Ahmad Faraz Shayari : मोहब्बत, तन्हाई और दर्द की कहानी को बयां करते अहमद फ़राज़ के चुनिंदा शेर, शायरी और ग़ज़ल

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Ahmad Faraz Shayari

अहमद फ़राज़ का नाम उर्दू के उन मशहूर शायरों में शुमार है, जिन्होंने अपनी शायरी में प्यार, दर्द, और सामाजिक संवेदनाओं को एक विशेष या सर्वोच्च स्थान दिया। 12 जनवरी 1931 को जन्मे फ़राज़ का असली नाम सैयद अहमद शाह था, लेकिन उन्होंने अपने साहित्य के सुनहरे सफ़र में ‘अहमद फ़राज़’ नाम को अपनी पहचान का आधार बनाया। ये कहना अनुचित न होगा कि फ़राज़ की लेखनी वर्तमान में भी प्रासंगिक बनकर प्रेम, पीड़ा, क्रांति और सामाजिक न्याय जैसे विभिन्न पहलुओं पर अपनी बेबाक राय रखती है। अहमद फ़राज़ ने वर्ष 1950 में अपना लेखन शुरू किया और वर्ष 1962 में उनकी पहली किताब “नौशेरा की रातें” प्रकाशित हुई थी। इस ब्लॉग के माध्यम से आप चुनिंदा अहमद फ़राज़ की शायरी (Ahmad Faraz Shayari), चुनिंदा शेर और ग़ज़लों को पढ़ पाएंगे।

अहमद फ़राज़ के बारे में

अहमद फ़राज़ का जन्म 12 जनवरी 1931 को पकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के नौशेरा क्षेत्र में हुआ था। उनका पूरा नाम सैयद अहमद शाह था। उन्होंने पेशावर के एडवर्ड कालेज से फ़ारसी और उर्दू में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की थी। अहमद फ़राज़ ने अपना कैरियर रेडियो पाकिस्तान पेशावर में स्क्रिप्ट राइटर के रूप में शुरू किया मगर बाद में वह पेशावर यूनिवर्सिटी में उर्दू के उस्ताद नियुक्त हो गये।

यूँ तो अहमद फ़राज़ ने अपने करियर में कई बेहतरीन रचनाएं की थी, जिनमें से “नौशेरा की रातें”, “शीशे का महल”, “बेवक़ूफ़ी”, “नफ़रत का इम्तिहान”, “सितारा-ए-इम्तियाज़”, “ख़ुशबू” बहुत लोकप्रिय थी। इन सभी रचनाओं ने उर्दू साहित्य के आँगन में अहमद फ़राज़ की एक अमिट पहचान बनाई।

अहमद फ़राज़ ने उर्दू साहित्य में अपना अहम योगदान दिया, उनकी लिखी शायरी आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, अहमद फ़राज़ का निधन 25 अगस्त 2008 को पाकिस्तान के इस्लामाबाद में हुआ था।

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अहमद फ़राज़ की 10 बेहतरीन शायरी – Ahmad Faraz Shayari

अहमद फ़राज़ की शायरी (Ahmad Faraz Shayari) जो युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ जन्म देंगी, कुछ इस प्रकार हैं-

“तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो ‘फ़राज़’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला…”
-अहमद फ़राज़

“आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा…”
-अहमद फ़राज़

“अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए…”
-अहमद फ़राज़

“और ‘फ़राज़’ चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया…”
-अहमद फ़राज़

“बंदगी हम ने छोड़ दी है ‘फ़राज़’
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ…”
-अहमद फ़राज़

“इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की…”
-अहमद फ़राज़

“अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए…”
-अहमद फ़राज़

“ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें…”
-अहमद फ़राज़

“उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
ऐ मिरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे…”
-अहमद फ़राज़

“किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा…”
-अहमद फ़राज़

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मोहब्बत पर अहमद फ़राज़ की शायरी – Faraz Shayari on Love

मोहब्बत पर अहमद फ़राज़ की शायरी (Faraz Shayari on Love) जो आपका मन मोह लेंगी, कुछ इस प्रकार हैं-

“अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
 जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें…”
-अहमद फ़राज़

“दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है 
 और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता…”
-अहमद फ़राज़

“ज़िंदगी से यही गिला है मुझे 
 तू बहुत देर से मिला है मुझे…”
-अहमद फ़राज़

“हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा 
 कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे…”
-अहमद फ़राज़

“दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है 
 जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे…”
-अहमद फ़राज़

“मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी 
 तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है…”
-अहमद फ़राज़

“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ 
 आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ…”
-अहमद फ़राज़

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अहमद फ़राज़ के बेस्ट 10 शेर – Ahmad Faraz Sher

अहमद फ़राज़ के शेर (Ahmad Faraz Sher) पढ़कर युवाओं को अहमद फ़राज़ की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। अहमद फ़राज़ के शेर कुछ इस प्रकार हैं;

“आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे…”
-अहमद फ़राज़

“आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा…”
-अहमद फ़राज़

“उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ…”
-अहमद फ़राज़

“इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम…”
-अहमद फ़राज़

“ढूँड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें…”
-अहमद फ़राज़

“कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा…”
-अहमद फ़राज़

“क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी…”
-अहमद फ़राज़

“आशिक़ी में ‘मीर’ जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो…”
-अहमद फ़राज़

“तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए…”
-अहमद फ़राज़

“तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे…”
-अहमद फ़राज़

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अहमद फ़राज़ की दर्द भरी शायरी – Ahmad Faraz Best Lines

अहमद फ़राज़ की दर्द भरी शायरी (Ahmad Faraz Best Lines) जो कुछ इस प्रकार हैं –

“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ…”
-अहमद फ़राज़

“हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी…”
-अहमद फ़राज़

“किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ…”
-अहमद फ़राज़

“इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ…”
-अहमद फ़राज़

“अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम…”
-अहमद फ़राज़

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अहमद फ़राज़ शायरी २ लाइन्स – Ahmad Faraz Shayari 2 Lines

अहमद फ़राज़ शायरी २ लाइन्स पढ़कर आप अहमद फ़राज़ की लेखनी के बारे में आसानी से जान पाएंगे,  Ahmad Faraz Shayari कुछ इस प्रकार है-

“चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही…”
-अहमद फ़राज़

“अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम…”
-अहमद फ़राज़

“सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं…”
-अहमद फ़राज़

“अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ…”
-अहमद फ़राज़

“कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते…”
-अहमद फ़राज़

“न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं…”
-अहमद फ़राज़

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अहमद फ़राज़ की गजलें

अहमद फ़राज़ की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं

सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मो’जिज़े अपने हुनर के देखते हैं

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं

सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं

सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं

सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं

सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं

सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं

सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस की
जो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं

सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं

सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं

वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं

बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं

सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जल्वे इधर के देखते हैं

रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं

किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं

कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं

अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
‘फ़राज़’ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
-अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें

आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें

अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है ‘फ़राज़’
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
-अहमद फ़राज़

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरा
सख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला

सुब्ह-दम छोड़ गया निकहत-ए-गुल की सूरत
रात को ग़ुंचा-ए-दिल में सिमट आने वाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला

क्या ख़बर थी जो मिरी जाँ में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो ‘फ़राज़’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
-अहमद फ़राज़

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