भारतीय संविधान में हर नागरिक के अधिकारों के लिए समान स्थान दिया गया है, कानूनी प्रक्रिया के लिए भी समाज में न्याय का राज स्थापित करना आवश्यक होता है। इस एग्जाम अपडेट्स में आप उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
यदि किसी व्यक्ति पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपराध साबित हो जाता है और न्याय स्वरुप उस व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है तो इस सज़ा से बचने के लिये उस व्यक्ति के पास दो विकल्प होते हैं;
- दया याचिका
- पुनर्विचार याचिका
दया याचिका (संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत) दोषी को एक अवसर देती है जहाँ वह, राष्ट्रपति से अपनी सजा कम करने या माफ़ करने की विनती कर सकता है। जबकि पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में ही दायर की जाती है, जिसमें दोषी को दी गयी सजा पर पुनर्विचार किया जाता है।
उपरोक्त याचिकाओं के खारिज हो जाने के बाद भी दोषी के पास एक अंतिम विकल्प “क्यूरेटिव पिटीशन” का बचता है। कानून का हर संभव प्रयास होता है कि किसी बेगुनाह के साथ कोई अन्याय न हो पाए।
उपचारात्मक याचिका किसे कहते हैं?
आसान शब्दों में समझा जाए तो उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) एक ऐसी याचिका है जो किसी दोषी के मामले में अदालत द्वारा पुनर्विचार याचिका ख़ारिज होने के बाद भी अदालत से अपने लिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील करती है। न्यायिक प्रक्रिया में यह किसी भी दोषी को सजा से बचाने या सजा को काम करने के लिए यह अंतिम विकल्प होती है।
उपचारात्मक याचिका के उद्देश्य क्या हैं?
उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) के मुख्य उद्देश्य क्रमशः किसी भी बेगुनाह का न्याय के कुप्रबंधन से बचना और न्याय प्रक्रिया के दुरपयोग से बचना हो आदि।
उपचारात्मक याचिका से जुड़े कुछ मुख्य बिंदु
उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) से जुड़े कुछ मुख्य बिंदु होते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
- भारत के मुख्य न्यायाधीश और समीक्षा याचिका खारिज करने वाले न्यायाधीशों सहित शीर्ष तीन न्यायाधीशों द्वारा क्यूरेटिव पिटीशन की सुनवाई की जाती है।
- इस याचिका को लगाने के लिए याचिकाकर्ता को यह दिखाना पड़ता है कि जो अदालत का फैसला है, उसमें याचिकाकर्ता का पक्ष नहीं सुना गया।
- अनुच्छेद 137 के तहत भारतीय संविधान में इस याचिका का कॉन्सेप्ट है।
- अनुच्छेद 145 के तहत भारतीय संविधान कानून और नियम बनाने को नियंत्रित करता है। इसका अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय के पास उसके द्वारा दिए गए प्रत्येक निर्णय की समीक्षा करने का अधिकार है।
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