Rabindranath Tagore: जानिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय के बारे में विस्तार से

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Rabindranath Tagore

गुरुदेव के नाम से मशहूर रवींद्रनाथ टैगोर भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों और लेखकों में से एक है। रविंद्रनाथ टैगोर ने चित्रकला में उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण किया और कई कविताएं भी लिखीं। एक दार्शनिक, चित्रकार, कवि, मानवतावादी, कहानीकार और एक उपन्यासकार के तौर पर वे बेमिसाल है। रवींद्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ व ‘कबीगुरू’ के नाम से भी जाना जाता हैं। वह एशिया के प्रथम व्यक्ति थे जिन्हें वर्ष 1913 में साहित्य के प्रतिष्ठित ‘नोबेल पुरस्कार’ (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया था। माना जाता है कि उन्होंने 2000 से अधिक गीतों की रचना की हैं जिन्हें ‘रबींद्र संगीत’ (Rabindra Sangeet) कहा जाता है। ऐसे महान पुरुष बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए। इसलिए आज के इस ब्लॉग में हम भारत के प्रथम नोबल पुरस्कार विजेता और विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर की बारे में विस्तार से जानेंगे।

उससे पहले रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में कुछ प्रमुख जानकारी के लिए नीचे दिए गए टेबल को देखें।

जन्म7 मई 1861
पिताश्री देवेन्द्रनाथ टैगोर
माताश्रीमति शारदा देवी
जन्मस्थानकोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाबंगाली, इंग्लिश
उपाधिलेखक और चित्रकार
प्रमुख रचनागीतांजलि
पुरस्कारनोबोल पुरुस्कार
निधन7 अगस्त 1941

रवींद्रनाथ टैगोर का प्रारंभिक जीवन

‘गुरुदेव’ रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता (पूर्व ब्रिटिश भारत) में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके प‍िता का नाम ‘देवेंद्रनाथ टैगोर’ था, जबक‍ि माता ‘शारदा देवी’ थीं। वह अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे।उनके बड़े भाई एक कवि और उनकी बहन एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। वहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता में ही हुई। बता दें कि साहित्य के प्रति उन्हें बचपन से ही बहुत लगाव था उन्होंने मात्र 08 वर्ष की अल्प आयु में पहली कविता लिखी थी। 1883 में रवींद्रनाथ टैगोर ने मृणालिनी देवी से शादी की थी। इस विवाह से उन्हें पांच बच्चे हुए। उनकी पत्नी का वर्ष 1902 में निधन हो गया था और बाद में उनकी दो संतान रेणुका (1903 में) और समन्द्रनाथ (1907 में) का भी निधन हो गया था ।

“प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है।”-रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा

भारत के शैक्षिक इतिहास में प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के नाते, Rabindranath Tagore देश में उस समय प्रचलित शिक्षा प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे, जिससे उन्हें इससे अलग कर दिया। एक शिक्षित परिवार में पैदा होने के बावजूद, Rabindranath Tagore ने स्कूल में पढ़ाई नहीं की और घर पर ही शिक्षा प्राप्त की। यद्यपि 1878 में उन्हें औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा गया, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

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Rabindranath Tagore का करियर

रवींद्रनाथ टैगोर ने इंग्लैंड से वापस आने के बाद और अपने शादी से लेकर सन् 1901 तक पूरा समय सिआलदा ( बांग्लादेश के अंदर स्थित है)  अपने परिवार के साथ बिताया था। उनके बच्चे और पत्नी भी उनके साथ वर्ष 1898  रहने लगे थे। रवींद्रनाथ टैगोर ने बहुत समय तक भ्रमण किया और गरीब लोगों का जीवन बहुत ही करीबी से देखा था। उन्होंने वर्ष 1891 से 1895 तक ग्रामीण आधारित लघु कथाएं लिखी थी।

रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1901 में शांतिनिकेतन चले गए और स्कूल , पुस्तकालय और पूजा स्थल का भी निर्माण किया । उन्होंने बहुत सारे पेड़ और एक सुंदर बगीचा भी बनाया था। उसी स्थान पर उनकी पत्नी और दो बच्चों की भी मौत हो गई थी। सन् 1905 में उनके पिताजी भी चल बसे थे। फिर इसके बाद उन्हें अपनी विरासत से मिली संपत्ति से मासिक आमदनी साथ ही साथ होने लगी थी और इसके साथ कुछ आमदनी उनके साहित्य की रॉयल्टी से भी मिलने लगी थी। 

