हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।
उत्तर: इस पद में गोपियों की चतुरता, वाक्पटुता (वाग्विदग्धता), तर्कशीलता और व्यवहार-कुशलता की विशेषता प्रकट होती है। वे कृष्ण के भेजे हुए सन्देशवाहक ऊधव से कहती हैं कि कृष्ण अब राजनीति पढ़कर आए हैं, अर्थात वे अब प्रेम की सीधी-सादी भावना छोड़कर चालाकी और तर्क की बातें करने लगे हैं।
गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि कृष्ण पहले से ही चतुर थे, अब तो वे गुरु बनकर ग्रंथ पढ़ाने लगे हैं। उन्हें जब से योग और ज्ञान का बोध हुआ है, तब से वे प्रेम की रीति को अनीति मानने लगे हैं और गोपियों को भी वैराग्य का संदेश भेज रहे हैं।
गोपियाँ यह नहीं मानतीं कि अपने प्रेम को छोड़ना कोई उच्च आदर्श है। वे उलटे तर्क देती हैं कि जो दूसरों को अनीति से रोकते हैं, वे स्वयं क्यों अनीति करें? वे कृष्ण को यह याद दिलाती हैं कि राजधर्म वही है जिसमें प्रजा को दुःख न हो — और यहाँ प्रजा अर्थात वे स्वयं, पीड़ा में हैं।
इस प्रकार, इस पद के माध्यम से गोपियाँ अपने प्रेम की गहराई, आत्मसम्मान, चातुर्य और गूढ़ व्यंग्यात्मक भाषा कौशल का परिचय देती हैं।
अन्य प्रश्न
- गोपियाँ किस आशा पर विरह के कष्ट को सहन कर रही थीं?
- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
- उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
- गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलहाने दिए हैं?
- ‘नाहीं परत कही’ में गोपियाँ अपनी व्यथा क्यों नहीं कह पा रही हैं?
- गोपियों को उद्धव द्वारा दिया गया योग संदेश कैसा लगता है और क्यों?
- ‘यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
- ‘हरि हैं राजनीति पढ़ि आए’ इस पद में गोपियाँ कृष्ण के किस रूप का वर्णन कर रही हैं?
- गोपियों के अनुसार अनीति क्या है?
60,000+ students trusted us with their dreams. Take the first step today!

One app for all your study abroad needs
