Allama Iqbal Shayari : अल्लामा इक़बाल के चुनिंदा शेर, शायरी और गजल

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अल्लामा इक़बाल उर्दू भाषा के उन लोकप्रिय शायरों में से थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में आशावाद और उत्साह के रंगों का बखूबी चित्रण किया है। अल्लामा इक़बाल एक ऐसे लोकप्रिय शायर थे, जिनकी शायरियों ने युवाओं को आशावाद का मंत्र दिया है, अल्लामा इक़बाल की रचनाएं आज के दौर में भी प्रासंगिक होकर एक अद्भुत ढंग से समाज को प्रेरित करने का काम करती है। अल्लामा इक़बाल के शेर, शायरी और गजलें विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य की खूबसूरती और साहित्य की समझ से परिचित करवाने का काम करती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुछ चुनिंदा Allama Iqbal Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

अल्लामा इक़बाल का जीवन परिचय

अल्लामा इक़बाल को “शायर-ए-मशरिक” (पूर्व के कवि)” के रूप में भी जाना जाता था। 9 नवंबर 1877 को अल्लामा इक़बाल का जन्म सियालकोट में हुआ था। इकबाल की आरंभिक शिक्षा मकतब में हुई, जिसके बाद उन्होंने एफ़.ए स्काच स्कूल स्यालकोट से पास करके B.A. के लिए गर्वनमेंट कॉलेज लाहौर में दाख़िला लिया। वर्ष 1899 ई. में उन्होंने दर्शनशास्त्र में M.A. की डिग्री हासिल की और उसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए। 

वर्ष 1905 ई. में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए कैंब्रिज में दाख़िला लिया। अल्लामा इक़बाल की रचनाओं में इश्क, अकल, मजहब, ज़िंदगी और कला का चित्रण किया है। उर्दू साहित्य की अनमोल मणियों में से एक अल्लामा इक़बाल का निधन 21 अप्रैल 1938 को लाहौर में हुआ था।

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अल्लामा इक़बाल की शायरी – Allama Iqbal Shayari

अल्लामा इक़बाल की शायरी पढ़कर युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है –

“ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले 
 ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है…”
 -अल्लामा इक़बाल

“माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं 
 तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख…”
 -अल्लामा इक़बाल

“तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा 
 तिरे सामने आसमाँ और भी हैं…”
 -अल्लामा इक़बाल

Allama Iqbal Shayari

“दिल से जो बात निकलती है असर रखती है 
 पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है…”
 -अल्लामा इक़बाल

“हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी 
 ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़…”
 -अल्लामा इक़बाल

“सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा 
 हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा…”
-अल्लामा इक़बाल

“तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया 
 यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी…”
-अल्लामा इक़बाल

“वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है 
 तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में…”
-अल्लामा इक़बाल

“अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं 
 इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख…”
-अल्लामा इक़बाल

“जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में 
 बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते…”
-अल्लामा इक़बाल

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मोहब्बत पर अल्लामा इक़बाल की शायरी

मोहब्बत पर अल्लामा इक़बाल की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी – 

“सितारों से आगे जहाँ और भी हैं 
 अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं…”
-अल्लामा इक़बाल

“तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ 
 मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ…”
-अल्लामा इक़बाल

“सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर 
 मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई…”
-अल्लामा इक़बाल

“इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में 
 या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर…”
-अल्लामा इक़बाल

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“अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं 
 ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं…”
-अल्लामा इक़बाल

“न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की 
 नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं…”
-अल्लामा इक़बाल

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अल्लामा इक़बाल के 10 बड़े शेर

अल्लामा इक़बाल के शेर पढ़कर युवाओं को अल्लामा इक़बाल की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। अल्लामा इक़बाल के शेर युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं;

“नशा पिला के गिराना तो सब को आता है 
 मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी…”
-अल्लामा इक़बाल

“फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का 
 न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है…”
-अल्लामा इक़बाल

Allama Iqbal Shayari

“हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है 
 बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा…”
-अल्लामा इक़बाल

“अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी 
 तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन…”
-अल्लामा इक़बाल

“इल्म में भी सुरूर है लेकिन 
 ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं…”
-अल्लामा इक़बाल

“अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल 
 लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे…”
-अल्लामा इक़बाल

“मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने 
 मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका…”
-अल्लामा इक़बाल

“ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी 
 जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही…”
-अल्लामा इक़बाल

“ढूँडता फिरता हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को 
 आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं…”
-अल्लामा इक़बाल

“उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में 
 नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में…”
-अल्लामा इक़बाल

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अल्लामा इक़बाल की दर्द भरी शायरी

अल्लामा इक़बाल की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं –

“दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब 
 क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो…”
-अल्लामा इक़बाल

“जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी 
 उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो…”
-अल्लामा इक़बाल

“भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी 
 बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ…”
-अल्लामा इक़बाल

“बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
 कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर…”
-अल्लामा इक़बाल

“अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है 
 शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात…”
-अल्लामा इक़बाल

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अल्लामा इक़बाल की प्रेरणादायक शायरी

अल्लामा इक़बाल की प्रेरणादायक शायरी पढ़कर आप अल्लामा इक़बाल की लेखनी के बारे में आसानी से जान पाएंगे, साथ ही ये शायरी आपको जीवनभर प्रेरित करने का भी काम करेंगी। Allama Iqbal Shayari कुछ इस प्रकार है-

“नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर 
 तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में…”
-अल्लामा इक़बाल

“ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें 
 जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें…”
-अल्लामा इक़बाल

“तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की 
 नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में…”
-अल्लामा इक़बाल

“बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम 
 सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा…”
-अल्लामा इक़बाल

“नहीं है ना-उमीद ‘इक़बाल’ अपनी किश्त-ए-वीराँ से 
 ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी…”
-अल्लामा इक़बाल

“यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम 
 जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें…”
-अल्लामा इक़बाल

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अल्लामा इक़बाल की गजलें

अल्लामा इक़बाल की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए 
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए 
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के 
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए 
मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमन 
न सैर-ए-गुल के लिए है न आशियाँ के लिए 
रहेगा रावी ओ नील ओ फ़ुरात में कब तक 
तिरा सफ़ीना कि है बहर-ए-बे-कराँ के लिए 
निशान-ए-राह दिखाते थे जो सितारों को 
तरस गए हैं किसी मर्द-ए-राह-दाँ के लिए 
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़ 
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए 
ज़रा सी बात थी अंदेशा-ए-अजम ने उसे 
बढ़ा दिया है फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए 
मिरे गुलू में है इक नग़्मा जिब्राईल-आशोब 
संभाल कर जिसे रक्खा है ला-मकाँ के लिए

-अल्लामा इक़बाल

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ 
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ 
सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी 
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ 
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को 
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ 
ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना 
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ 
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल 
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ 
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी 
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

-अल्लामा इक़बाल

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं 
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ 
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं 
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर 
चमन और भी आशियाँ और भी हैं 
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म 
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं 
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा 
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं 
इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा 
कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं 
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में 
यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं

-अल्लामा इक़बाल

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