Rabindranath Tagore ने सन 1878 से लेकर सन 1932 के दौरान कुल 30 देशों की यात्रा की थी। उनकी यात्राओं का सबसे मुख्य मकसद यह था कि अपनी साहित्यिक रचनाओं को उन सभी तक पहुंचाना था जिन्हें बंगाली भाषा समझ में नहीं आती थी। विलियम बटलर यीटस जो अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि थे उन्होंने गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद का प्रस्तावना लिखा था। रवींद्रनाथ टैगोर शिलोन ( जो अभी श्रीलंका के अंदर स्थित है ) सन 1932 की अंतिम विदेश यात्रा थी।

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Rabindranath Tagore का साहित्य, संगीत और कला

लोग वींद्रनाथ टैगोर को एक कवि के रूप में ही ज्यादातर जानते हैं परंतु वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। कविताओं के साथ-साथ उन्होंने लेख, लघु कहानियाँ, उपन्यास, यात्रा वृत्तांत, ड्रामा और हजारों गीत भी लिखे थे।

रवींद्रनाथ टैगोर एक महान कवि और साहित्यकार के साथ एक उत्कृष्ट संगीतकार और पेंटर भी थे। उन्होंने अपने जीवन में लगभग 2230 गीत लिखे थे- इन सभी चीजों को रवींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है। यह बंगाली संस्कृति के अभिन्न अंग में से एक है। 

  • भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रीय गीत रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ही लिखी गई है।
  • यह राष्ट्रगीत भी रविंद्र संगीत का हिस्सा है।

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कैसे मिला टैगोर को नोबेल पुरस्कार

रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी रचना ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। गीतांजलि मूलत: बांग्ला में लिखी गई थी। जिसके बाद टैगोर ने इन कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद करना शुरू किया। कुछ अनुवादित कविताओं को उन्होंने अपने एक चित्रकार दोस्त विलियम रोथेंसटाइन से साझा किया। विलियम को कविताएं काफी पसंद आईं। उन्होंने ये कविताएं प्रसिद्ध कवि डब्ल्यू. बी. यीट्स को पढ़ने के लिए दी। उन्हें भी ठीक वैसे ही ये कविताएं पसंद आईं और वे इन कविताओं को पढ़कर इतने खुश हो गए थे कि उन्होंने गीतांजलि किताब भी पढ़ने के लिए मंगवाई। धीरे-धीरे पश्चिमी साहित्य जगत में गीतांजलि काफी प्रसिद्ध होने लगी। जिसके बाद 1913 में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जब टैगोर ने ठुकराया नाइटहुड जैसा महान सम्मान

टैगोर हमेशा से एक राष्ट्रवादी नेता रहे थे उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश नीतियों का विरोध करने के लिए अपना नाइटहुड (Knighthood) सम्मान छोड़ दिया था। आपको बता दें कि उनको यह सम्मान 1915 में उच्च साहित्य के लिए अंग्रेजों ने दिया था।

भारत के अलावा इस देश के लिए लिखा राष्ट्र-गान

रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय साहित्य को अतुलनीय योगदान दिया है और अपने देश को राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ दिया है। इसी को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें सम्मान देते हुए गुरूदेव की उपाधि दी थी। उनके द्वारा लिखा गया राष्ट्रगान गीत को 24 जनवरी 1950 में संविधान में जगह मिली। भारत के अलावा भी ऐसे दो और देश है जिनके राष्ट्रगान रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखे हैं।

  • उनमें से एक देश है बांग्लादेश, जिसका राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ उन्होंने लिखा है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य इस प्रकार है :

शारीरिक विकास –

रविंद्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा का सबसे पहला उद्देश्य है बालकों का शारीरिक विकास करना। बालकों का शारीरिक विकास तभी संभव है जब कि उन्हें सुखद प्राकृतिक वातावरण में स्वतंत्रता पूर्वक खेलने कूदने उठने बैठने का अवसर दिया जाएं। शरीर के विभिन्न अंगों तथा इंद्रियों को प्रशिक्षित किया जाएं।

