ऐसी है राणा सांगा की वीरता की कहानी

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Modern History in Hindi

वीर राणा सांगा भारत देश का गौरव थे। इनके खौफ का असर यहाँ तक था कि कोई भी विश्व में इनसे युद्ध करना नहीं चाहता था। मुग़ल बादशाह बाबर भी उनके सामने कांपता था। देश के महान वीर योद्धाओं में से एक थे राणा सांगा। तो आइए, जानते हैं Rana Sanga History in Hindi के बारे में विस्तार से।

शुरूआती जीवन

Rana Sanga History in Hindi
Source – Dharmayudh

Rana Sanga History in Hindi में वीर राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़ में हुआ था। इनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था। इनके पिता का नाम राणा रायमल था। बचपन से ही राणा सांगा और उनके दोनों बड़े भाई एक साथ रहे, शिक्षा ली। इनके 3 बड़े भाई और थे।

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निजी जीवन

Rana Sanga History in Hindi
Source – India the Destiny

राणा सांगा की पत्नी का नाम रानी कर्णावती था. उनके 4 पुत्र थे जिनके नाम रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोज राज और विक्रमादित्य सिंह थे। Rana Sanga History in Hindi में ऐसा भी माना जाता है कि राणा सांगा की कुल मिलाकर 22 पत्नियाँ थी।

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अपनों से ही उत्तराधिकार के लिए संघर्ष

Rana Sanga History in Hindi
Source – India Today

एक बार कुवंर पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह ने अपनी-अपनी जन्म पत्रियां एक ज्योतिषी को दिखाई। उन्हें देखकर उसने कहा कि गृह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं, लेकिन राजयोग संग्राम सिंह के पक्ष में होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा। यह सुनते ही दोनों भाई संग्राम सिंह पर टूट पड़े। पृथ्वीराज ने हूल मारी जिससे संग्राम सिंह की एक आंख फूट गई थी। Rana Sanga History in Hindi में राणा सांगा ने आँख फूटने के बाद भी भाइयों से युद्ध किया था।

इस समय तो सारंगदेव (रायमल के चाचा) ने बीच-बचाव कर किसी तरह उन्हें शांत किया। सारंगदेव ने उन्हें समझाया कि ज्योतिषी के कहने पर विश्वास कर तुम्हें आपस में संघर्ष नहीं करना चाहिए। इस समय सांगा अपने भाइयों के डर से श्रीनगर(अजमेर) के क्रमचंद पंवार के पास अज्ञात वास बिता रहे थे। रायमल ने उसे बुलाकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 

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मेवाड़ के शासक

Rana Sanga History in Hindi
Source – Notes Dekho

राणा सांगा अपने पिता महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ के शासक बने। मेवाड़ के महाराणा में वे सबसे अधिक प्रतापी योद्धा थे, इनके शासक रहते किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई आसानी से आक्रमण कर कब्ज़ा जमाले। Rana Sanga History in Hindi में राणा सांगा बहुत ही प्रतापी शासक और योद्धा थे।

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गुजरात के सुल्तान के साथ संघर्ष

Rana Sanga History in Hindi
Source – Notes on Indian History

सांगा के समय गुजरात और मेवाड़ के बीच संघर्ष का तत्कालीक कारण इडर का प्रश्न था। ईडर के राव भाण के 2 पुत्र सूर्यमल और भीम थे। राव भाण की मृत्यु के बाद सूर्यमल गद्दी पर बैठा किंतु उसकी भी 18 माह के बाद मृत्यु हो गई थी। अब सूर्यमल के स्थान पर उसका बेटा रायमल ईडर की गद्दी पर बैठा। रायमल की अल्पआयु होने का लाभ उठाकर उसके चाचा भीम ने गद्दी पर अपना अधिकार कर लिया था। रायमल ने मेवाड़ में शरण ली जहां महाराणा सांगा ने अपनी पुत्री की सगाई उसके साथ कर दी थी। Rana Sanga History in Hindi में जानते हैं उनके आगे के सफ़र के बारे में।

