केदारनाथ सिंह की कविताएं: प्रकृति, प्रेम और जीवन का अनूठा संगम

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केदारनाथ सिंह की कविताएं

Kedarnath Singh Poems: हर सदी-हर युग, हर भाषा-हर प्रांत में कविताओं का एक अलग महत्व रहा है। कविताओं ने ही समय-समय पर समाज की चेतना जगाकर मानवता का कल्याण किया है, इसी कड़ी में भारत में भी कई ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने भारतीय जनमानस की चेतना जगाकर देश की उन्नति में अपना अहम योगदान दिया है। भारतीय कवियों में एक ऐसे ही कवि केदारनाथ सिंह भी हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी का लोहा मनवाया और हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

केदारनाथ सिंह के प्रमुख काव्य-संग्रह हैं, ‘अभी बिलकुल अभी’, ‘ज़मीन पक रही है’, ‘यहाँ से देखो’ ‘तालस्ताय और साइकिल’ और ‘अकाल में सारस’। इस ब्लॉग में आप केदारनाथ सिंह की कविताएं (Kedarnath Singh Poems) पढ़ पाएंगे, जो आपको प्रकृति, प्रेम और जीवन के अनूठे संगम से परिचित करवाएंगे।

केदारनाथ सिंह की कविताएं – Kedarnath Singh Poems

केदारनाथ सिंह की कविताएं (Kedarnath Singh Poems) समाज का दर्पण कहलाती हैं, जिसने सदैव समाज का सच से सामना करवाया है, वे कुछ इस प्रकार हैं:-

  • एक नये दिन के साथ
  • अंधेरे पाख का चांद
  • रात पिया पिछवारे
  • एक मुकुट की तरह
  • जनहित का काम
  • निराला को याद करते हुए
  • मेरी भाषा के लोग
  • यह अग्निकिरीटी मस्तक
  • जे.एन.यू. में हिंदी
  • घड़ी
  • घास
  • काली मिट्टी
  • एक पारिवारिक प्रश्न
  • गर्मी में सूखते हुए कपड़े
  • कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने बेटे को दिए
  • चट्टान को तोड़ो वह सुन्दर हो जायेगी
  • खोल दूं यह आज का दिन
  • छोटे शहर की एक दोपहर
  • जब वर्षा शुरू होती है
  • जाड़ों के शुरू में आलू
  • दाने
  • दिशा
  • दीपदान
  • दुपहरिया
  • नए कवि का दुख
  • पानी में घिरे हुए लोग
  • झरने लगे नीम के पत्ते बढ़ने लगी उदासी मन की
  • तलस्तोय और साइकिल
  • तुम आयीं
  • जाना
  • जूते
  • नदी
  • पूँजी
  • बंगाली बाबू
  • मार्च की सुबह
  • बढ़ई और चिड़िया
  • पत्नी की अट्ठाइसवीं पुण्यतिथि पर
  • प्रो० वरयाम सिंह
  • मंच और मचान
  • बनारस
  • प्रक्रिया
  • फसल
  • बसन्त
  • मुक्ति
  • बसंत
  • बादल ओ!
  • बुनाई का गीत
  • यह पृथ्वी रहेगी
  • मेरी भाषा के लोग
  • रक्त में खिला हुआ कमल
  • सन् ४७ को याद करते हुए
  • शाम बेच दी है
  • शहर में रात
  • शहरबदल
  • विद्रोह
  • शारद प्रात
  • सार्त्र की क़ब्र पर
  • सुई और तागे के बीच में
  • सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए
  • सृष्टि पर पहरा
  • हक दो
  • हाथ इत्यादि।

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केदारनाथ सिंह की चुनिंदा कविताएं 

यहाँ केदारनाथ सिंह की चुनिंदा कविताएं (Kedarnath Singh Poems) दी गई हैं:-

एक नये दिन के साथ

नये दिन के साथ
एक पन्ना खुल गया कोरा
हमारे प्यार का

सुबह,
इस पर कहीं अपना नाम तो लिख दो!

बहुत से मनहूस पन्नों में
इसे भी कहीँ रख दूंगा
और जब-जब हवा आकर
उड़ा जायेगी अचानक बन्द पन्नों को
कहीं भीतर
मोरपंखी का तरह रक्खे हुए उस नाम को
हर बार पढ़ लूंगा।
– केदारनाथ सिंह

अंधेरे पाख का चांद

जैसे जेल में लालटेन
चाँद उसी तरह
एक पेड़ की नंगी डाल से झूलता हुआ
और हम
यानी पृथ्वी के सारे के सारे क़ैदी खुश
कि चलो कुछ तो है
जिसमें हम देख सकते हैं
एक-दूसरे का चेहरा!
– केदारनाथ सिंह

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रात पिया पिछवारे

रात पिया, पिछवारे
पहरू ठनका किया।

कँप-कँप कर जला दिया
बुझ -बुझ कर यह जिया
मेरा अंग-अंग जैसे
पछुए ने छू दिया

बड़ी रात गए कहीं
पण्डुक पिहका किया।
आँखड़ियाँ पगली की
नींद हुई चोर की
पलकों तक आ-आकर
बाढ़ रुकी लोर की

