भारत का इतिहास बड़ा दिलचस्प रहा है। यहाँ कई ऐसे शासकों का शासन रहा है जिनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इसी इतिहास में हमने कई सारी सभ्यताओं, धर्म ,साम्राज्य आदि के बारे में पढ़ा होगा। इनमें ही एक महान साम्राज्य ‘मराठा साम्राज्य’ भी था जो भारतीय इतिहास का सबसे प्रभावशाली और महत्वपूर्ण राजनीतिक राजवंश माना जाता था।
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि मराठा साम्राज्य का उदय कैसे हुआ, इसके संस्थापक कौन थे और किस तरह इसका पतन हुआ। इस ब्लॉग में बताई गई जानकारी न सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बल्कि स्कूली विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी होगी।
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कैसे हुआ मराठा साम्राज्य का उदय
भारतीय इतिहास में मराठा संघ एवं मराठा साम्राज्य का उदय एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। एक तरफ जहाँ मराठों का उदय हुआ वहीं दूसरी तरफ मुगल साम्राज्य का पतन हुआ था। यह एक ऐसी भारतीय शक्ति थी जिसके उत्थान के बाद भारतीय राजनीति में बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा था। 17वीं शताब्दी में जैसे जैसे मुगल साम्राज्य अपने पतन की ओर बढ़ता गया वैसे वैसे देश में स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना का सिलसिला आरंभ होता गया। उन्हीं स्वतन्त्र राज्यों में से एक शक्तिशाली राज्य मराठों का भी था।
1674 ईसवी में ‘छत्रपति शिवाजी’ (भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक) के राज्याभिषेक के साथ मराठा साम्राज्य सत्ता में आया। शिवाजी के शासनकाल में ही मराठा साम्राज्य ने लोकप्रियता हासिल की। शिवाजी का मुख्य उद्देश्य हिंदू स्वराज्य की स्थापना करना था। इसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष किये। बढ़ते समय के साथ-साथ इस साम्राज्य का विस्तार होता गया और साथ में इसके शासक भी बदलते गये। इस तरह करीब 144 वर्षों तक शासन करते करते 1818 ईस्वी में इस साम्राज्य का ‘पेशवा बाजीराव द्वितीय’ की हार के साथ अंत हो गया।
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मराठा साम्राज्य की सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति
धार्मिक विविधता मराठा साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू था। मराठा मुख्य रूप से हिंदू थे, लेकिन उनके शासन काल में मुस्लिम समुदाय समेत अन्य धार्मिक और जातीय समूह के लोग भी रहते थे। मराठा साम्राज्य अपनी घार्मिक परंपराओं के लिए जाने जाते थे। इसके अलावा वह कला और साहित्य के संरक्षण के लिए भी जाने जाते थे। वह संगीत, कविता और नृत्य के प्रेमी थे। उनका दरबार कलात्मक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था।
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मराठा युद्ध (1775-82, 1803-05, 1817-18)
भारत के इतिहास में ब्रिटिश सेनाओं और मराठो के बीच तीन मराठा युद्ध हुए हैं। ये तीनों युद्ध 1775 ई. से लेकर 1818 ई. तक चले। इन तीनो युद्धों का विवरण नीचे दिया गया है:-
प्रथम युद्ध (1775-82)
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच हुए तीन प्रमुख युद्धों से मराठा साम्राज्य का अंत में पूरी तरह से पतन हो गया। रघुनाथ राव ने ईस्ट इंडिया कंपनी से मित्रता करके पेशवा बनने का सपना देखा। इसके बदले में रघुनाथ ने सूरत ज़िलों की आय का कुछ भाग अंग्रेज़ों को देना स्वीकार किया। लेकिन बाद में मराठा साम्राज्य द्वारा प्रथम युद्ध लड़ा गया जिसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी पराजित हो गई, लेकिन उन्होंने मराठों के साथ ‘सालबाई की संधि’ होने तक यानी की 1782 तक युद्ध जारी रखा।
द्वितीय युद्ध (1803-05)
दूसरे युद्ध के दौरान, अंग्रेजो और मराठा साम्राज्य के बीच एक बार फिर लड़ाई हुई जो 1803 से 1805 तक चली। 1803 ई. में अंग्रेज़ो ने कई मराठा विद्रोहियों को मार गिराया और साथ-साथ ग्वालियर के सिंधिया राजाओं को भी उखाड़ फेंका। इन लड़ाइयों में मराठा सेना बुरी तरह हार गयी और बदले में अंग्रेजों को दिल्ली-आगरा क्षेत्र कई गुजराती जिले, बुंदेलखंड के हिस्से और अहमदनगर किले का क्षेत्र दिया गया।