ईडर पर अधिकार

1516 में रायमल ने महाराणा सांगा की सहायता से भीम के पुत्र भारमल को हटाकर ईडर पर पुन: अधिकार कर लिया था। भारमल को हराकर रायमल का ईडर का शासक बनाए जाने से गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर बहुत गुस्सा हुआ था। क्योंकि भीम ने उसी की आज्ञानुसार ईडर पर अधिकार किया था। नाराज सुल्तान मुजफ्फर ने अहमदनगर में जागीरदार निजामुद्दीन को आदेश दिया कि वह रायमल को हराकर भारमल को पुनः इडर की गद्दी पर बैठा दे।

निजामुल्मुल्क द्वारा इडर पर घेरा डालने पर रायमल पहाड़ों में चला गए और पीछा करने पर निजामुल्मुल्क को हराया। इडर के आगे रायमल का अनाश्यक पीछा किया जाने से नाराज सुल्तान ने निजामुल्मुल्क को वापस बुला लिया था। इसके बाद सुल्तान द्वारा मुवारिजुल्मुल्क को इडर का हकीम नियुक्त किया गया। एक भाट के सामने एक दिन मुवारिजुल्मुल्क ने सांगा की तुलना एक कुत्ते से कर दी थी। यह जानकारी मिलने पर महाराणा सांगा वान्गड़ के राजा उदय सिंह के साथ ईडर जा पहुंचे। पर्याप्त सैनिक न होने के कारण मुवारिजुल्मुल्क ईडर छोड़कर अहमदनगर भाग गया।

अन्य स्थानों पर अधिकार

सांगा ने इडर की गद्दी पर रायमल को बैठा दिया और एवं अहमदनगर, बड़नगर, विसलनगर आदि स्थानों को लूटता हुआ चित्तौड़ लौट आया था। महाराणा सांगा के आक्रमण से हुई बर्बादी का बदला लेने के लिए सुल्तान मुजफ्फर ने 1520 में मलिक अयाज तथा किवामुल्मुल्क की अध्यक्षता में दो अलग-अलग सेनाएं मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। मालवा का सुल्तान महमूद भी इस सेना के साथ आ मिला था किंतु मुस्लिम अफसरों में अनबन के कारण मलिक अयाज आगे नहीं बढ़ सका था और संधि कर उसे वापस लौटना पड़ा था।

दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष

महाराणा सांगा ने सिकंदर लोदी के समय ही दिल्ली के अधीनस्थ इलाकों पर अधिकार करना शुरू कर दिया था। किंतु अपने राज्य की निर्बलता के कारण वह महाराणा सांगा के साथ संघर्ष के लिए तैयार नहीं हो सका। सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी ने 1517 में मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। खातोली(कोटा) नामक स्थान पर दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई।

इस युद्ध में तलवार से सांगा का बायाँ हाथ कट गया था और घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़े हो गए थे। खातोली की पराजय का बदला लेने के लिए 1518 में इब्राहिम लोदी ने मियां माखन की अध्यक्षता में महाराणा सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी।

मालवा के साथ संबंध

मेदिनीराय नामक एक हिंदू सामंत ने मालवा के अपदस्थ सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पुनः शासक बनाने में सफलता प्राप्त की थी। इस कारण सुल्तान महमूद ने उसे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। सुल्तान के मुस्लिम अमीरों को भी मेदिनीराय की बढ़ती हुई शक्ति से काफी ईर्ष्या थी और उन्होंने सुल्तान को उसके विरुद्ध बहलाने में सफलता प्राप्त कर ली थी मेदिनी राय महाराणा सांगा की शरण में मेवाड़ आ गया, जहां उसे गागरोन व चंदेरी की जागीरें दे दी गई।

सन 1519 में सुल्तान महमूद मेदिनीराय पर आक्रमण के लिए रवाना हुआ था। इस बात की खबर लगते ही सांगा भी एक बड़ी सेना के साथ गागरोन पहुंच गए। यहां हुई लड़ाई में सुल्तान की बुरी तरह से पराजय हुई। सुल्तान का पुत्र आसफखाँ इस युद्ध में मारा गया तथा वह स्वयं घायल हुआ। महाराणा सांगा सुल्तान को अपने साथ चित्तौड़ ले गए, जहां सांगा ने उसे 3 माह कैद में रखा था।

