ग्रामीण समाज में शिक्षा का महत्व क्या है?

1 minute read
ग्रामीण समाज में शिक्षा का महत्व क्या है?

भारत के ग्रामीण क्षेत्र भारतीय सभ्यता और संस्कृति के हमेशा केंद्र रहे हैं। आज वर्तमान समय में भी भारत की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती है। इस समय भी भारत के ग्रामीण क्षेत्र का मुख्य कार्य कृषि पर ही निर्भर है। भारत की आजादी से पहले भी ग्रामीण समाज में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया जाता था इसकी पहचान कर महात्मा गाँधी ने भी बहुत पहले ही गावों के विकास और शिक्षा के महत्व पर जोर देना शुरू कर दिया था। ताकि गावों के लोग शिक्षा प्राप्त करके अपने और देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। भारत में आजादी के बाद भी ग्रामीण शिक्षा महत्व को समझकर बहुत सी योजनाओं का निर्माण किया गया है क्योंकि जब तक ग्रामीण समाज में शिक्षा की मूलभूत सुविधाएं नहीं होंगी तब तक ग्रामीण समाज और देश का संपूर्ण विकास संभव नहीं हो पाएंगा। इस ब्लॉग में हम ग्रामीण समाज में शिक्षा का महत्व को विस्तार से समझेंगे। 

शिक्षा का महत्व

शिक्षा मनुष्य के जीवन के विकास का प्रमुख आधार होता है। शिक्षा के माध्यम से ही एक व्यक्ति अपना और देश की प्रगति में अपना योगदान दे सकता है। एक शिक्षाविहीन व्यक्ति न ही अपना जीवन सही से व्यतीत कर पाता है और न ही वह अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो पाता है। लेकिन एक शिक्षित व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक ज्ञान को प्राप्त कर न केवल अपना जीवन का साकार करता है बल्कि दूसरे लोगों का भी मार्गदर्शन करता है। शिक्षा के महत्व को जानकार ही आज शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। 

ग्रामीण समाज में शिक्षा क्यों जरूरी है?

भारत की आजादी के इतने वर्षों के बाद भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करता है। जिसके कारण ग्रामीण समाज में शिक्षा का महत्व भी बहुत बढ़ जाता है क्योंकि शिक्षा ही वह माध्यम से जिसके कारण व्यक्ति अपना और अपने समाज में विकास कर सकता है। ग्रामीण शिक्षा का मूल उद्देश्य ही व्यक्ति को आत्मनिर्भर एवं स्वतंत्रता के साथ सम्रग विकास की ओर उन्मुख कराना है। 

ग्रामीण समाज में शिक्षा का महत्व

वर्तमान समय में ग्रामीण शिक्षा के महत्व पर लगातार जोर दिया जा रहा है क्योंकि आज समाज में बहुत से सामाजिक मुद्दे शिक्षा की कमी के कारण पैदा हो रहे है। जिसमें असमानता, धार्मिक भेदभाव और जेंडर जैसी प्रमुख समस्याओं आम रूप से देखी जा सकती है। ग्रामीण समाज में अगर शहरों की तरह ही आधुनिक शिक्षा का व्यापक प्रसार हो तो ग्रामीण क्षेत्रों का भी तेजी से विकास हो सकता है साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में पलायन को भी रोका जा सकता है। आज उचित शिक्षा और संसाधन की कमी के कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों से हर दिन लाखों 

यूवा अपना घर छोड़ कर अच्छे जीवन और आधुनिक शिक्षा की तलाश में शहर की ओर जा रहे है। भारत सरकार भी निरंतर ग्रामीण शिक्षा पर जोर देकर बहुत सी योजनाओं के माध्यम से शिक्षा के स्तर को बढ़ाना चाहती है। इसके साथ ही शिक्षा की गुणवंता को भी आधुनिक रूप देना चाहती है। जब तक ग्रामीण शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होगा तब तक उस समाज के लोगों का  समग्र विकास संभव नहीं है इसलिए भी ग्रामीण समाज में शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। 

ग्रामीण समाज में शिक्षा की समस्याएं

यहां ग्रामीण समाज में शिक्षा की कुछ मूलभूत समस्याओं के बारे में बताया जा रहा है, जिसे आप नीचे दिए गए बिंदुओ में देख सकते हैं:-

  1. आधुनिक विद्यालय और कॉलेजों की पर्याप्त मात्रा न होना। 
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संसाधनों की कमी होना। 
  3. अनुभवी शिक्षकों की कमी। 
  4. शिक्षा के लिए पर्याप्त साधनों की कमी। 
  5. स्किलड डेवलपमेंट कोर्सेज की कमी। 
  6. खेल के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण न मिलना। 
  7. सरकारी योजनाओं का सही से उपयोग न होना। 
  8. शिक्षा के साथ-साथ प्रेक्टिकल ट्रेनिंग का न होना। 
  9. सभी प्रमुख कोर्सेज की शिक्षा का आभाव होना। 
  10. ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन की समस्या।  

