Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वानों में से एक माने जाते हैं। हिंदी साहित्य जगत में द्विवेदी जी ने निबंध, उपन्यास व आलोचना विधा में कई अनुपम कृतियों का सृजन किया हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1957 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही उन्हें वर्ष 1973 में ‘आलोक पर्व’ निबंध-संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से अलंकृत किया जा चुका हैं।
बता दें कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की कई रचनाएँ जिनमें ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ (उपन्यास), ‘कुटज’, ‘अशोक के फूल’, ‘देवदारु’, ‘नाखून क्यों बढ़ते हैैं’, ‘शिरीष के फूल’ (निबंध), ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’ व ‘हिंदी साहित्य: उद्बव और विकास’ (आलोचना) आदि को स्कूल के साथ ही बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं।
वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं, इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय (Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay) और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
आइए अब हम आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय (Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूल नाम | बैजनाथ द्विवेदी |
उपनाम | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi) |
जन्म | 19 अगस्त, 1907 |
जन्म स्थान | बलिया जिला, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | पंडित अनमोल द्विवेदी |
शिक्षा | डी.लिट की मानद उपाधि |
पेशा | साहित्यकार, अध्यापक |
भाषा | हिंदी |
विधाएँ | उपन्यास, निबंध, आलोचना, संपादन |
उपन्यास | बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख, अमानदास का पोथा आदि। |
निबंध | कल्पतरु, नाखून क्यों बढ़ते है, अशोक के फूल, देवदारु, बसंत आ गया आदि। |
आलोचना | हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य का आदिकाल, नाथ संप्रदाय, साहित्य सहचर आदि। |
संपादन | पृथ्वीराज रासो, संदेश रासक, नाथ सिद्धो की बानियाँ। |
पुरस्कार | पद्मभूषण (1957), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973), टैगोर पुरस्कार (1966) |
विशेष | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कई सरकारी संस्थानों में अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत हो चुके हैं। |
निधन | 19 मई, 1979 |
This Blog Includes:
- उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ जन्म
- ज्योतिषचार्य की उपाधि प्राप्त की
- अध्यापन कार्य से की करियर की शुरुआत
- विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक रचनाएँ – Hazari Prasad Dwivedi Ki Sahityik Rachnaye
- पुरस्कार एवं सम्मान
- दिल्ली में हुआ निधन
- पढ़िए हिंदी साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ जन्म
प्रकाण्ड विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 को गाँव ‘आरत दुबे का छपरा’, जिला छपरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। बता दें कि द्विवेदी जी का मूल नाम ‘बैजनाथ द्विवेदी’ था किंतु हिंदी जगत में वह आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (Acharya Hazari Prasad Dwivedi) के नाम से जाने जाते थे। इनके पिता का नाम ‘पंडित अनमोल द्विवेदी’ था जो ज्योतिष विद्या व संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। वहीं इनका परिवार गांव में ज्योतिष विद्या के लिए विख्यात था।
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ज्योतिषचार्य की उपाधि प्राप्त की
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्राथमिक और मिडिल की शिक्षा गांव से ही हुई। इसके बाद उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय, काशी से शास्त्री की उपाधि हासिल की। फिर वह बनारस चले गए और यहाँ उन्होंने वर्ष 1930 में ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ से ज्योतिषचार्य की उपाधि प्राप्त की।
अध्यापन कार्य से की करियर की शुरुआत
अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद वह शांति निकेतन, कोलकाता चले गए और यहाँ उन्होंने वर्ष 1930 में शांति निकेतन में हिंदी का अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। यहीं उन्हें ‘गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर’ और ‘आचार्य क्षितिमोहन सेन’ का सानिध्य प्राप्त हुआ। वहीं उनके प्रभाव के कारण उन्होंने साहित्य का गहन अध्ययन किया और स्वतंत्र लेखन की शुरुआत की। बीस वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन करके के दौरान वह वर्ष 1940 से 1950 तक हिंदी भवन, शांति निकेतन के निदेशक भी रहे।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
