Krishan Chander: मशहूर अफ़साना निगार कृष्ण चंदर का जीवन परिचय

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Krishan Chander

कृष्ण चंदर (Krishan Chander) उर्दू और हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार थे, जिन्होंने साहित्य में कहानी विधा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। वहीं अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से प्रगतिशील साहित्य का नेतृत्व किया और उसे विश्व साहित्य से जोड़ने का काम किया। बता दें कि उन्होंने कहानियों और उपन्यासों के अतिरिक्त रिपोर्ताज़, रेखाचित्र, निबंध, नाटक, स्क्रीनप्ले और टिप्पणियां भी लिखे, जिन पर उनकी अमिट छाप मौजूद है। 

क्या आप जानते हैं कि कृष्ण चंदर,मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर और ‘शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय’ जैसे विख्यात साहित्यकारों के बाद पहले ऐसे लेखक थे, जिनकी रचनाओं का विदेशी भाषाओं में सबसे ज्यादा अनुवाद हुआ है। इसके साथ ही कृष्ण चंदर की रचनाओं को स्कूल और कॉलेज सिलेबस में भी शामिल किया गया है। उनकी लोकप्रिय कहानी ‘जामुन का पेड़ को स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं में अकसर पूछा जाता हैं। वहीं कृष्ण चंदर को साहित्य में अनुपम रचनाओं के लिए कई पुरस्कारों व सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका हैं, इनमें ‘पद्मभूषण’ और ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ भी शामिल है।

आइए अब रेख़्ता के मशहूर अफसाना निगार कृष्ण चंदर का जीवन परिचय (Krishna Chandra Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।

नाम कृष्ण चंदर (Krishan Chander)
जन्म 23 नवंबर 1914 
जन्म स्थान भरतपुर, राजस्थान
पिता का नाम श्री गौरी शंकर चोपड़ा 
पत्नी का नाम सलमा सिद्दीक़ी 
शिक्षा एम.ए, एल.एलबी.
पेशा लेखक 
भाषा उर्दू, हिंदी 
विधा कहानी, उपन्यास 
मुख्य रचनाएँ एक गधे की आत्मकथा, सपनों का कैदी, काग़ज़ की नाव, एक वाइलिन समुंद्र के किनारे आदि। 
प्रसिद्धिकथाकार 
सम्मान पद्मभूषण (1969), साहित्य अकादमी पुरस्कार व सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार। 
निधन 08 मार्च 1977, मुंबई, महाराष्ट्र

कृष्ण चंदर का प्रारंभिक जीवन – Krishna Chandra Ka Jivan Parichay

उर्दू का हिंदी के प्रसिद्ध अफ़साना निगार कृष्ण चंदर (Krishan Chander) का जन्म 23 नवंबर 1914 को राजस्थान के शहर भरतपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘गौरी शंकर चोपड़ा’ था, जो एक मेडिकल ऑफिसर थे। कृष्ण चंदर का बचपन पुंछ में बीता जहाँ उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा की शुरुआत की। उर्दू से उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई की जिसके बाद आठवीं कक्षा में ऐच्छिक विषय फ़ारसी ले लिया। लेकिन फ़ारसी भाषा न समझ आने के कारण उनके अध्यापक ‘बुलाकी राम नंदा’ उनकी बहुत पिटाई करते थे।

कृष्ण चंदर को स्कूली शिक्षा के दौरन ही साहित्य से विशेष लगाव हो गया था। जिसके बाद उन्होंने एक लेख के माध्यम से अध्यापक द्वारा पिटाई का वर्णन ‘मिस्टर ब्लैकी’ लेख में किया जो बाद में अख़बार ‘रियासत’ में प्रकाशित भी हुआ। फिर उन्होंने ‘विक्टोरिया हाई स्कूल’ से मैट्रिक की परीक्षा सेकंड डिवीज़न से पास की।

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साहित्यिक जीवन की शुरुआत 

इसके बाद कृष्ण चंदर ने लाहौर के ‘फ़ारमन क्रिस्चियन कॉलेज’ में दाखिला ले लिया। ये वो दौर था जब भारतीय अवाम ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हर जगह आंदोलन कर रही थी। इसी दौरन कृष्ण चंदर की मुलाकात भगत सिंहऔर उनके साथियों से हुई और उन्होंने भी क्रांतिकारी सरगर्मीयों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। वहीं एम.ए की परीक्षा में फेल होने के कारण उन्होंने संजीदगी से शिक्षा जारी रखी और अंग्रेज़ी में एम.ए। उनके माता पिता चाहते थे कि वह वकालत करे जिसके कारण उन्होंने एल.एलबी. की डिग्री हासिल की। लेकिन उनका मन वकालत करने का नहीं था बल्कि उनकी रूचि साहित्य में थी जिसे उन्होंने अपना पेशा बना लिया और जीवन के अंतिम तक साहित्य की साधना में लगे रहे। 

कृष्ण चंदर का वैवाहिक जीवन 

कृष्ण चंदर का प्रथम विवाह ‘विद्यावती’ से हुआ था, लेकिन उनका वैवाहिक जीवन असामान्य रहा इस कारण वह दोनों हमेशा के लिए एक दूसरे से अलग हो गए। इसके बाद उनका दूसरा विवाह ‘सलमा सिद्दीक़ी’ से हुआ जो जीवनभर उनकी साथी बनकर रहीं। 