रह-रहकर खिड़की का
पल्ला उढ़का किया।

पथराए तारों की जोत
डबडबा गई
मन की अनकही सभी
आँखों में छा गई

सुना क्या न तुमने,
यह दिल जो धड़का किया।
– केदारनाथ सिंह

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एक मुकुट की तरह

पृथ्वी के ललाट पर
एक मुकुट की तरह
उड़े जा रहे थे पक्षी

मैंने दूर से देखा
और मैं वहीं से चिल्लाया
बधाई हो
पृथ्वी, बधाई हो!
– केदारनाथ सिंह

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जनहित का काम

वह एक अद्भुत दृश्य था

मेह बरसकर खुल चुका था
खेत जुतने को तैयार थे
एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था
और एक चिड़िया बार-बार बार-बार
उसे अपनी चोंच से
उठाने की कोशिश कर रही थी
मैंने देखा और मैं लौट आया
क्योंकि मुझे लगा मेरा वहाँ होना
जनहित के उस काम में
दखल देना होगा।
केदारनाथ सिंह

निराला को याद करते हुए

उठता हाहाकार जिधर है
उसी तरफ अपना भी घर है

खुश हूँ – आती है रह-रहकर
जीने की सुगंध बह-बहकर

उसी ओर कुछ झुका-झुका-सा
सोच रहा हूँ रुका-रुका-सा

गोली दगे न हाथापाई
अपनी है यह अजब लड़ाई

रोज उसी दर्जी के घर तक
एक प्रश्न से सौ उत्तर तक

रोज कहीं टाँके पड़ते हैं
रोज उधड़ जाती है सीवन

‘दुखता रहता है अब जीवन’
– केदारनाथ सिंह

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मेरी भाषा के लोग

मेरी भाषा के लोग
मेरी सड़क के लोग हैं
सड़क के लोग सारी दुनिया के लोग

पिछली रात मैंने एक सपना देखा
कि दुनिया के सारे लोग
एक बस में बैठे हैं
और हिन्दी बोल रहे हैं
फिर वह पीली-सी बस
हवा में गायब हो गई
और मेरे पास बच गई सिर्फ़ मेरी हिन्दी
जो अन्तिम सिक्के की तरह

हमेशा बच जाती है मेरे पास
हर मुश्किल में

कहती वह कुछ नहीं
पर बिना कहे भी जानती है मेरी जीभ
कि उसकी खाल पर चोटों के
कितने निशान हैं
कि आती नहीं नींद उसकी कई संज्ञाओं को
दुखते हैं अक्सर कई विशेषण
पर इन सबके बीच
असंख्य होठों पर
एक छोटी-सी खुशी से थरथराती रहती है यह!

तुम झाँक आओ सारे सरकारी कार्यालय
पूछ लो मेज़ से
दीवारों से पूछ लो
छान डालो फ़ाइलों के ऊँचे-ऊँचे
मनहूस पहाड़
कहीं मिलेगा ही नहीं
इसका एक भी अक्षर
और यह नहीं जानती इसके लिए
अगर ईश्वर को नहीं
तो फिर किसे धन्यवाद दे!

मेरा अनुरोध है
भरे चौराहे पर करबद्ध अनुरोध
कि राज नहीं-भाषा
भाषा-भाषा-सिर्फ़ भाषा रहने दो
मेरी भाषा को।

इसमें भरा है
पास-पड़ोस और दूर-दराज़ की
इतनी आवाजों का बूँद-बूँद अर्क
कि मैं जब भी इसे बोलता हूँ
तो कहीं गहरे
अरबी तुर्की बांग्ला तेलुगु
यहाँ तक कि एक पत्ती के
हिलने की आवाज़ भी
सब बोलता हूँ ज़रा-ज़रा
जब बोलता हूँ हिंदी

पर जब भी बोलता हूं
यह लगता है
पूरे व्याकरण में
एक कारक की बेचैनी हूँ
एक तद्भव का दुख
तत्सम के पड़ोस में।
– केदारनाथ सिंह

यह अग्निकिरीटी मस्तक

सब चेहरों पर सन्नाटा
हर दिल में पड़ता काँटा
हर घर में गीला आँटा
वह क्यों होता है?

जीने की जो कोशिश है
जीने में यह जो विष है
साँसों में भरी कशिश है
इसका क्या करिए?

कुछ लोग खेत बोते हैं
कुछ चट्टानें ढोते हैं
कुछ लोग सिर्फ़ होते हैं
इसका क्या मतलब?

मेरा पथराया कन्धा
जो है सदियों से अन्धा
जो खोज चुका हर धन्धा
क्यों चुप रहता है?

यह अग्निकिरीटी मस्तक
जो है मेरे कन्धों पर
यह ज़िन्दा भारी पत्थर
इसका क्या होगा?
– केदारनाथ सिंह

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FAQs 

केदारनाथ सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में चकिया नामक गांव में हुआ था।

केदारनाथ सिंह की माता का क्या नाम था?

केदारनाथ सिंह की माता का नाम ‘लालझरी देवी’ था। 

केदारनाथ सिंह को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?

केदारनाथ सिंह को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान’, ‘कुमारन आशान’, ‘व्यास सम्मान’ और ‘दयावती मोदी पुरस्कार’ आदि से सम्मानित किया जा चुका हैं। 

जमीन पक रही है किसकी कविता है?

जमीन पक रही है, केदारनाथ सिंह का लोकप्रिय काव्य-संग्रह है। 

आशा है कि आपको इस ब्लॉग में केदारनाथ सिंह की कुछ चुनिंदा कविताएं (Kedarnath Singh Poems) पसंद आई होंगी। ऐसे ही अन्य लोकप्रिय कवियों की कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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