यूरोपीय शक्तियों का भारत में आगमन : जानिए भारत को कैसे गुलाम बनाया और लूटा इन विदेशी ताकतों ने 

1 minute read
यूरोपीय शक्तियों का भारत में आगमन

भारत प्राचीनकाल में सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था। इसलिए भारत पर विश्व की अनेक शक्तियों ने आक्रमण किया। भारत को गुलाम बनाकर यहाँ की धन सम्पदा को लूट लेने की इच्छा पश्चिम के लोगों में शुरू से ही थी। भारत पर अंग्रेज, पुर्तगाली एवं डच आदि लोगों ने आक्रमण किया और कई वर्षों तक शासन किया। भारत के समुद्री रास्तों की खोज 15वीं सदी के अन्त में हुई जिसके बाद यूरोपीयों का भारत आना आरंभ हुआ। यद्यपि यूरोपीय लोग भारत के अलावा भी बहुत स्थानों पर अपने उपनिवेश बनाने में सफल हुए पर इनमें से कइयों का मुख्य आकर्षण भारत ही था। सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक यूरोपीय कई एशियाई स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे और अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में वे कई जगहों पर अधिकार भी कर लिए थे। किन्तु उन्नीसवीं सदी में जाकर ही अंग्रेजों का भारत पर एकाधिकार हो पाया था। यहाँ यूरोपीय शक्तियों का भारत में आगमन के बारे में पूरी जानकारी दी जा रही है।  

पुर्तगालों का आगमन 

यूरोपीय शक्तियों का भारत में आगमन में हम सबसे पहले बात करेंगे पुर्तगालियों की 17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को डी गामा भारत के समुद्री तट पर आने वाला पहला यूरोपीय नाविक था। उसी ने यूरोप में भारत की खोज की। उसकी मदद एक गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की थी। वर्ष 1500 में पुर्तगालियों ने कोचीन (केरल) को रहने के लिए अपना ठिकाना बनाया। 1510 तक पुर्तगालियों ने गोवा को अपना व्यापारिक केंद्र बना लिया था।  

पुर्तगाली इसके बाद व्यापारी से ज्यादा साम्राज्यवादी नज़र आने लगे। वे पूरब के तट पर अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहते थे। अल्बूकर्क के मरने के बाद पुर्तगाली और क्षेत्रों पर अधिकार करते गए। सन् 1571 में बीजापुर, अहमदनगर और कालीकट के शासकों ने मिलकर पुर्तगालियों को निकालने प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हुए। 1579 में वे मद्रास के निकच थोमें, बंगाल में हुगली और चटगाँव में अधिकार करने में सफल रहे। 1580 में मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पुर्तगालियों ने पहला ईसाई मिशन भेजा। वे अकबर को ईसाई धर्म में दीक्षित करना चाहते थे पर कई बार अपने नुमाइन्दों को भेजने के बाद भी वो सफल नहीं रहे। हालाँकि पुर्तगाली भारत के विशाल क्षेत्रों पर अधिकार नहीं कर पाए थे। उधर स्पेन के साथ पुर्तगाल का युद्ध और पुर्तगालियों द्वारा ईसाई धर्म के अन्धाधुन्ध और कट्टर प्रचार के कारण वे स्थानीय शासकों के शत्रु बन गए और 1612 में कुछ मुगल जहाज को लूटने के बाद उन्हें भारतीय प्रदेशों से हाथ धोना पड़ा।