मानसिक या बौद्धिक विकास –

रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार शारीरिक विकास के साथ-साथ शिक्षा का उद्देश्य मानसिक या बौद्धिक विकास भी करना है। वह पुस्तकों से विचार प्राप्त करना मानसिक विकास का केवल एक अंग मानते थे। उन्होंने पुस्तकों की बजाय प्रकृति और जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त करने पर अधिक बल दिया है। रविंद्र नाथ टैगोर का कथन है,”पुस्तकों की बजाय प्रत्यक्ष रूप से जीवित व्यक्ति को जानने का प्रयास करना शिक्षा है।

संवेगात्मक विकास –

बालक के शरीर, मन तथा संवेगो, तीनों का संपूर्ण विकास चाहते थे। अतः उन्होंने शारीरिक तथा मानसिक विकास के साथ-साथ संवेगात्मक विकास पर भी बल दिया है। उनके अनुसार कविता, संगीत, चित्रकला, नृत्य कला इत्यादि के द्वारा बालकों को संवेगात्मक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए जिससे उनमें सौंदर्य, प्रेम, सहानुभूति इत्यादि स्वस्थ भावनाओं का विकास हो सके।

सामंजस्य की क्षमता का विकास –

रवींद्रनाथ टैगोर का विचार था कि बालको को जीवन की वास्तविक परिस्थितियां, विभिन्न सामाजिक स्थितियों तथा पर्यावरण की जानकारी कराई जाए और उनसे सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता का विकास किया जाए। “इस समय हमारा ध्यान चाहने वाली प्रथम और महत्वपूर्ण समस्या है हमारी शिक्षा और हमारे जीवन में सामंजस्य स्थापित करने की समस्या।”

सामाजिक विकास –

टैगोर ने प्राकृतिक शिक्षा पर अधिक बल दिया लेकिन उन्होंने बालक के सामाजिक विकास पर भी बल दिया है। उनका कहना था कि बालकों में सामाजिक गुणों का विकास करना शिक्षा का एक अति महत्वपूर्ण उद्देश्य है। तभी वह स्वयं तथा समाज की प्रगति में हाथ बटा सकेंगे।

नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास

टैगोर ने शिक्षा का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य बताया, बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास। इस विकास के लिए टैगोर ने अनेक नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों तथा आदर्शों को बताया जैसे अनुशासन का मूल्य, शांति और धैर्य का मूल्य, मनुष्य के आंतरिक विकास का मूल्य आदि। अनुशासन के मूल्य से टैगोर का तात्पर्य बालको में आत्म अनुशासन का विकास करना है। शांति और धैर्य के मूल्यों का प्राप्त करना अनुशासन का अंतिम लक्ष्य है। इस मूल्य की प्राप्ति से व्यक्ति में नम्रता की भावना का विकास होता है। आंतरिक विकास के मूल्यों से टैगोर का तात्पर्य है कि आंतरिक स्वतंत्रता एवं आंतरिक शक्ति तथा ज्ञान।

“मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ भोर होने पर दीपक बुझाना है।”- रबीन्द्रनाथ ठाकुर

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Rabindranath Tagore की प्रमुख रचनाएं

Rabindranath Tagore की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित है :