ग्रामीण शिक्षा के लिए प्रमुख योजनाएं

भारत को जब वर्ष 1947 में स्वतंत्रता मिली जिसके एक वर्ष के बाद सन 1948 में देश का पहले “एजुकेशन कमीशन” (Education Commission) की स्थापना की गई। जिसके पहले अध्यक्ष डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी थे। इस कमीशन को बनाने का मुख्य उद्देश्य भारत की हायर एजुकेशन कैसी होनी चाहिए कि दिशा बनाने के लिए ही इस कमीशन का गठन किया गया था। जिसे ‘यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन’ के नाम से जाना जाता हैं। ऐसे ही भारत में शिक्षा की नीतियों के लिए बहुत से आयोग का गठन किया गया जो इस प्रकार हैं:- 

  • यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन (1948) 
  • सेकेंडरी एजुकेशन कमीशन (1952) 
  • कोठारी कमीशन (1964-1966)
  • नेशनल पॉलिसी एजुकेशन (1968)
  • ड्राफ्ट नेशनल पॉलिसी एजुकेशन (1979)
  • नेशनल पॉलिसी एजुकेशन (1986)
  • नेशनल पॉलिसी एजुकेशन (1992)
  • सर्व शिक्षा अभियान (2000)
  • राइट टू एजुकेशन एक्ट (2009)
  • नेशनल पॉलिसी एजुकेशन (2020)

शिक्षा के महत्व  पर निबंध 

यहां शिक्षा के महत्व पर एक निबंध दिया जा रहा है, जिसे आप नीचे दिए गए टेबल में देख सकते हैं:-

शिक्षा का महत्व
शिक्षा मनुष्य के जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी साधन है। शिक्षा के बिना मनुष्य अपने जीवन में सही मार्ग पर नहीं चल सकता। शिक्षा के आभाव में मनुष्य की जिंदगी पशु के समान हो जाएगी जिसका न कोई मकसद होगा न ही जीवन की कोई दिशा। शिक्षित होने से मनुष्य अपने साथ साथ अपने समाज का भी विकास करता है। शिक्षा हमें हमारे समाज में हो रही सभी प्रमुख घटनाओं से अवगत कराती है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का एक ऐसा साधन है जो मनुष्य की किसी भी उम्र में चाहे वह बच्चा हो या जवान सभी के लिए वह एक विकासशील जीवन प्रणाली को बनाने का कार्य करती है। 
शिक्षा मनुष्य के समग्र विकास में सहायता करता है। हम शिक्षा के माध्यम से न केवल ज्ञान, कौशल और कई प्रकार के अनुभव प्राप्त करते है। इसके साथ साथ शिक्षा मनुष्य के समग्र विकास में मदद करती है क्योंकि हम शिक्षा के माध्यम से ज्ञान, और जीवन में काम आने वाले नैतिक मूल्य जैसे प्रेम, भाईचारा, शांति, अहिंसा और सामजिक परम्पराओं के बारे में सीखते है। शिक्षा किसी व्यक्ति के दृष्टिकोण और उसके व्यक्तित्व को बनाने के उपयोगी होता है इसलिए शिक्षा का ज्ञान होना हमारे जीवन के लिए अनिवार्य होना चाहिए। 

FAQs 

समाज में शिक्षा का क्या महत्व है?

शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान, एवं कला – कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों निरन्तर विकास करते है।

शिक्षा से क्या लाभ होता है?

जीवन में सफलता प्राप्त करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा सभी के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण साधन है। यह हमें जीवन के कठिन समय में चुनौतियों से सामना करने में सहायता करता है। पूरी शिक्षण प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान हम सभी और प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के प्रति आत्मनिर्भर बनाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जा सकता है?

शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीणों के हित को बढ़ाने के लिए सरकार ने नि: शुल्क भोजन, मुफ्त किताबें, छात्रवृत्ति और अन्य प्रोत्साहन जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजनाएं बनाई है। 

ग्रामीण भारत में शिक्षा की क्या भूमिका है?

भारत में, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा न केवल गरीबी और निरक्षरता को मिटाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि कई अन्य सामाजिक, आर्थिक और साथ ही सांस्कृतिक और राजनीतिक कारणों से भी महत्वपूर्ण है।

ग्रामीण समाज की परिभाषा क्या है?

ग्रामीण समाज, वह समाज जिसमें खुली भूमि के लिए निवासियों का अनुपात कम है और जिसमें सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ खाद्य पदार्थों, रेशों और कच्चे माल का उत्पादन करना हैं।  

गांव में शिक्षा क्यों जरूरी है?

शिक्षा हमें विभिन्न प्रकार का ज्ञान और कौशल को प्रदान करती है। यह सीखने की निरंतर, धीमी और सुरक्षित प्रक्रिया है, जो हमें ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो हमारे जन्म के साथ ही शुरु हो जाती है और हमारे जीवन के साथ ही खत्म होती है।

उम्मीद है आपको ग्रामीण समाज में शिक्षा का महत्व का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। यह ब्लॉग अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर शेयर करें। ऐसे ही अन्य रोचक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*