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प्रगतिशील आंदोलन से जुड़ाव 

कृष्ण चंदर ने शुरुआत में विभिन्न पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया और धीरे धीरे उनकी ख्याति साहित्य मंडलियों में बढ़ने लगी। वहीं उनका जुड़ाव प्रगतिशील आंदोलन से भी था, जो विभिन्न पत्रिकाओं के माध्यम से भारतीय जनमानस में स्वराज की अलख जगाने का काम कर रहे थे। कृष्ण चंदर ने वर्ष 1938 में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मलेन में हिस्सा लिया था। यहीं उनका परिचय उर्दू के प्रसिद्ध लेखक और मार्क्सवादी चिंतक ‘सज्जाद ज़हीर’ और ‘प्रोफेसर अहमद अली’ व अन्य लोगों से हुआ। 

ऑल इंडिया रेडियो में की नौकरी 

इसके बाद वर्ष 1939 में कृष्ण चंदर लाहौर में ‘ऑल इंडिया रेडियो’ में प्रोग्राम अस्सिटेंट के पद पर कार्य करने लगे। यहीं उनकी मुलाकात उर्दू के प्रसिद्ध अफसाना निगार ‘सआदत हसन मंटो’ से भी हुई। कुछ वर्ष ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी करने के बाद उन्होंने इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया और फिल्म कंपनी में संवाद लिखने का कार्य करने लगे। 

यहाँ भी कुछ वर्ष गुजर जाने के बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया और ‘बंबई टॉकीज़’ नौकरी की। इसके बाद उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर डायरेक्टर काम किया लेकिन उनकी किसी भी फिल्म को सफलता नहीं मिल पायी। इसके बाद उन्होंने कभी न नौकरी करने का निर्णय लिया और अपना संपूर्ण जीवन साहित्य के सृजन में लगा दिया। 

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कृष्ण चंदर का साहित्यिक सफर 

बता दें कि कृष्ण चंदर ने अपने साहित्यिक जीवन में कई लोकप्रिय कहानियां लिखी जिनमें ‘जामुन का पेड़, ‘महालक्ष्मी का पुल’ और ‘आईने के सामने’ लिखी जिसे पाठक वर्ग ने बहुत सराहा। वहीं उनका पहला उपन्यास ‘शिकस्त’ वर्ष 1943 में प्रकाशित हुआ। आइए अब हम उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं-

उपन्यास 

  • एक गधे की आत्मकथा
  • तूफ़ान की कलियां
  • एक वायलिन समुंद्र के किनारे
  • आसमान रोशन है
  • एक गधे की वापसी
  • रेत का महल
  • चांदी का घाव
  • कार्निवल 
  • एक गधा नेफ़ा में
  • प्यासी धरती प्यासे लोग
  • गद्दार 
  • सपनों का कैदी 
  • प्यास 
  • यादों के चिनार 
  • मिट्टी के सनम 
  • कागज की नाव 
  • चाँदी का घाव दिल 
  • दौलत और दुनिया 
  • पराजय 
  • एक करोड़ की बोतल
  • बावन पत्ते
  • लंदन के सात रंग

कहानी संग्रह 

  • पूरे चांद की रात
  • पेशावर एक्सप्रेस 
  • सफ़ेद फूल
  • नज़्ज़ारे
  • नग़मे की मौत
  • अजंता से आगे
  • ख़्याल
  • ज़िंदगी के मोड़ पर
  • टूटे हुए तारे
  • अन्नदाता
  • तीन गुंडे
  • समुंद्र  दूर है
  • हम वहशी हैं
  • मैं इंतजार करूंगा
  • जामुन का पेड़

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पुरस्कार और सम्मान 

अफसाना निगार कृष्ण चंदर को (Krishna Chandra Ka Jivan Parichay) उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं :- 

  • वर्ष 1966 में कृश्न चंदर को ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। 
  • वर्ष 1969 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया। 
  • भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में 31 मई, 2017 को दस रुपये का डाक टिकट जारी किया था। 
Image Source – Wikipedia

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मुंबई में हुआ निधन 

कृष्ण चंदर ने अपने संपूर्ण जीवन में कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया। वहीं जीवन के इस दौर में उन्हें कई बाद दिल के दौरे पड़े, जिससे वह बच न सके और 5 मार्च 1977 को दिल का दौरा पड़ने से उन्होंने सदा के लिए अपनी आंखें मूंद ली। लेकिन साहित्य संसार में वह अपनी रचनाओं के माध्यम से सदा के लिए अमर हो गए और उन्हें उनकी कृतियों के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। 

FAQs 

कृष्ण चंदर का जन्म कहाँ हुआ था?

कृष्ण चंदर का जन्म 23 नवंबर 1914 को राजस्थान के शहर भरतपुर में हुआ था। 

कृष्ण चंदर के पिता का नाम क्या था?

कृष्ण चंदर के पिता का नाम ‘गौरी शंकर चोपड़ा’ था, जो एक मेडिकल ऑफिसर थे।

कृष्ण चंदर का पहला उपन्यास का नाम क्या है?

उनका पहला उपन्यास वर्ष 1943 में ‘शिकस्त’ नाम से प्रकाशित हुआ था। 

कृष्ण चंदर की लोकप्रिय कहानियों का नाम क्या है?

जामुन का पेड़, महालक्ष्मी का पुल, पेशावर एक्सप्रेस उनकी प्रसिद्ध कहानियां हैं। 

कृष्ण चंदर का निधन कब हुआ था?

5 मार्च 1977 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। 

सड़क वापस जाती है रचना के रचयिता कौन थे?

सड़क वापस जाती है, कृश्न चंदर का लोकप्रिय उपन्यास है। 

आशा है कि आपको रेख़्ता के मशहूर अफसाना निगार कृष्ण चंदर का जीवन परिचय (Krishna Chandra Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचयको पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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