बंगाल विभाजन: जानिए भारत की आजादी से पूर्व इस ऐतिहासिक घटना के बारे में 

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बंगाल विभाजन

आजादी से पूर्व बंगाल प्रान्त का क्षेत्रफल 489,500 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या लगभग 8 करोड़ से ज्यादा थी। पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) भौगोलिक रूप से एवं कम संचार साधनों के कारण पश्चिमी बंगाल से लगभग अलग-थलग था। सन 1836 में बंगाल की ऊपरी प्रांतों (वर्तमान बांग्लादेश) को एक ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर के शासन के अंतर्गत कर दिया गया और सन 1854 में गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल को बंगाल के प्रत्यक्ष प्रशासन से मुक्त कर दिया गया। 

अलग चीफ-कमिश्नरशिप बनाने के लिए सन 1874 में असम को सिलहट सहित, बंगाल से अलग कर दिया गया और बाद में सन 1898 में लुशाई हिल्स को भी इसमें शामिल कर दिया गया। बंगाल जैसे बड़े और इतनी अधिक आबादी वाले प्रान्त का प्रबंधन बहुत कठिन था। इसलिए यहाँ आजादी से पूर्व इस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताया जा रहा है जिसे बंगाल विभाजन के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं बंगाल का विभाजन कब हुआ था और इसके संपूर्ण इतिहास के बारे में विस्तार से सभी अहम जानकारी।

बंग भंग की शुरुआत 

सर्वप्रथम सन 1903 में बंगाल के विभाजन के बारे में विचार किया गया था। चटगाँव तथा ढाका और मैमनसिंह के जिलों को बंगाल से अलग कर असम प्रान्त में मिलाने के अतिरिक्त प्रस्ताव भी रखे गए थे। इसी प्रकार छोटा नागपुर को भी केन्द्रीय प्रान्त से मिलाया जाना था। सन् 1903 में ही कांग्रेस का भी 19वाँ अधिवेशन मद्रास में हुआ था। उसी अवसर पर उसके सभापति ‘श्री लालमोहन घोष’ ने अपने अभिभाषण में सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति की आलोचना करते हुए एक अखिल भारतीय मंच पर आसन्न बंग भंग की सूचना दी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का एक षड्यंत्र चल रहा है।

सरकार ने आधिकारिक तौर पर सन 1904 की जनवरी में यह विचार प्रकाशित किया और फरवरी में लॉर्ड कर्ज़न ने बंगाल के पूर्वी जिलों में विभाजन पर जनता की राय का आंकलन करने के लिए आधिकारिक दौरे किये। उन्होंने प्रमुख हस्तियों के साथ परामर्श किया और ढाका, चटगांव तथा मैमनसिंह में भाषण देकर विभाजन पर सरकार के रुख को समझाने का प्रयास किया। हेनरी जॉन स्टेडमैन कॉटन, जो कि सन 1896 से 1902 के बीच असम के मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर) थे, ने इस विचार का विरोध किया।

बंगाल का विभाजन 

सन 1905 में 16 अक्टूबर को भारत के तत्कालीन वॉयसराय लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया। बंगाल लगभग फ्रांस जितना बड़ा था जबकि उसकी आबादी फ्रांस से कहीं अधिक थी। पूर्व में ऐसा विचार किया गया था कि पूर्वी क्षेत्र उपेक्षित और उचित रूप से शासित नहीं था। प्रान्त के बँटवारे से पूर्वीय क्षेत्र में बेहतर प्रशासन स्थापित किया जा सकता था जिससे अंततः वहाँ की जनता स्कूल और रोजगार के मौकों से लाभान्वित होती। हालाँकि, विभाजन की योजना के पीछे अन्य उद्देश्य भी छिपे थे। बंगाली हिंदू, शासन में अधिक से अधिक भागीदारी के लिए राजनैतिक आंदोलन में अग्रणी थे, अतः अब पूर्व में मुस्लिमों का वर्चस्व बढ़ने से उनकी स्थिति कमजोर हो रही थी।

