उत्तर- प्रस्तुत पदों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कृष्ण-प्रेम में डूबी गोपियाँ योग-साधना को नीरस, व्यर्थ और अनावश्यक मानती हैं। उनका यह मानना है कि योग-साधना के माध्यम से कृष्ण अर्थात् ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। वे योग-साधना को एक कड़वी ककड़ी की तरह बताती हैं, जिसे अनुभव करते ही उनकी विरह की अग्नि और भी भड़क उठती है।
गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण ने योग-संदेश भेजकर उनकी समझदारी का परिचय दिया है, क्योंकि वे जानती हैं कि उनके प्रेम को योग की साधना से नहीं बल्कि सीधे कृष्ण के प्रेम से ही संतुष्टि मिल सकती है। इतना ही नहीं, वे कृष्ण पर आरोप लगाते हुए योग साधना के क्रम में कहती हैं कि “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए”। उनका आशय है कि योग साधना के पीछे राजनीति और दिखावा है, जो उनके प्रेम की सच्चाई से मेल नहीं खाता।
इस प्रकार, गोपियों का दृष्टिकोण यह है कि योग-साधना बाहरी और कागजी प्रक्रिया मात्र है, जो उनके अंतरतम प्रेम की अनुभूति में बाधक है। उनका प्रेम भाव इतना गहरा और पवित्र है कि वे केवल कृष्ण की भक्ति में ही पूर्णता पाती हैं।
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