इसके उपरांत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी वर्ष 1950 में वापस बनारस आ गए और ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने। इसके बाद द्विवेदी जी ने वर्ष 1952 में ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। फिर उन्हें वर्ष 1955 में प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर कुछ वर्षों तक कार्य करने के बाद उन्होंने वर्ष 1960 से 1967 तक पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी विभागाध्यक्ष का पद ग्रहण किया।
इसके बाद वह वर्ष 1967 में द्विवेदी जी ने ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ में रेक्टर के रूप में कार्यभार संभाला। यहाँ से सेवानिवृत होने के बाद वह भारत सरकार की कई हिंदी विषयक योजनाओं में संबद्ध रहे। वहीं जीवन के अंतिम वर्षों में वह ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक रचनाएँ – Hazari Prasad Dwivedi Ki Sahityik Rachnaye
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay) जी ने आधुनिक हिंदी साहित्य की कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिनमे मुख्य रूप से उपन्यास, निबंध और आलोचना विधाएँ शामिल हैं। यहाँ द्विवेदी जी की संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
उपन्यास
- बाणभट्ट की आत्मकथा- वर्ष 1946
- चारु चंद्रलेख- वर्ष 1963
- पुनर्नवा – वर्ष 1973
- अनामदास का पोथा – वर्ष 1976
निबंध-संग्रह
- अशोक के फूल
- कल्पलता
- विचार और वितर्क
- विचार-प्रवाह
- कुटज
- आलोक पर्व
- विष के दंत
- कल्पतरु
- गतिशील चिंतन
- साहित्य सहचर
- नाखून क्यों बढ़ते हैं
आलोचनात्मक ग्रंथ
- हिंदी साहित्य की भूमिका
- सूर साहित्य
- कबीर
- कालिदास की लालित्य-योजना
- हिंदी साहित्य
- हिंदी साहित्य का आदिकाल
- नाथ संप्रदाय
- हिंदी साहित्य: उद्भव और विकास
- मध्यकालीन बोध का स्वरूप
- साहित्य का मर्म
- प्राचीन भारत में कलात्मक विनोद
- मेघदूत: एक पुरानी कहानी
- मध्यकालीन धर्म साधना
संपादन
- पृथ्वीराज रासो
- संदेश रासक
- नाथ सिद्धो की बानियाँ
पुरस्कार एवं सम्मान
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी (Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay) को आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- पद्म भूषण – वर्ष 1957
- टैगोर पुरस्कार – वर्ष 1966
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – (वर्ष 1973 में ‘आलोक पर्व’ निबंध-संग्रह के लिए सम्मानित)
- द्विवेदी जी को ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ द्वारा डी.लिट. की उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका हैं।
दिल्ली में हुआ निधन
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने संपूर्ण जीवन में कई विधाओं में अनेक अनुपम रचनाएँ हिंदी साहित्य जगत को दी हैं। वहीं जीवन के अंतिम वर्षों में भी उन्होंने हिंदी के विकास में अपना अहम योगदान दिया था। किंतु इस महान साहित्यकार का 19 मई 1979 को ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी का दिल्ली में उपचार कराने के दौरान निधन हो गया। परन्तु द्विवेदी जी की रचनाओं और हिंदी के उत्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उन्हें हिंदी सहित्य जगत में हमेशा याद किया जाता रहेगा। भारतीय डाक विभाग ने द्विवेदी जी के सम्मान में वर्ष 1997 में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था।
पढ़िए हिंदी साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ विख्यात साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय (Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay) के साथ ही हिंदी साहित्य के अन्य साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही है। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
FAQs
द्विवेदी जी का मूल नाम बैजनाथ द्विवेदी था। किंतु साहित्य जगत में उन्हें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम से जाना जाता था।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 को गाँव ‘आरत दुबे का छपरा’, जिला छपरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
द्विवेदी जी के पिता का नाम पंडित अनमोल द्विवेदी’ था जो ज्योतिष विद्या व संस्कृत के प्रकांड पंडित थे।
बता दें कि वर्ष 1973 में उन्हें ‘आलोक पर्व’ निबंध-संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का 72 वर्ष की आयु में ब्रेन ट्यूमर की बीमारी के कारण 19 मई 1979 को निधन हो गया था।
‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ (उपन्यास), ‘कुटज’, ‘अशोक के फूल’, ‘देवदारु’, ‘नाखून क्यों बढ़ते हैैं’ (निबंध), ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’ व ‘हिंदी साहित्य: उद्बव और विकास’ (आलोचना) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
हजारी प्रसाद द्विवेदी, आधुनिक काल के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे।
आशा है कि आपको आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय (Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।