  • गोरा (उपन्यास) – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अनमोल भेंट/मुन्ने की वापसी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अनाथ – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अनाधिकार प्रवेश – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अपरिचिता – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अवगुंठन – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अन्तिम प्यार – रवींद्रनाथ टैगोर
  • इच्छापूर्ण/इच्छा पूर्ति – रवींद्रनाथ टैगोर
  • कवि और कविता – रवींद्रनाथ टैगोर
  • कवि का हृदय – रवींद्रनाथ टैगोर
  • कंचन – रवींद्रनाथ टैगोर
  • काबुलीवाला – रवींद्रनाथ टैगोर
  • खोया हुआ मोती – रविंद्रनाथ टैगोर
  • गूंगी रबीन्द्रनाथ – रवींद्रनाथ टैगोर
  • जीवित और मृत – रवींद्रनाथ टैगोर
  • तोता – रवींद्रनाथ टैगोर
  • धन की भेंट – रवींद्रनाथ टैगोर
  • नई रोशनी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • पत्नी का पत्र – रवींद्रनाथ टैगोर
  • प्रेम का मूल्य – रवींद्रनाथ टैगोर
  • पाषाणी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • पिंजर – रवींद्रनाथ टैगोर
  • भिखारिन – रवींद्रनाथ टैगोर
  • यह स्वतन्त्रता/घर वापसी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • विद्रोही – रवींद्रनाथ टैगोर
  • विदा – रवींद्रनाथ टैगोर
  • समाज का शिकार – रवींद्रनाथ टैगोर
  • सीमान्त – रवींद्रनाथ टैगोर
  • पड़ोसिन – रवींद्रनाथ टैगोर
  • संकट तृण का – रवींद्रनाथ टैगोर
  • आधी रात में – रवींद्रनाथ टैगोर
  • अतिथि – रवींद्रनाथ टैगोर
  • एक रात – रवींद्रनाथ टैगोर
  • पोस्टमास्टर – रवींद्रनाथ टैगोर
  • मुसलमानी की कहानी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • एक छोटी पुरानी कहानी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • गिन्‍नी – रवींद्रनाथ टैगोर
  • संपादक – रवींद्रनाथ टैगोर
  • फूल का मूल्य – रवींद्रनाथ टैगोर

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Rabindranath Tagore का अंतिम समय

रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के अंतिम 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये थे। रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी में इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कविताएं लिखते थे और मन को हल्का करते थे । इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं। लम्बी बीमारी के बाद 80 वर्ष की उम्र 7 अगस्त 1941 को रवींद्रनाथ टैगोर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

“जो कुछ हमारा है वो हम तक तभी पहुचता है जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करते हैं। “- रबीन्द्रनाथ ठाकुर

Rabindranath Tagore की प्रसिद्ध कविताएँ 

Rabindranath Tagore की प्रसिद्ध कविताएँ इस प्रकार है :

1. Rabindranath Tagore Poems in Hindi 

(मेरा शीश नवा दो – गीतांजलि (काव्य)

मेरा शीश नवा दो अपनी
चरण-धूल के तल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

अपने को गौरव देने को
अपमानित करता अपने को,

घेर स्वयं को घूम-घूम कर
मरता हूं पल-पल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

अपने कामों में न करूं मैं
आत्म-प्रचार प्रभो;

अपनी ही इच्छा मेरे
जीवन में पूर्ण करो।

मुझको अपनी चरम शांति दो
प्राणों में वह परम कांति हो

आप खड़े हो मुझे ओट दें
हृदय-कमल के दल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

-रवीन्द्रनाथ टैगोर

2. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (होंगे कामयाब)

होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन।
हम चलेंगे साथ-साथ

डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।

3. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (चल तू अकेला!)

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,

जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,

हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,

मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..

ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

4. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (नहीं मांगता)

नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से,
मुझे बचाओ, त्राण करो

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

नहीं मांगता दुःख हटाओ
व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ

दुखों को मैं आप जीत लूँ
ऐसी शक्ति प्रदान करो

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

कोई जब न मदद को आये
मेरी हिम्मत टूट न जाये।

जग जब धोखे पर धोखा दे
और चोट पर चोट लगाये –

अपने मन में हार न मानूं,
ऐसा, नाथ, विधान करो।

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी
जीवन नैया पार करो

पार उतर जाऊँ अपने बल
इतना, हे करतार, करो।

नहीं मांगता हाथ बटाओ
मेरे सिर का बोझ घटाओ

आप बोझ अपना संभाल लूँ
ऐसा बल-संचार करो।

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

सुख के दिन में शीश नवाकर
तुमको आराधूँ, करूणाकर।

औ’ विपत्ति के अन्धकार में,
जगत हँसे जब मुझे रुलाकर

तुम पर करने लगूँ न संशय,
यह विनती स्वीकार करो।

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

5. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (मन जहां डर से परे है)

“मन जहां डर से परे है और सिर जहां ऊंचा है; ज्ञान जहां मुक्त है;
और जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;

जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं;
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;

जहां कारण की स्पष्ट धारा है।।
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के वीराने में अपना रास्*ता खो नहीं चुकी है;

Source : Study IQ Education

आशा करते हैं कि आपको Rabindranath Tagore का यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के बारे में जानने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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