तृतीय युद्ध (1817-18)
1817 से 1818 ई. तक चले तीसरे युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना मराठों के खिलाफ लड़ी थी। इस समय तक अंग्रेजो ने भारत के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण हासिल कर लिया था। धीरे धीरे करके अंग्रेज़ बाकि क्षेत्रों में भी नियंत्रण करने लगे और अंत में जून 1818 में, इस संघर्ष के परिणामस्वरूप इस साम्राज्य का पतन हो गया।
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मराठा साम्राज्य के शासक
मराठा साम्राज्य के शासक और उनका विवरण आप नीचे दी गई तालिका में देख सकते हैं:-
मराठा शासक | शासनकाल | विवरण |
छत्रपति शिवाजी महाराज | 1674ई० से 1680ई० | मराठा साम्राज्य की स्थापना ‘छत्रपति शिवाजी’ महाराज द्वारा की गई थी। वह भोंसले मराठा परिवार से थे और अपने युग के सबसे महान शासक माने जाते थे। |
छत्रपति सम्भाजी महाराज | 1681ई० से 1689 ई० | छत्रपति सम्भाजी महाराज, इस साम्राज्य के दूसरे छत्रपति और शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र थे। |
छत्रपति राजाराम प्रथम | 1689ई० से 1700 ई० | राजाराम राजे भोंसले इस साम्राज्य के तीसरे शासक थे। वह संस्थापक छत्रपति शिवाजी के छोटे पुत्र थे तथा सम्भाजी के सौतेले भाई थे। उन्होंने इस साम्राज्य में 11 वर्षों तक शासन किया। अपने शासनकाल के अधिकांश समय में वह मुग़लों से युद्ध में ही उलझे रहे। |
महारानी ताराबाई | 1700 ई० से 1707ई० | रानी ताराबाई, छत्रपति शिवाजी की पुत्रवधु थी। सन् 1700 में उनके पति यानी छत्रपती राजाराम महाराज की मृत्यु के बाद ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को इस साम्राज्य की राजगद्दी पर बिठाया और फिर खुद ही साम्राज्य को औरंगजेब और मुगलों से संरक्षित रखा। उन्होंने 1700 से 1707 ई. तक औरंगजेब को बार बार धुल चटाई। |
छत्रपति शाहू | 1707 ई० से 1749ई० | वह एक सच्चे लोकतंत्रवादी और समाज सुधारक थे। इन्होने इस साम्राज्य में 42 वर्षो तक शासन किया। |
छत्रपति शाहू द्वितीय | 1777 ई० से 1808ई० | शाहु द्वितीय, राजाराम द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। उन्होंने मराठा साम्राज्य में 31 वर्षों तक शासन किया। |
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मराठा साम्राज्य का पतन
मराठा साम्राज्य पर छत्रपति शिवाजी के सात वंशजों द्वारा शासन किया गया था। शिवाजी के नेतृत्व में ही यह साम्राज्य भारत के सबसे बड़े साम्राज्य में से एक बन गया था लेकिन उनकी मृत्यु के बाद से साम्राज्य पतन की ओर बढ़ने लगा। इसका मुख्य कारण था शिवाजी के बाद शासन करने वाले शासक राज्य में मजबूत और स्थिर अर्थव्यवस्था बनाए रखने में असमर्थ थे। इस कमजोर आर्थिक व्यवस्था के कारण उनके क्षेत्र में बार-बार अकाल पड़ता गया। इसके अलावा उनमें एकता का अभाव था, मराठों ने भारतीय राज्यों से शत्रुता मोल ली थी। इन प्रमुख कारणों से यह साम्राज्य दिन प्रतिदिन कमजोर होता चला गया और इसका पतन हो गया।
FAQs
मराठा साम्राज्य (1674-1818) के संस्थापक छत्रपति शिवाजी थे।
मराठा साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण शिवाजी और बाजीराव प्रथम जैसे महान शासकों की मृत्यु और उसके बाद साम्राज्य में सक्षम नेतृत्व का अभाव था।
शिवाजी ने 1674 में ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की जिसका अर्थ है रक्षक। 1674 में, शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाई और खुद को ‘छत्रपति’ के रूप में ताज पहनाया।
मराठा साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा बाजीराव थे, जिन्हें बाजीराव बल्लाल के नाम से भी जाना जाता था।
मराठा साम्राज्य का अंतिम शासक बाजी राव द्वितीय था।
मराठा साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण उसके प्रशासन में केंद्रीकरण का अभाव था।
आशा है कि आपको मराठा साम्राज्य के बारे में जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।