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उत्तर: लक्ष्मण परशुराम के क्रोधी स्वभाव से पूरी तरह परिचित थे। उन्होंने परशुराम को कहा कि आपके स्वभाव से तो सारा संसार परिचित है। आपने पिता की आज्ञा मानकर अपनी माता का वध किया, जिससे आप माता-पिता के ऋण से मुक्त हो गए, पर अब गुरु-ऋण से दुःखी हैं। परशुराम की वीरता का बखान सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि वीर योद्धा युद्धभूमि में शत्रु का नाश करता है, पर अपनी ही प्रशंसा नहीं करता। उन्होंने परशुराम की गर्वपूर्ण बातों का उपहास करते हुए कहा कि हम कोई छुई-मुई फूल नहीं हैं, जो आपकी अँगुली दिखाने मात्र से डर जाएँ। इस प्रकार, लक्ष्मण ने निर्भीकता और निडरता के साथ परशुराम पर व्यंग्यपूर्ण वचनों की बौछार की।
इस पाठ के अन्य प्रश्न
- ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ पाठ में क्या संदेश दिया गया है?
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- ‘होइहि कोउ एक दास तुम्हारा’ राम के इस कथन में किस जीवन-सत्य का बोध होता है?
- परशुराम ने राम की विनयपूर्ण बातों का क्या जवाब दिया और क्यों?
- फरसे को दिखाते हुए परशुराम ने लक्ष्मण से आवेगपूर्ण वाणी में क्या कहा था?
- ‘अहो मुनीसु महाभट मानी’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
- पाठ ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के आधार पर परशुराम की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
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