Daagh Dehlvi Shayari : दाग देहलवी के चुनिंदा शेर, शायरी और गजल

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Daagh Dehlvi Shayari

दाग देहलवी उर्दू भाषा के उन लोकप्रिय शायरों में से थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में उस समय के सामाजिक मुद्दे, राजनीति और दर्शन पर अपनी बेबाक राय रखी थी। दाग देहलवी ने अपनी रचनाओं में प्रेम, दर्द, हसरत, और जिंदगी के विभिन्न पहलुओं का बखूबी चित्रण किया था। दाग देहलवी एक ऐसे लोकप्रिय शायर थे, जिनकी हर शायरी आज भी युवाओं को खुद से ज्यादा जोड़कर रखती है, दाग़ देहलवी की रचनाएं आज के समय में प्रासंगिक होकर बड़ी बेबाकी से समाज को उर्दू साहित्य को पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। दाग़ देहलवी के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य की खूबसूरती से परिचित करवाती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुछ चुनिंदा Daagh Dehlvi Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।दाग़ देहलवी के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य की खूबसूरती से परिचित करवाती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुछ चुनिंदा Daagh Dehlvi Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

दाग़ देहलवी का जीवन परिचय

दाग़ देहलवी का मूल नाम “नवाब मिर्ज़ा ख़ान” था। 25 मई 1831 को दाग़ देहलवी का जन्म दिल्ली में हुआ था। दाग देहलवी ने फारसी और उर्दू भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी। अपनी ग़ज़ल में नए विषयों और शैली का प्रयोग करके दाग़ देहलवी ने उर्दू गजल के नए दौर की अगुवाई करी थी। दाग़ देहलवी उर्दू साहित्य के एक ऐसे महत्वपूर्ण स्तंभ थे, जिन्होंने उर्दू साहित्य के लिए अपना अहम योगदान दिया था। 17 मार्च 1905 को दाग़ देहलवी का निधन तेलंगाना के हैदराबाद में हुआ था।

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दाग़ देहलवी की शायरी – Daagh Dehlvi Shayari

दाग़ देहलवी की शायरी पढ़कर युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है –

“आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले 
 आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले…”
 -दाग़ देहलवी

“हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे 
 तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना…”
 -दाग़ देहलवी

“इस नहीं का कोई इलाज नहीं 
 रोज़ कहते हैं आप आज नहीं…”
 -दाग़ देहलवी

“आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद 
 बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता…”
 -दाग़ देहलवी

“शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को 
 ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का…”
 -दाग़ देहलवी

“ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं 
 साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं…”
-दाग़ देहलवी

“आप का ए’तिबार कौन करे 
 रोज़ का इंतिज़ार कौन करे…”
-दाग़ देहलवी

“कल तक तो आश्ना थे मगर आज ग़ैर हो 
 दो दिन में ये मिज़ाज है आगे की ख़ैर हो…”
-दाग़ देहलवी

Daagh Dehlvi Shayari

“दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात 
 हाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया…”
-दाग़ देहलवी

“बात तक करनी न आती थी तुम्हें 
 ये हमारे सामने की बात है…”
-दाग़ देहलवी

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मोहब्बत पर दाग़ देहलवी की शायरी

मोहब्बत पर दाग़ देहलवी की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी – 

“तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता 
 वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता…”
-दाग़ देहलवी

“हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के ‘दाग़’ 
 जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं…”
-दाग़ देहलवी

“मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है 
 मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है…”
-दाग़ देहलवी

“सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं 
 हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं…”
-दाग़ देहलवी

मोहब्बत पर दाग़ देहलवी की शायरी

“दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे 
 जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे…”
-दाग़ देहलवी

“लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से 
 इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे…”
-दाग़ देहलवी

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दाग़ देहलवी के शेर

दाग़ देहलवी के शेर पढ़कर युवाओं को दाग़ देहलवी की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। दाग़ देहलवी के शेर युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं;

“उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं ‘दाग़’ 
 हिन्दोस्ताँ में धूम हमारी ज़बाँ की है…”
-दाग़ देहलवी

