रिपोर्ट के अनुसार भारतीय स्टूडेंट्स की विकसित राज्यों में रुकने की संख्या सबसे अधिक

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भारतीय स्टूडेंट्स की विकसित राज्यों में रुकने की संख्या सबसे अधिक

चीन और भारत के छात्रों की संख्या फॉरेन कंट्रीज़ में सबसे ज़्यादा पाई गई है। रिपोर्ट द्वारा यह पता चला है कि दुनिया के 20 से 29 साल के युवाओं की जनसंख्या का तीसरा हिस्सा इन्हीं दो देशों में मौजूद हैं। 

एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय स्टूडेंट्स की फॉरेन कंट्रीज़ में पढ़ाई के बाद वहीँ रुकने की और वहां की वर्कफोर्स जॉइन करने की संख्या सबसे ज़्यादा पाई गई है। यह रिपोर्ट इंटरनेशनल माइग्रेशन पैटर्न्स पर यानी ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकॉनिमिक (OECD) को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट द्वारा दी गई। 

10 अक्टूबर 2022 को यह रिपोर्ट ‘इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2022’ के नाम से रिलीज़ की गई थी। इस रिपोर्ट में इंटरनेशनल माइग्रेशन फ्लौस के ट्रेंड्स का ओवरव्यू और उसकी 2021 तक आई पॉलिसीस को दर्शाया गया है। इस ओवरव्यू में राज्यों के ओरिजन और स्टूडेंट्स के OECD कंट्रीज़ में अकादमिक डिग्री के लिए अप्लाई करने की डेस्टिनेशन को स्पॉटलाइट की तरह इस्तमाल किया गया है। OECD डेवलप्ड एकॉनॉमीज़ एक संगठन हैं। 

चीन (22%) और भारत (10%) से आए स्टूडेंट्स की संख्या फॉरेन स्टूडेंट्स की संख्या में सबसे अधिक पाई गई है। रिपोर्ट में इस फैक्ट को दर्शाया गया है कि दुनिया के 20 से 29 साल की उम्र के व्यक्तियों की जनसंख्या में से उस जनसंख्या का तीसरा हिस्सा इन दो कंट्रीज़ से ही पाया गया है। रिपोर्ट अनुसार भारतीय स्टूडेंट्स अपने परमिट्स को एक्सटेंड करने को बढ़ावा देने वाले लोगों में सबसे आगे पाए गए हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार,चीन और भारत के स्टूडेंट्स इंटरनेशनल स्टूडेंट्स में पाए जाने लार्जेस्ट ग्रुप्स में से पाए गए हैं, लेकिन उसमें भी भारतीयों स्टूडेंट्स के स्टे रेट की संख्या सबसे अधिक देखने को मिली है। वहीँ अपनी पढ़ाई के बाद चीन के स्टूडेंट्स का बरताव काफी डायवर्स भी पाया गया है। 

अगर 2015 के एजुकेशन परमिट्स पर गौर किया जाए तो आप पाएंगे कि लगभग सभी कंट्रीज़ में जिसमें कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, UK और जापान शामिल हैं, भारतियों के रुकने के रेट्स चीन के स्टूडेंट्स से ज़्यादा देखे गए हैं। यह संख्या का आंकलन स्टूडेंट वीज़ा को वर्क परमिट्स में ट्रांज़िशन मॉनिटर करने से भी पता लगाया गया है। इस आंकलन में उस ट्रांजीशन की तेज़ी पर भी ध्यान दिया गया है। 

उदाहरण के तौर पर जर्मनी 2020 में कुल स्टडी परमिट्स पाने वाले चीन के स्टूडेंट्स की संख्या जो 2015 में आए थे, वह सिर्फ 23% पाई गई है। वहीँ भारतियों की संख्या 10% पाई गई थी। इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि ज़्यादा तर भारतीय पहले ही वर्क परमिट ले चुके थे। कनाडा के आंकड़ों पर ध्यान दें तो यह बात और स्पष्ट हो जाती है। 2015 में कनाडा में आए स्टूडेंट्स में से भारत के स्टूडेंट्स को 2020 में मिले वर्क परमिट की संख्या 71% थी जबकि चीन से आए स्टूडेंट्स की संख्या 18% देखी गई। 

रिपोर्ट के अनुसार चीन से आए स्टूडेंट्स की तुलना में मास्टर्स और पीएचडी लेवल पर एनरोल करने वाले स्टूडेंट्स में भारतीय स्टूडेंट्स की संख्या ज़्यादा पाई गई है। 

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