सावित्री बाई फुले महाराष्ट्र की एक समाज सुधारक और शिक्षिका थीं। फुले ने और उनके पति ज्योतिराव फुले ने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1848 में उन्होंने पुणे में सबसे पुराने आधुनिक लड़कियों के स्कूलों में से एक की स्थापना की थी। इसके अलावा भी उन्होंने महिला शिक्षा के क्षेत्र में कई महान कार्य किए, जिनके बारे में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के अलावा अन्य परीक्षाओं में पूछा जाता है। इसलिए आज के ब्लाॅग में हम सावित्रीबाई फुले का शिक्षा में योगदान क्या है जानेंगे।
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सावित्रीबाई फुले के बारे में
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज की महिला उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली एक महान सामाजिक कार्यकर्ता थी। वह महिला शिक्षा के प्रति अपनी अद्भुत प्रेरणा के लिए प्रसिद्ध हैं। सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर विधवा, दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के शिक्षा के लिए संघटन की। उनका संघर्ष उन्हें ‘महात्मा जोतिबा फुले’ के नाम से संबोधित करता है। उनकी महानता और समर्पण को सलाम करते हुए, उनके योगदान ने समाज में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। सावित्रीबाई फुले का योगदान आज भी हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
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सावित्रीबाई फुले का शिक्षा में योगदान
सावित्रीबाई फुले का शिक्षा में योगदान यहां बताया गया है:
- 19वीं सदी में सार्वजनिक शिक्षा असामान्य थी, केवल कुछ ही मिशनरी प्रतिष्ठान थे जो सभी के लिए खुले थे।
- 17 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे के भिडे वाडा में एक महिला विद्यालय की स्थापना की। यह देश का पहला महिला स्कूल था जिसकी स्थापना भारतीयों ने की थी।
- जब उन्होंने पुणे के महारवाड़ा में लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया तो कई लोगों ने उनका विरोध किया।
- जब सावित्रीबाई फुले ने अपना शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा कर लिया था, तब रूढ़िवादी समूह के उनपर आरोप थे की महिलाएँ पढ़ा नहीं सकतीं।
- जिसके बाद सावित्रीबाई फुले 1848 में भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं।
- ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर सावित्रीबाई ने 1851 के अंत तक पुणे में लगभग 150 महिला छात्रों के साथ तीन स्कूल स्थापित किए।
- उनके पढ़ाने के तरीकों को सरकारी स्कूलों से बेहतर माना जाता था और फुले के स्कूलों में नामांकित लड़कियों की संख्या अन्य आधिकारिक स्कूलों में नामांकित लड़कों की संख्या से अधिक थी।
- सावित्री बाई को 1849 में अपना पारिवारिक घर छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके परिवार ने उनका विरोध किया था।
- उस समय महिलाओं की शिक्षा को बुरा माना जाता था, इसलिए उनके कार्यों को उनके परिवारों द्वारा असामाजिक माना जाता था।
- एक मित्र के परिवार, उस्मान शेख के साथ रहने के दौरान सावित्रीबाई की मुलाकात फातिमा बेगम शेख से हुई। फातिमा शेख और सावित्रीबाई दोनों ने पुणे के नॉर्मल स्कूल में पढ़ाई की और एक साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। फातिमा शेख भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका बनीं।
- ज्योतिबा और सावित्री बाई फुले ने 1850 के दशक में दो शैक्षिक ट्रस्टों की स्थापना की।
- ये थे नेटिव फीमेल स्कूल – पुणे और महार के मांग और वगैरह की शिक्षा को बढ़ावा देने वाली सोसायटी, दोनों में पुणे के कई स्कूल शामिल हो गए।
FAQs
उनका लक्ष्य स्त्रियों और अंततः समाज का विकास करना था।
भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले थीं।
लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल पुणे के भिडे वाडा में महात्मा जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले द्वारा शुरू किया गया था।
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में हुआ था।
सावित्रीबाई फुले के पति का नाम महात्मा ज्योतिबा फुले था।
बता दें कि सावित्रीबाई फुले ने 3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विद्यालय की स्थापना की थी?
सावित्रीबाई फुले का प्लेग की बीमारी के कारण 10 मार्च 1897 को निधन हो गया था।
1 जनवरी 1848 को लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला गया।
आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको सावित्रीबाई फुले का शिक्षा में योगदान पता चल गया होगा। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।