भारत के इतिहास में चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश काल में गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुआ था। गांधी जी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन के समय भीड़ ने उग्र रूप ले लिया और पुलिस चौकी में आग लगा दी। इस दुर्घटना में आग में जलकर 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से द्रवित होकर महात्मा गांधी ने अपने असहयोग आंदोलन को बीच में रोक दिया। जिस समय असहयोग आंदोलन को बंद किया गया उस समय यह अपने पूरे शिखर पर था। इतिहास में यह घटना Chauri Chaura Incident in Hindi के नाम से जानी जाती है।
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Chauri Chaura Incident in Hindi: घटना की नींव
चौरी चौरा हत्यकांड उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित दो गांव में 4 फरवरी 1922 को घटी दिल दहला देने वाली घटना थी। चौरी चौरा गांव के थाने से एक मील की दूरी पर छोटकी डमरी गांव है जहाँ 1921 जनवरी को कांग्रेस के वालंटियरों के एक मंडल की स्थापना हुई। चौरी-चौरा की घटना से लगभग 10-12 दिन पहले डुमरी के करीब 30 से 35 वालंटियर्स ने मुंडेरा बाज़ार में धरना दिया। इस बाज़ार का मालिक था संत बक्स सिंह। संतबक्स के आदमियों ने वालंटियर्स को बाज़ार से खदेड़ दिया। वालंटियर्स ने तय किया कि अगली बार वे और ज्यादा संख्या में आएंगे इसके बाद वालंटियरों की संख्या बढ़ाने पर काम किया गया।
चौरी-चौरा हत्यकांड से करीब चार दिन पहले कांग्रेस के मंडल कार्यकर्ता डुमरी में एक बड़ी सभा आयोजित की। सभा में करीब 4000 लोग शामिल हुए थे। इस सभा की सफलता से उत्साहित कार्यकर्ताओं ने दूसरे दिन यानी 1 फरवरी, दिन बुधवार को फिर से संतबक्स की मुंडेरा बाजार में धरना देने का मन बनाया। करीब 60 से 65 वालंटियर नज़र अली, लाल मुहम्मद सांई और मीर शिकारी की लीडरशिप में बाजार पहुंचे। लेकिन संत बक्स सिंह के आदमियों ने एक बार फिर उन्हें डांट-डपट कर भगा दिया। लेकिन वापस जाने से पहले इन कार्यकर्ताओं ने संत बक्श सिंह के कर्मचारियों को चेतावनी दी। कहा कि शनिवार को वे और भी ज्यादा लोगों के साथ आएंगे। अंत में 4 फरवरी 1922 को सुबह आठ बजे लगभग 800 लोग एक जगह जमा हुए और चर्चा की गई कि बदला कैसे लिया जाए।
पुलिस और भीड़ के बीच हुई झड़प
सभी कार्यकर्त्ता बाजार बंद कराने के लिए तत्पर थे। जब जुलूस थाने के सामने से गुजर रहा था तब माहौल बिगड़ने की आशंका देखते हुए दरोगा ने जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया। इस पर पुलिस और भीड़ के बीच झड़प शुरू हो गई भीड़ भड़क गई। उसी दौरान थाने के एक सिपाही ने एक आंदोलनकारी की गांधी टोपी उतार ली उसे पैर से कुचलने लगा। पुलिस वालों की इस हरकत से आंदोलनकारियों का गुस्सा भड़क गया। बात हाथ से निकलती देख पुलिसवालों ने जुलूस में शामिल लोगों पर फ़ायरिंग शुरू कर दी। इस गोलीबारी में 11 आंदोलनकारियों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। इससे गुस्सा होकर आंदोलनकारियों ने किसी थाने में आग लगा दी। दरोगा गुप्तेश्वर सिंह ने भागने की कोशिश की, तो भीड़ ने उसे भी पकड़कर आग में फेंक दिया। इस हत्याकांड में कुल मिलाकर 22 पुलिसवाले जिंदा जलाकर मार दिए गए।
चौरी चौरा हत्याकांड के परिणाम
चौरी चौरा हत्याकाण्ड के निम्नलिखित परिणाम हुए :
- इस घटना से दुखी होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को बीच में ही रोकने की घोषणा कर दी।
- असहयोग आंदोलन के ख़त्म हो जाने के कारण भारत की आज़ादी के लड़ाई पर भी एक ब्रेक सा लग गया।
- अगर यह घटना नहीं होती तो असहयोग आंदोलन कामयाब होता और भारत को बहुत पहले ही आज़ादी मिल चुकी होती।
चौरी चौरा हत्याकांड से सम्बंधित स्मारक
चौरी चौरा काण्ड से सम्बंधित स्मारक इस प्रकार हैं :
- अंग्रेज सरकार ने मारे गए पुलिसवालों की याद में एक स्मारक का निर्माण किया था, जिस पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जय हिन्द और जोड़ दिया गया।
- स्थानीय लोग उन 19 लोगों को नहीं भूले जिन्हें मुकदमे के बाद फाँसी दे दी गयी थी। उन्होने उन शहीदों की याद में ‘ शहीद स्मारक समिति’ का निर्माण किया।
- बाद में सरकार ने उन शहीदों की स्मृति में एक स्मारक बनवाया। इस स्मारक पर उन लोगों के नाम खुदे हुए हैं जिन्हें फाँसी दी गयी थी (विक्रम, दुदही, भगवान, अब्दुल्ला, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, मोहन, संपत, श्याम सुंदर और सीताराम )। इस स्मारक के पास ही स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित एक पुस्तकालय और संग्रहालय भी बनाया गया है।
- क्रांतिकारियों के याद में कानपुर से गोरखपुर के मध्य में ‘चौरी-चौरा एक्सप्रेस’ नामक एक रेलगाड़ी चलाई गई।
FAQs
चौरी चौरा कांड वर्ष 1922 (5 फरवरी) को हुआ था। लॉर्ड रीडिंग तत्कालीन वायसराय थे।
चौरी चौरा हत्याकांड 4 फरवरी 1922 को हुआ था।
चौरी चौरा हत्याकांड को अब चौरी चौरा क्रान्ति के नाम से जाना जाएगा।
चौरी चौरा क्रांती
चौरी चौरा की घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को रोक दिया था
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