Bahadur Shah Zafar Shayari : बहादुर शाह ज़फ़र के चुनिंदा शेर, शायरी और ग़ज़लें

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Bahadur Shah Zafar Shayari

बहादुर शाह ज़फ़र (Bahadur Shah Zafar) मुग़ल साम्रज्य के आखिरी शासक होने के साथ-साथ एक ऐसे संवेदनशील शायर भी थे, जिन्होंने प्रेम, देशभक्ति, विरह और जीवन की पीड़ा को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया। वहीं, आज भी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का जिक्र आते ही उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत के लिए उन्हें याद किया जाता है। बहादुर शाह ज़फ़र का पूरा नाम ‘अबू ज़फर सिराज-उद-दीन मोहम्मद बहादुर शाह’ था, उनका जन्म 24 अक्टूबर, 1775 को हुआ था जबकि दिल्ली से बहुत दूर बर्मा (अब म्यांमार) में उनका 7 नवंबर, 1862 को निधन हुआ। इस ब्लॉग के माध्यम से आप बहादुर शाह ज़फ़र की कुछ लोकप्रिय शायरी (Bahadur Shah Zafar Shayari) पढ़ पाएंगे, जो आपका परिचय उर्दू साहित्य से करवाएंगी। 

नाम बहादुर शाह ज़फ़र (Bahadur Shah Zafar)
जन्म 24 अक्टूबर, 1775
जन्म स्थान पुरानी दिल्ली, दिल्ली 
पिता का नाम अकबर शाह द्वितीय 
माता का नाम लाल बाई 
पत्नी का नाम ज़ीनत महल
संतान मिर्ज़ा मुग़ल, मिर्ज़ा ख़िज़्र सुल्तान व मिर्ज़ा शाह अब्बास आदि। 
प्रमुख रचनाएँ कुल्लियात-ए-ज़फर, दीवान-ए-ज़फ़र और दीवाना-ए-वसीला-ए-ज़फर  
मृत्यु 7 नवंबर, 1862
मृत्यु स्थानरंगून, म्यांमार (पूर्व बर्मा)
जीवन काल 87 वर्ष 

बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी – Bahadur Shah Zafar Shayari

बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी (Bahadur Shah Zafar Shayari) युवाओं को उर्दू साहित्य के प्रति आकर्षित करेंगी, जो कुछ इस प्रकार है –

“कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए 
 दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में…”
 -बहादुर शाह ज़फ़र

“बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी 
 जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी…”
 – बहादुर शाह ज़फ़र

“दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
 बाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बट जाएगी…”
 – बहादुर शाह ज़फ़र

“ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से 
दिल्ली ‘ज़फ़र’ के हाथ से पल में निकल गई…”
 – बहादुर शाह ज़फ़र

“औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल 
 बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल…”
 – बहादुर शाह ज़फ़र

“चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना 
 देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदी 
शहर में जिस दिन क़त्ल हुआ मैं ईद मनाई लोगों ने…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“बुराई या भलाई गो है अपने वास्ते लेकिन 
किसी को क्यूँ कहें हम बद कि बद-गोई से क्या हासिल…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द 
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितमगर 
जो तू ने किए हम पे सितम कह नहीं सकते…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

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मोहब्बत पर बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी

मोहब्बत पर बहादुर शाह ज़फ़र की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी – 

“इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें 
 इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में…”
बहादुर शाह ज़फ़र

“हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरह 
 रू-ब-रू उन के नहीं चलती ज़बाँ अच्छी तरह…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“न दूँगा दिल उसे मैं ये हमेशा कहता था 
वो आज ले ही गया और ‘ज़फ़र’ से कुछ न हुआ…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ 
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा 
शम्अ होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना 
मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज 
इश्क़ का बीमार क्या जाने दवा क्या चीज़ है…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“हो गया जिस दिन से अपने दिल पर उस को इख़्तियार
इख़्तियार अपना गया बे-इख़्तियारी रह गई…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“दिल को दिल से राह है तो जिस तरह से हम तुझे 
याद करते हैं करे यूँ ही हमें भी याद तू…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

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बहादुर शाह ज़फ़र के शेर

बहादुर शाह ज़फ़र के कुछ लोकप्रिय शेर इस प्रकार हैं:-

“’ज़फ़र’ आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का 
 जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर 
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का 
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“ये चमन यूँही रहेगा और हज़ारों बुलबुलें 
अपनी अपनी बोलियाँ सब बोल कर उड़ जाएँगी…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल 
दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो 
 मिरे फ़साना-ए-ग़म को मिरी ज़बाँ से सुनो…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“मेहनत से है अज़्मत कि ज़माने में नगीं को 
बे-काविश-ए-सीना न कभी नामवरी दी…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल 
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ…”
बहादुर शाह ज़फ़र

“ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार 
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“लोगों का एहसान है मुझ पर और तिरा मैं शुक्र-गुज़ार
तीर-ए-नज़र से तुम ने मारा लाश उठाई लोगों ने…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

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बहादुर शाह ज़फ़र की दर्द भरी शायरी

बहादुर शाह ज़फ़र की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं –

“तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें 
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल 
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में 
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“हम ही उन को बाम पे लाए और हमीं महरूम रहे 
पर्दा हमारे नाम से उट्ठा आँख लड़ाई लोगों ने…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

“बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला 
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में…”
– बहादुर शाह ज़फ़र

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बहादुर शाह ज़फ़र की गजलें

बहादुर शाह ज़फ़र की गजलें पूरी बेबाकी से समाज के हर पहलु पर अपनी राय रखी हैं, जो निम्नलिखित हैं:-

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी

उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
कि तबीअ’त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी

अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी

अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़
सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी

पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ
आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी

निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल
वो तिरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी

चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी

क्या सबब तू जो बिगड़ता है ‘ज़फ़र’ से हर बार
ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
– बहादुर शाह ज़फ़र

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लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में

इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में

कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
– बहादुर शाह ज़फ़र

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ

जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ

न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ

दिल उस को आप दिया आप ही पशेमाँ हूँ
कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहूँ

कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत
फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ

रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ

जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात
तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ

न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ

किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में
‘ज़फ़र’ मैं अपनी हक़ीक़त कहूँ तो किस से कहूँ
– बहादुर शाह ज़फ़र

मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो

मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो
ख़ुशी हो इस में या हो ग़म हमें भी हो तुम्हें भी हो

ग़नीमत तुम इसे समझो कि इस ख़ुम-ख़ाने में यारो
नसीब इक-दम दिल-ए-ख़ुर्रम हमें भी हो तुम्हें भी हो

दिलाओ हज़रत-ए-दिल तुम न याद-ए-ख़त्त-ए-सब्ज़ उस का
कहीं ऐसा न हो ये सम हमें भी हो तुम्हें भी हो

हमेशा चाहता है दिल कि मिल कर कीजे मय-नोशी
मयस्सर जाम-ए-मय-ए-जम-जम हमें भी हो तुम्हें भी हो

हम अपना ‘इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर ‘आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो

रहे हिर्स-ओ-हवा दाइम ‘अज़ीज़ो साथ जब अपने
न क्यूँकर फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम हमें भी हो तुम्हें भी हो

‘ज़फ़र’ से कहता है मजनूँ कहीं दर्द-ए-दिल-ए-महज़ूँ
जो ग़म से फ़ुर्सत अब इक दम हमें भी हो तुम्हें भी हो
बहादुर शाह ज़फ़र

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क्या आप जानते हैं बहादुर शाह जफर का मकबरा कहाँ है?बहादुर शाह जफर की शायरियां हिंदी में
बहादुर शाह जफर की मृत्यु कैसे हुई?कैसे बनाया मुग़लों ने भारत में अपना वर्चस्व?

FAQs

बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म कहाँ हुआ था?

मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्टूबर, 1775 को हुआ था।

बहादुर शाह ज़फ़र के पिता का नाम क्या था?

बहादुर शाह ज़फ़र के पिता का नाम ‘अकबर शाह द्वितीय’ था। 

बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी का क्या नाम था?

बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी का नाम ‘ज़ीनत महल’ था। 

अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का मकबरा कहां स्थित है?

बहादुर शाह ज़फ़र का मकबरा म्यांमार की पूर्व राजधानी रंगून में स्थित है।

बहादुर शाह ज़फ़र की मृत्यु कब हुई?

7 नवंबर, 1862 को बर्मा में उनकी मृत्यु हुई थी।

बहादुर शाह जफर को किसने गिरफ्तार किया था?

बहादुर शाह ज़फ़र को ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन विलियम हॉडसन ने गिरफ्तार किया था। 

आशा है कि आपको बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी (Bahadur Shah Zafar Shayari) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। उनकी ताबिश को पढ़कर आप उर्दू साहित्य के क्षेत्र में उनकी भूमिका और उनके योगदान को जान पाए होंगे। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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