ब्रिटिश साम्राज्य की क्रूरता भरी गुलामी के अँधेरे के बाद, 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता का एक नया सवेरा निकला था। स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने एक चुनौती थी, चुनौती विकास की और गरीबी मिटाने की। जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने आज़ादी के लिए संघर्षों के साथ-साथ, आज़ाद भारत में भी अपना अविस्मरणीय योगदान दिया, उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भी थे। इस पोस्ट के माध्यम से आप जान पाएंगे कि मौलाना अबुल कलाम आजाद का शिक्षा में योगदान अतुल्नीय क्यों माना जाता है, के बारे में जान पाएंगे। इस जानकारी के लिए आपको इस पोस्ट को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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कौन थे मौलाना अबुल कलाम आजाद?
मौलाना अबुल कलाम आजाद का शिक्षा में योगदान कैसा था, यह जानने के लिए आपको उनके जीवन परिचय पर एक नज़र डालनी चाहिए। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को सऊदी अरब के मक्का में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से प्राप्त की थी। वर्ष 1890 में, आज़ाद का परिवार वापस भारत लौट आया और कलकत्ता में बस गया, जिसके बाद आज़ाद ने कलकत्ता के इस्लामिया कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, कवि, लेखक, पत्रकार, और शिक्षाविद थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ब्रिटिश सरकार का प्रखरता से विरोध करते थे। वर्ष 1947 में भारत की आज़ादी के बाद, आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में मौलाना अबुल कलाम आजाद को चुना गया। 22 फरवरी, 1958 को मौलाना अबुल कलाम आजाद का राजधानी दिल्ली में निधन हुआ। उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
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मौलाना अबुल कलाम आजाद का शिक्षा में योगदान
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे, उन्होंने भारत में शिक्षा के विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन योगदानों को आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझ सकते हैं;
- आज़ाद ने शिक्षा के प्रसार के लिए कई अहम कदम उठाए, हिनका उद्देश्य समाज को शिक्षा के लिए प्रेरित करना था। इस क्रम में मौलाना आजाद ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाने का प्रयास किया।
- मौलाना आजाद ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के अवसरों को बढ़ाने के लिए भी काम किया।
- आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री आजाद ने तकनीकी शिक्षा पर जोर देते हुए, तकनीकी संस्थानों की स्थापना और विकास के लिए काम किया।
- मौलाना आजाद ने भारत को समृद्ध और शिक्षित देश बनाने के लिए अपने वक्तव्य और दृष्टिकोण में तकनीकी शिक्षा को आवश्यक बताते हुए, उचित सम्मान दिया।
- कई इतिहासकारों की माने तो आज़ाद ने सांस्कृतिक शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया, जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देना था।
- मौलाना अबुल कलाम आजाद ने विश्वविद्यालयों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय संस्कृति और विरासत के अध्ययन को अधिक बढ़ावा दिया।
- इतिहास को पढ़ा जाए तो हम पाएंगे कि वर्ष 1947 में, आजाद ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना की थी, जो कि एक स्वायत्त संस्था है। यही संस्था भारत में उच्च शिक्षा के विकास और समन्वय के लिए मुख्य भूमिका निभाती है।
- वर्ष 1948 में, आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री आजाद ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की स्थापना की, जो कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थानों में से एक हैं।
- वर्ष 1949 में, आजाद ने साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में साहित्य, कला, और संगीत के विकास के लिए मुख्य भूमिका निभाना था।
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मौलाना अबुल कलाम आजाद का साहित्य में योगदान
मौलाना अबुल कलाम आजाद एक दूरगामी सोच के व्यक्ति थे, जिनका उद्देश्य भारतीय कला, साहित्य और संगीत को वैश्विक पटल पर ले जाना था। इसके लिए उनके द्वारा साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना हुई। मौलाना अबुल कलाम आजाद का व्यक्तिगत तौर पर भी साहित्य में अहम योगदान रहा है, जिसमें उन्होंने “फ़ना-ए-फ़ना”, “नैराश्य”, “आशा”, “गुलामी”, और “तजुर्बा” जैसी कालजयी रचनाओं को रचा।
FAQs
भारत के पहले शिक्षा मंत्री का नाम “मौलाना अबुल कलाम आजाद” था।
मौलाना अबुल कलाम आजाद का पूरा नाम “मौलाना सैय्यद अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल-हुसैनी आजाद” था।
भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले थीं।
भारत के प्रथम गृह मंत्री “लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई” पटेल थे।
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