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बाबर के साथ तनाव

Rana Sanga History in Hindi
Source – Quora

खानवा युद्ध शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, महमूद लोदी और अनेक राजपूत अपनी-अपनी सेना ले साथ हो गए। वह हौसले के साथ एक विशाल सेना के साथ बयाना और आगरा पर अधिकार करने के लिए बढ़े। बाबर से बयाना के शासक ने सहायता मांगी। बाबर ने ख्वाजा मेंहदी को भेजा पर राणा सांगा ने उसे शिकस्त देकर बयाना पर अधिकार कर लिया। सीकरी के पास भी मुग़ल सेना को करारी हार मिली। लगातार मिल रही हार से मुग़ल सैनिक में डर चूका था।

अपनी सेना का मनोबल गिरते देखकर बाबर ने बड़ी चतुराई मुसलामानों पर से तमगा (एक प्रकार का सीमा टैक्स) भी उठा लिया और अपनी सेना को कई तरह के लालच दिए, जिससे उसकी सेना में थोड़ी हिम्मत आई। उसने अपने-अपने सैनिकों से निष्ठापूर्वक युद्ध करने और प्रतिष्ठा की सुरक्षा करने का हुकुम दिया। इससे उसकी सैनकों में युद्ध करने को तैयार हो गई।

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खानवा का युद्ध

Rana Sanga History in Hindi
Source – Sunsigns

खानवा का युद्ध मार्च 1527 में राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच हुआ था। खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी मुठभेड़ हुई। बाबर 2 लाख मुग़ल सैनिक थे, और ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी सेना थी। राणा सांगा की सेना के पास वीरता का भंडार था और वे बिलकुल घमासानी से लड़े पर बाबर के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था। युद्ध में बाबर ने सांगा की सेना के लोदी सेनापति को लालच दिया तो, वो सांगा को धोखा देकर सेना सहित बाबर से जा मिला। लड़ते हुए राणा सांगा की एक आँख में तीर भी लगा था, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और युद्ध में डटे रहे। इस युद्ध में उन्हें कुल 80 घाव आए थे। उनकी लड़ाई में दिखी वीरता से बाबर के होश उड़ गए थे। ऐसा कहा जाता है सांगा का सर धड़ से अलग होते हुए भी उनका धड़ लड़ता रहा था. Rana Sanga History in Hindi में यह लड़ाई पूरे दिन चली थी।

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युद्ध के परिणाम

Rana Sanga History in Hindi
Source – Udaipurblog

बाबर की सेना यह युद्ध जीत गई थी. वह भले ही यह युद्ध जीती हो लेकिन सांगा की सेना ने उन्हें धुल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लोदी के गद्दारी करने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी, राणा सांगा को उनकी सेना युद्ध खत्म होने से पहले किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई थी। Rana Sanga History in Hindi में इस युद्ध से बाबर को पूरे भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित करने में मदद मिली थी और वह पहला मुग़ल सम्राट भी बना था।

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देहांत

Rana Sanga History in Hindi
Source – Wikipedia

युद्ध में सांगा बेहोश हो गए थे जहाँ उनकी सेना उन्हें किसी सुरक्षित जगह ले गई थी। वहां होश में आने के बाद उन्होंने बाबर को हराने और दिल्ली पर विजय प्राप्त करने तक चित्तौड़ नहीं लौटने की शपथ ली। जब सांगा बाबर के खिलाफ एक और युद्ध छेड़ने की तैयारी में थे, तो उन्हें अपने ही साथियों ने जहर दे दिया था, जो कि बाबर के साथ एक और लड़ाई नहीं चाहते थे। जनवरी 1528 में कालपी में उनकी मृत्यु हो गई। उनके देहांत के बाद अगला उत्तराधिकारी उनका पुत्र रतन सिंह द्वितीय हुआ था।

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