Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay: क्या आप जानते हैं कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल को हिंदी साहित्य के इतिहास और आलोचना को व्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए जाना जाता हैं। बता दें कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य माने जाते हैं, जिन्होंने एक समादृत आलोचक, निबंधकार, कहानीकार, कोशकार, साहित्य-इतिहासकार और अनुवादक के रूप में हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान दिया है। वहीं आचार्य रामचंद्र शुक्ल की ख्याति का अक्षय स्रोत उनके द्वारा लिखित ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ है जो हिंदी साहित्य में ‘मील का पत्थर’ मानी जाती है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की कई रचनाएँ जिनमें ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’, ‘मलिक मोहम्मद जायसी’ (ग्रंथावली), ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (कहानी), आदि को बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं, इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay) और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | आचार्य रामचंद्र शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla) |
जन्म | 4 अक्टूबर, 1884 |
जन्म स्थान | बस्ती, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | श्री चंद्रबली शुक्ल |
शिक्षा | इंटरमीडिएट |
पेशा | साहित्यकार, इतिहासकार, संपादक |
भाषा | हिंदी |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
विधाएँ | निबंधकार, साहित्य-इतिहासकार, कोशकार, कहानीकार व अनुवादक। |
ग्रंथावली | हिंदी साहित्य का इतिहास, चिंतामणि (खंड-3), रस मीमांसा और गोस्वामी तुलसीदास। |
संपादन | जायसी ग्रंथावली, सूरदास भ्रमरगीत, हिंदी शब्द सागर आदि। |
निधन | 2 फरवरी, 1941 |
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आचार्य रामचंद्र शुक्ल का प्रारंभिक जीवन
दुनिया को हिंदी साहित्य का व्यवस्थित इतिहास समझाने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म 04 अक्टूबर 1884 को बस्ती के अगौना नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘चंद्रबली शुक्ल’ था जो पेशे से मिर्ज़ापुर में क़ानूनगो थे। वर्ष 1893 में उनका पूरा परिवार मिर्ज़ापुर आ गया और उनके जीवन के प्रारंभिक कुछ वर्ष यहीं पर बीते। किंतु जब वह 9 वर्ष के थे उसी दौरान उनकी माता का देहांत हो गया।
इंटरमीडिएट के बाद किया स्वाध्याय अध्ययन
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आरंभिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में अन्य विषयों के साथ-साथ उर्दू, अंग्रेजी और फ़ारसी में हुई थी। वहीं मिर्ज़ापुर के एंग्लो-संस्कृत जुबली स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया था जहाँ से उन्होंने वर्ष 1901 में फ़ाइनल की परीक्षा पास की। शुक्ल जी की अध्ययन के प्रति लगनशीलता बचपन से ही थी वहीं अध्यापकों के प्रोत्साहन द्वारा उनका अंग्रेजी और उर्दू का ज्ञान काफी पुष्ट हुआ।
बता दें कि मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने ‘एडिसन के ऐस्से ऑन इंमेजिनेशन’ का ‘कल्पना का आंनद’ नाम से हिंदी में अनुवाद किया। इसके बाद शुक्ल जी ने इलाहाबाद की कायस्थ पाठशाला में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। परन्तु व्यक्तिगत कारणों के कारण उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और आगे स्वाध्याय ही बंगला, उर्दू, अंग्रेजी और फ़ारसी भाषा और साहित्य का गंभीर अध्ययन किया।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
वर्ष 1898 में उनका विवाह हो गया जिसके बाद वह जीवनयापन के लिए नौकरी की तलाश करने लगे। उसी दौरान उनकी मुलाकात भारतेंदु युग के प्रख्यात साहित्यकार ‘चौधरी बदरीनारायण प्रेमघन’ से हुई। इससे शुक्ल जी ने भारतेंदु युग के साहित्य के साथ साथ समकालीन साहित्य को भी विस्तृत रूप से जाना। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 1903 से 1908 तक ‘आनंद कादंबिनी’ पत्रिका के संपादन में बदरीनारायण प्रेमघन का सहयोग किया। इस कार्य से शुक्ल जी की भाषा और संपादन के ज्ञान में वृद्धि हुई। वहीं इसी दौरान उनका साहित्य लेखन भी आरंभ हो चुका था।
बता दें कि उनका पहला अंग्रजी में लिखा निबंध ‘What Has India to do’ ‘हिंदुस्तान रिव्यू’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उनका पहला हिंदी संवादात्मक निबंध ‘भारत और वसंत’ ‘आनंद कादंबिनी’ पत्रिका में ही प्रकाशित हुआ। वहीं बाद के वर्षों में ‘कविता क्या है’ निबंध का प्रारंभिक रूप सन 1909 में उस दौर की सबसे बड़ी हिंदी पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुई।
