मोहसिन' 
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर

-मोहसिन नक़वी

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