प्रमुख सुर्खियां
हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया (SBI) ने 7.72% की दर पर बेसल अनुपालन एडिशनल टियर 1 (AT 1) बॉन्ड से 4000 करोड़ रूपए जुटाए हैं।
सेबी के नियमों के बाद भारतीय मार्केट में पहला AT 1 बॉन्ड है।
क्या होते हैं बॉन्ड?
बॉन्ड कंपनियों द्वारा जारी कॉरपरेट लोन की इकाइयां होती हैं, जिनसे प्रतिभूतियों के रूप में व्यापार किया जा सकता है।
बॉन्ड एक निश्चित आय वाले वित्तीय को एक निश्चित आय वाले वित्तीय उपकरण के रूप में जोड़कर देखा जाता है।
बांड की कीमतों का ब्याज दरों के साथ विपरीत सम्बन्ध होता है। जब दरें बढ़ती हैं, बॉन्ड का घटता है। जब दरें घटती हैं तो बॉन्ड का मूल्य बढ़ता है।
बॉन्ड की एक निर्धारित अवधि होती है, इस अवधि के बाद बॉन्ड मैच्योर हो जाते हैं। इस पर मूल राशि का भुगतान या जोखिम डिफ़ॉल्ट रूप से किया जाना होता है।
AT 1 बॉन्ड के बारे में महत्वूर्ण बातें
- A1 बॉन्ड जिसे परपेचुअल बॉन्ड भी कहा जाता है ,जिनकी कोई मैच्योरिटी डेट नहीं होती।
- इनमें कॉल ऑप्शन होता है। ऐसे बॉन्ड जारीकर्ता को कॉल कर सकते हैं।
- ये बैंक द्वारा जारी किए जाने वाले किसी दूसरे बॉन्ड की तरह ही होते हैं, लेकिन इसमें ब्याज दरें अधिक होती हैं।
- ये बॉन्ड भी सूचीबद्ध होते हैं और इन्हें भी एक्सचेंज पर खरीदा या बेचा जा सकता है।
- इन्वेस्टर्स इन बॉन्ड्स को जारी करने वाले बैंक को वापस नहीं कर सकता है।
- AT 1 बॉन्ड जारी करने वाले बैंक किसी विशेष वर्ष के लिए ब्याज भुगतान को रोक भी सकते हैं या बॉन्ड की फेस वेल्यू को भी घटा सकते हैं।
बॉन्ड प्राप्त करने के तरीके
बॉन्ड्स को इन दो तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है :
- बैंकों के AT 1 बॉन्ड के प्रारम्भिक निजी प्लेसमेंट द्वारा
- सेकंडरी मार्केट में पहले से व्यापार में लगे AT 1 बॉन्ड्स की खरीददारी होती है।
विनमय प्रणाली
AT 1 बॉन्ड्स आरबीआई के द्वारा विनियमित होते हैं। अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि किसी बैंक को मदद चाहिए तो वह बैंक को अपने निवेशकों से परामर्श किए बिना अपने बकाया AT 1 बबॉन्ड को बट्टे खाती में देने के लिए निर्देशित कर सकता है।
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