लेकिन प्रबल सार्वजनिक विरोध के बावजूद 20 जुलाई 1905 को बंग भंग के प्रस्ताव पर भारत सचिव का ठप्पा लग गया। राजशाही, ढाका तथा चटगाँव कमिश्नरियों को असम के साथ मिलाकर एक प्रांत बनाया गया, जिसका नाम पूर्वबंग और असम रखा गया। 

इस अवसर पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों को यह कहकर लड़ाने की चेष्टा की गई कि इस विभाजन से मुसलमानों को फायदा है क्योंकि पूर्वबंग और असम में उन्हीं का बहुमत रहेगा। ढाका के नवाब ने पहले विरोध किया था, पर जब बंग भंग हो गया तो वह उसके पक्ष में हो गए। सर जोजेफ बैमफील्ड फुलर पूर्व बंग और असम के नए लेफ्टिनैंट गवर्नर बने। कहा जाता है, उन्होंने कई जगह खुल्लमखुल्ला कहा कि हिंदू और मुसलमान उनकी दो बीबियाँ हैं, इनमें से मुसलमान उनकी चहेती हैं। इस कथन का आशय स्पष्ट था।

बंग भंग का मुख्य उद्देश्य प्रशासन के लिए सुविधा उत्पन्न करना नहीं था, जैसा कि दावा किया गया था, बल्कि इसके दो स्पष्ट उद्देश्य थे, एक हिंदू मुसलमान को लड़ाना और दूसरे नवजाग्रत बंगाल को चोट पहुंचाना। यदि गहराई से देखा जाए तो यहीं से पाकिस्तान का बीजारोपण हुआ। मुस्लिम लीग के सन 1906 के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पास हुए, उनमें से एक यह भी था कि बंग भंग मुसलमानों के लिए अच्छा है और जो लोग इसके विरुद्ध आंदोलन करते हैं, वे गलत काम करते हैं और वे मुसलमानों को नुकसान पहुंचाते हैं। 

बता दें कि इस नए प्रान्त में पहाड़ी राज्य त्रिपुरा, चिट्टागांग मंडल, ढाका और राजशाही (दार्जिलिंग को छोड़ कर) शामिल हुए और मालदा जिले को असम प्रान्त में मिला दिया गया। बंगाल को न केवल इन बड़े पूर्वी प्रदेशों को छोड़ना पड़ा, बल्कि पाँच हिंदी भाषी राज्यों को भी मध्य प्रांत के लिए गँवाना पड़ा। पश्चिम की तरफ से इसे मध्य प्रान्त से संबलपुर और पाँच छोटे उड़िया-भाषी राज्य प्रदान किये गए। बंगाल के पास अब 141,580 वर्ग मील (366,700 कि॰मी2) क्षेत्रफल और पाँच करोड़ चालीस लाख की जनसंख्या ही बची थी, जिसमें उस समय चार करोड़ बीस लाख हिन्दू और नब्बे लाख मुस्लिम थे।

