नन्द वंश का नाम भारत के सबसे प्रतिष्ठित राजवंशों में गिना जाता है। नन्द वंश के इतिहास से सम्बंधित प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इस दृष्टि से नन्द वंश का इतिहास बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बन जाता है। चौथी शताब्दी में नन्द वंश का शासन भारत के एक बहुत बड़े भू भाग पर हुआ करता था। इस वंश की स्थापना “सम्राट महापद्मानंद” द्वारा की गई थी। यहाँ नन्द वंश के इतिहास को विस्तार से बताया गया है।
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नन्द वंश के संस्थापक और अंतिम शासक
नन्द वंश की स्थापना चक्रवती “सम्राट महापद्मानंद” के द्वारा की गई थी। उनका साम्राज्य कलिंग (वर्तमान ओडिशा) से शुरू होकर गंगा की सीमाओं के पार तक फैला हुआ था। नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद को “केंद्रीय शासन पद्धति” का जनक भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने काशी, कौशल, शूरसेन, वज्जि, मल्ल, अवनीत, चेदी, वत्स, अंक, मगध, कुरु पांचाल, गंधार, कंबोज, अश्मक एवं कलिंग जैसी विशाल जनपदों को जीतकर एक सुदृढ़ केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी थी।
सम्राट महापद्मानंद के प्रताप के कारण ही उन्हें इतिहासकारों द्वारा “सर्वक्षत्रांतक” और “एकराट” की उपाधि दी गई है। नन्द वंश का अंतिम शासक घनान्द था। यह बहुत ही धनी और शक्तिशाली शासक था। इन्हीं के शासनकाल में विश्व विजेता “सिकंदर” ने भारत पर आक्रमण किया था। आपको बता दें कि नन्द वंश का शासन 344 ईसा पूर्व से लेकर 322 ईसा पूर्व तक का रहा था।
नन्द वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
नन्द वंश मगध पर शासन करने वाला पाँचवा राजवंश था। नंदवंश की नींव 344 ईसा पूर्व में “महापद्मानंद” द्वारा रखी गई थी। महापद्मानंद का संबंध नाई जाति से था। इतिहासकारों ने इन्हें कई उपाधियाँ प्रदान की हैं जिनमे से “एकारट” और “सर्वक्षत्रांतक” प्रमुख हैं।
महापद्मानंद के उत्तराधिकरियों के बारे में बात करें तो इनमें उग्रसेन, पंडूक, पांडुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविशाणक, दशसिद्धक, कैवर्त एवं धनानंद का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। धनानंद का उल्लेख इतिहास में कई जगह किया गया है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि धनानंद को हराकर ही “चन्द्रगुप्त मौर्य” द्वारा मगध साम्राज्य की स्थापना की गई थी।
नन्द वंश का शासनकाल
नन्द वंश के शासनकाल को लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद देखने को मिलता है। इतिहासकारों ने इतिहास में नन्द वंश की शासन अवधि को लेकर अलग-अलग जानकारियां दी हैं। कुछ इतिहासकारों द्वारा नन्द वंश के शासनकाल की अवधि 88 साल बताई गई है। वहीं कुछ इतिहासकारों द्वारा नन्द वंश के शासनकाल को केवल 40 वर्षों तक ही बताया गया है। कुछ इतिहासकार तो नन्द वंश के शासन का समय केवल 22 वर्षों का ही मानते हैं। वहीं कुछ इतिहासकार नन्द वंश का शासनकाल 364 ईसा पूर्व से 324 ईसा पूर्व तक भी मानते हैं।
नन्द वंश के मुख्य शासक
नन्द वंश के मुख्य शासकों के नाम इस प्रकार हैं:-
- उग्रसेन
- पंडूक
- पाण्डुगति
- भूतपाल
- राष्ट्रपाल
- योविषाणक
- दशसिद्धक
- कैवर्त
- धनानन्द
FAQs
नन्द वंश के कुल 9 राजा हुए हैं।
नन्द वंश का अंतिम राजा धनानन्द था।
नंद वंश का अंत तब हुआ जब चंद्रगुप्त मौर्य ने, अपने गुरु चाणक्य के समर्थन से नंद वंश के अंतिम शासक, धनानंद को पराजित कर दिया।
सम्राट महापद्मानंद नंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक भी कहा जाता है, इनका संबंध नाई जाति से था।
नन्द वंश के पश्चात मौर्य वंश का शासन स्थापित हुआ।
आशा है इस ब्लॉग से आपको नन्द वंश का इतिहास और इससे जुड़ी अहम घटनाओं के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। प्राचीन भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।
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Dada mahapadm nand is great
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