‘बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥’ का भाव स्पष्ट कीजिए।

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बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥' का भाव स्पष्ट कीजिए।
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उत्तर: उपरोक्त चौपाई में लक्ष्मण परशुराम के प्रति व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि वे स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा (महाभट) मान बैठे हैं। लक्ष्मण हँसते हुए मृदु वाणी में कटाक्ष करते हैं कि आप बार-बार मुझे फरसा (कुठार) दिखाकर डराने का प्रयास कर रहे हैं। यह प्रयास ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई व्यक्ति फूँक मारकर पहाड़ को उड़ाने की कोशिश कर रहा हो। अर्थात् यह केवल दिखावा और वाचालता भर है, जिससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

इस चौपाई में लक्ष्मण की व्यंग्यात्मक शैली, साहस और परशुराम की आक्रामकता पर उनकी तीखी प्रतिक्रिया को दर्शाया गया है। साथ ही, यह भी स्पष्ट होता है कि लक्ष्मण अहंकारी नहीं, बल्कि निडर और तर्कशील हैं।

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