बंगाल विभाजन का प्रभाव 

बंगाल विभाजन के भारत पर निम्नलखित प्रभाव पड़े जो कि इस प्रकार हैं:-

  • विभाजन के बाद लगातार हो रहे राजनीतिक विरोधों के कारण, बंगाल के दोनों भाग सन 1911 में फिर से जुड़ गए थे। जिसके बाद एक नया बंटवारा हुआ जिसने प्रान्त को धार्मिक के स्थान पर भाषाई आधार पर बाँटा। जिससे हिंदी, उड़िया और असमिया भाषी क्षेत्रों को नयी प्रशासनिक इकाइयों बनाने के लिए अलग किया गया। इसके साथ ही ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक राजधानी को कलकत्ता से नई दिल्ली ले जाया गया।
  • सन 1919 में, मुसलमानों और हिंदुओं के लिए अलग-अलग चुनाव व्यवस्था स्थापित की गयी। इस से पहले, दोनों समुदायों के कई सदस्यों ने सभी बंगालियों के लिए राष्ट्रीय एकता की वकालत की थी। अब, अलग-अलग समुदायों ने अपने-अपने राजनैतिक मुद्दे विकसित कर लिए। 
  • इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं और मुसलमानों के लिए दो स्वतंत्र राज्यों के निर्माण की माँग उठने लगी, अधिकांश बंगाली हिंदू अब हिंदू बहुमत क्षेत्र और मुस्लिम बहुमत क्षेत्र के आधार पर होने वाले बंगाल के बंटवारे का पक्ष लेने लगे। 
  • सन 1947 में बंगाल दूसरी बार, फिर से धार्मिक आधार पर विभाजित हुआ। जो कि बाद में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) बन गया। हालाँकि सन 1971 में पश्चिमी पाकिस्तानी सैन्य शासन के साथ एक सफल मुक्ति युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश नाम का एक स्वतंत्र देश बन गया।
  • इसने एक बड़ा राजनीतिक संकट भी पैदा किया। पूर्वी बंगाल में मुस्लिमों की धारणा थी कि एक अलग क्षेत्र उन्हें शिक्षा, रोजगार आदि के अधिक अवसर उपलब्ध कराएगा, जबकि पश्चिमी बंगाल के लोगों को यह बंटवारा पसंद नहीं आया और इस समय के दौरान बड़ी मात्रा में राष्ट्रवादी साहित्य की रचना की गयी। 

बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन 

बंगाल विभाजन के विरुद्ध बंगाल के बाहर बहुत बड़े आंदोलन हुए। इस आंदोलन में देश के प्रसिद्ध कवियों और साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘वंदे मातरम्’ गीत को नई बुलंदियाँ प्रदान की। उस समय बंगाल को बाँट देने का अंग्रेजी कुचक्र तो टूटा ही, सारे देश में और विदेशों में इसे असाधारण ख्याति मिली। वहीं जर्मन और कनाडा जैसे देश भी इससे प्रभावित हुए। 

बंगाल विभाजन का खात्मा 

सन् 1911 में 12 दिसम्बर को दिल्ली में एक दरबार हुआ, जिसमें सम्राट् पंचम जार्ज, सम्राज्ञी मेरी तथा भारत सचिव लार्ड क्रू आए थे। इस दरबार के अवसर पर एक राजकीय घोषणा-द्वारा पश्चिम और पूर्व बंग के बंगला भाषी इलाकों को एक प्रांत में लाने का आदेश किया गया। इसके साथ ही ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली में स्थापित कर ली।

FAQs 

बंगाल का विभाजन कब और किसने किया था?

भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन की आधिकारिक घोषणा की थी।  

बंगाल विभाजन कब खत्म हुआ?

देश में हो रहे लगातार राजनीतिक विरोध के कारण, 1911 में बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया था।

बंगाल विभाजन क्यों रद्द करना पड़ा?

वर्ष 1905 में कर्ज़न भारत छोड़कर ब्रिटेन चले गए, लेकिन यह आंदोलन कई वर्षों तक चलता रहा। अंतत: वर्ष 1911 में बढ़ते विरोध के कारण लॉर्ड हार्डिंग द्वारा बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा की गई।

बंगाल का विभाजन किसने रद्द किया?

सन 1911 में लॉर्ड हार्डिंग ने बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया क्योंकि विभाजन के विरोध में चारों ओर दंगे और हिंसा फैली हुई थी। 

भारत विभाजन कब और क्यों हुआ?

भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। 

बंगाल विभाजन का कारण क्या था?

बंगाल विभाजन का अन्य उद्देश्य बंगाल की संगठित राजनीतिक भावना को समाप्त करना तथा राष्ट्रीयता के वेग को कम करना था। इतिहासकारों के अनुसार बंगाल विभाजन का प्रमुख उद्देश्य जनता में फूट डालना था। 

आशा है इस ब्लॉग से आपको बंगाल विभाजन और इससे जुड़ी सभी अहम घटनाओं के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहे। 

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