“हाथ रख कर जो वो पूछे दिल-ए-बेताब का हाल 
 हो भी आराम तो कह दूँ मुझे आराम नहीं…”
-दाग़ देहलवी

“हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल 
 दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है…”
-दाग़ देहलवी

“नहीं खेल ऐ ‘दाग़’ यारों से कह दो 
 कि आती है उर्दू ज़बाँ आते आते…”
-दाग़ देहलवी

Daagh Dehlvi Shayari

“जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक 
 वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें…”
-दाग़ देहलवी

“चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़ 
 तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद…”
-दाग़ देहलवी

“दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं 
 उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया…”
-दाग़ देहलवी

“बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा 
 वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए…”
-दाग़ देहलवी

“ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं 
 इस दिल को क्या करूँ ये बहलता कहीं नहीं…”
-दाग़ देहलवी

“ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा 
 मैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं…”
-दाग़ देहलवी

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दाग़ देहलवी की दर्द भरी शायरी

दाग़ देहलवी की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं –

“वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे 
 तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था…”
-दाग़ देहलवी

“ग़ज़ब किया तिरे वअ’दे पे ए’तिबार किया 
 तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया…”
-दाग़ देहलवी

“ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से 
 ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में…”
-दाग़ देहलवी

Daagh Dehlvi Shayari

“ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा 
 ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा…”
-दाग़ देहलवी

“न जाना कि दुनिया से जाता है कोई 
 बहुत देर की मेहरबाँ आते आते…”
-दाग़ देहलवी

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दाग़ देहलवी की गजलें

दाग़ देहलवी की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा 
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा 
अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा 
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा 
तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है 
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा 
आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को 
शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा 
ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है 
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा 
ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले 
रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा
तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादाँ मेरा 
क्या ख़ता की जो कहा मैं ने न माना तेरा 
रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो तअ'ल्लुक़ ही नहीं 
मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा 
काबा ओ दैर में या चश्म-ओ-दिल-ए-आशिक़ में 
इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा 
तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की 
कहीं नीचा न हो ऐ गोर सिरहाना तेरा 
मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फ़िराक़ 
वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा 
बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है 
इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा 
अपनी आँखों में अभी कौंद गई बिजली सी 
हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा 
यूँ तो क्या आएगा तू फ़र्त-ए-नज़ाकत से यहाँ 
सख़्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा 
'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़रमाते हैं 
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

-दाग़ देहलवी

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अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता 
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता 
कोई फ़ित्ना ता-क़यामत न फिर आश्कार होता 
तिरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता 
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता 
तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता 
ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते 
ये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता 
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती 
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता 
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में 
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता 
तिरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते 
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ए'तिबार होता 
ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है कि हो चारासाज़ कोई 
अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता 
गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी 
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता 
मुझे मानते सब ऐसा कि अदू भी सज्दे करते 
दर-ए-यार काबा बनता जो मिरा मज़ार होता 
तुम्हें नाज़ हो न क्यूँकर कि लिया है 'दाग़' का दिल
ये रक़म न हाथ लगती न ये इफ़्तिख़ार होता

-दाग़ देहलवी

बात मेरी कभी सुनी ही नहीं

बात मेरी कभी सुनी ही नहीं 
जानते वो बुरी भली ही नहीं 
दिल-लगी उन की दिल-लगी ही नहीं 
रंज भी है फ़क़त हँसी ही नहीं 
लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद 
हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं 
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से 
कभी गोया किसी में थी ही नहीं 
जान क्या दूँ कि जानता हूँ मैं 
तुम ने ये चीज़ ले के दी ही नहीं 
हम तो दुश्मन को दोस्त कर लेते 
पर करें क्या तिरी ख़ुशी ही नहीं 
हम तिरी आरज़ू पे जीते हैं 
ये नहीं है तो ज़िंदगी ही नहीं 
दिल-लगी दिल-लगी नहीं नासेह 
तेरे दिल को अभी लगी ही नहीं 
'दाग़' क्यूँ तुम को बेवफ़ा कहता 
वो शिकायत का आदमी ही नहीं

-दाग़ देहलवी

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