अध्यापक के रूप में भी किया कार्य
क्या आप जानते हैं कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपने शुरूआती कार्यकाल के दौरान वर्ष 1904 से 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्रांइंग के अध्यापक भी रहे थे। जिसके बाद वह मिर्ज़ापुर से वाराणसी चले गए और वहाँ ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ के द्वारा निर्मित होने वाली ‘हिंदी शब्द सागर’ की महत्वकांक्षी परियोजना से जुड़ गए। इसके बाद उनका सारा जीवन काशी में ही बीता।
उस समय इस परियोजना के प्रधान संपादक ‘श्यामसुंदर दास’ थे व उनके साथ इस कार्य में हिंदी जगत के कुछ प्रतिष्ठित रचनाकार भी जुड़े थे जिनमें ‘बाल कृष्णभट्ट’, ‘बाबू जगमोहन वर्मा’ और ‘लाला भगवान दीन’ शामिल थे। किंतु इस परियोजना में विशेष योगदान शुक्ल जी का रहा और वह इस कार्य के अंत तक बने रहे। वर्ष 1927 में इस परियोजना का कार्य पूरा हुआ और इस कोश की लंबी भूमिका शुक्ल जी ने ही लिखी। यही भूमिका कालांतर में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ के नाम से प्रकाशित हुई और हिंदी साहित्य की अनुपम कृतियों में एक बन गई।
बता दें कि कोश के सहायक संपादन के साथ साथ वह वर्ष 1919 के दौरान ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ में प्रध्यापक का कार्य भी कर रहे थे। उस समय उनका वेतन तकरीबन 60 रूपये महीना था वहीं एक बड़े परिवार को चलाने के लिए उन्हें अधिक परिश्रम करना पड़ता था। वर्ष 1936 में बाबू श्यामसुंदर दास के सेवानिवृत होने के बाद शुक्ल जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए व वर्ष 1941 तक इस पद पर रहे।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की साहित्यिक रचनाएँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay) जी ने आधुनिक हिंदी साहित्य की कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिनमे मुख्य रूप से निबंध, कहानी, आलोचना व इतिहास लेखन शामिल हैं। यहाँ शुक्ल जी की संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
ग्रंथावली
- हिंदी साहित्य का इतिहास – वर्ष 1929
- गोस्वामी तुलसीदास – वर्ष 1933
- रस मीमांसा
- चिंतामणि (खंड-3)
- जायसी ग्रंथवाली
- भ्रमरगीत सार
- मलिक मोहम्मद जायसी
- भाषा, साहित्य और समाज विमर्श
- साहित्य शास्त्र: सिद्धांत और व्यव्हार पक्ष
- विश्वप्रपंच
कहानी
- ग्यारह वर्षों का समय – यह कहानी हिंदी की आरंभिक कहानियों में से एक मानी जाती है।
संपादन
- हिंदी शब्द सागर
- नागरी प्रचारिणी पत्रिका
- अखरावट
- आखिरी कलाम
- पद्मावत
पुरस्कार एवं सम्मान
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay) को आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए व चिंतामणि ग्रंथावली पर प्रतिष्ठित ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया गया था।
निधन
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने अपने संपूर्ण जीवन में साहित्य का सृजन किया और हिंदी जगत को अनेक अनुपम रचनाएँ दी। किंतु वृदावस्था में प्रवेश व कार्य के दौरान अपने स्वास्थय की उचित देखभाल न करने के कारण उनका काशी में 2 फरवरी 1941 को ह्रदय गति रूक जाने से निधन हो गया। किंतु शुक्ल जी की रचनाओं और हिंदी के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उन्हें हिंदी साहित्य जगत में हमेशा याद किया जाता रहेगा।
पढ़िए हिंदी साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ विख्यात साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay) के साथ ही हिंदी साहित्य के अन्य साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही है। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
FAQs
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म 04 अक्टूबर 1884 को बस्ती के अगौना नामक गांव में हुआ था।
शुक्ल जी के पिता का नाम श्री चंद्रबली शुक्ल था जो पेशे से मिर्ज़ापुर में क़ानूनगो थे।
बता दें कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ‘आधुनिक काल’ के रचनाकार माने जाते है।
यह आचार्य रामचंद्र शुक्ल की अनुपम कृतियों में से एक है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का ह्रदय गति रुक जाने के कारण 2 फरवरी 1941 को निधन हो गया था।
आशा है कि आपको आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।