डचों का आगमन 

पुर्तगालियों की समृद्धि देख कर डच भी भारत और श्रीलंका की ओर आकर्षित हुए। सर्वप्रथम 1598 में डचों का पहला जहाज अफ्रीका और जावा के रास्ते भारत पहुँचा। 1602 में प्रथम डच ईस्ट कम्पनी की स्थापना की गई जो भारत से व्यापार करने के लिए बनाई गई थी। इस समय तक अंग्रेज और फ्रांसिसी लोग भी भारत में पहुँच चुके थे। पुर्तगाली भारत में मसालों का व्यापार करने आए थे। लेकिन डच लोगों ने भारत में मसालों का व्यापार करने के बजाय कपड़ों का व्यापार करना पसंद किया। 1602 में डचों ने अम्बोयना पर पुर्तगालियों को हरा कर अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने मुसलीपट्टम, पुलीकट, सूरत बिमिलीपट्टम, करिकल, चिनसुरा, कासिम बाजार, बड़ानगर, पटना, उड़ीसा और कोचीन आदि इलाकों पर भी अपना अधिकार कर लिया।  

अंग्रेजों का आगमन 

इंग्लैण्ड के नाविकों को भारत का पता 1578 ई. तक नहीं हुआ था। 1578 में सर फ्रांसिस ड्रेक नामक एक अंग्रेज़ नाविक ने लिस्बन जाने वाले एक जहाज को लूट लिया। इस जहाज से उसे भारत तक पहुंचने वाले रास्ते का मानचित्र मिला। इसके बाद अंग्रेजों को भारत आगमन के रस्ते का ज्ञान हुआ। 1600 ईस्वी में अंग्रेजों ने भारत में प्रवेश किया। उनका उद्देश्य भी प्रारम्भ में भारत में व्यापार करके खूब धन कमाना ही था। उन्होंने अपना पहला व्यापारिक केंद्र गुजरात के सूरत शहर में खोला था। अंग्रेज भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से व्यापार करने आये थे। इस कंपनी को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ का आर्थिक और सैन्य समर्थन मिला हुआ था। इसी दम पर इन्होने मुग़ल, राजपूत और मराठा राजाओं को हराकर लगभग सम्पूर्ण भारत पर कब्ज़ा कर लिया और लगभग 200 सालों तक भारत पर शासन किया।  

फ्राँसिसयों का आगमन 

फ्रांसीसियों ने भारत में सबसे आखिर में प्रवेश किया। इनके आने से पहले पुर्तगाली, डच और अंग्रेज भारत को काफी लूट चुके थे। सन् 1611 में भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से एक फ्रांसीसी क्म्पनी की स्थापना की गई थी। फ्रांस के सम्राट लुई 14वे के मंत्री कोलबर्ट की मदद से 1644 ईस्वी में भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना की। इस कम्पनी को फ्रांस की सरकार की तरफ से आर्थिक मदद प्राप्त की थी। फ्रांसिसियों ने 1668 में सूरत, 1669 में मछली पट्टणम् थथा 1674 में पाण्डिचेरी में अपनी कोठियाँ खोल लीं। आरंभ में फ्रांसिसयों को भी डचों से उलझना पड़ा पर बाद में उन्हें सफलता मिली और कई जगहों पर वे प्रतिष्ठित हो गए। 

FAQs 

भारत में आने वाला पहला यूरोपीय व्यापारी कौन था?

17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को-डी-गामा भारत के तट पर आया जिसके बाद भारत आने का रास्ता तय हुआ। वास्को डी गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की।

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन कब हुआ?

20 मई, 1498 ई. में वास्कोडिगामा ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बन्दरगाह पहुंचकर भारत एवं यूरोप के बीच नए समुद्री मार्ग की खोज की।  

यूरोपियों का भारत में प्रवेश किस कारण हुआ?

यूरोपीय लोग प्रारंभ में व्यापार के लिए भारत आये थे। यूरोपीय व्यापारिक कंपनी नई ज़मीनों की तलाश में थी जहाँ से वह सस्ते दाम पर माल खरीद सके और वापस यूरोप ले जाकर ऊँची कीमत पर बेच सके। भारत में उत्पादित उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले कपास और रेशम का यूरोप में एक बड़ा बाज़ार था।

आशा है इस ब्लॉग से आपको यूरोपीय शक्तियों का भारत में आगमन इस विषय  के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*