लोकतंत्र पर निबंध

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लोकतंत्र पर निबंध

लोकतंत्र यानि कि डेमोक्रेसी का अर्थ यह है कि जब भी कभी किसी राष्ट्र में सरकार का चयन होता है तो वह लोगों के द्वारा लोगों के लिए चुनी जाती है। किसी भी राष्ट्र में लोकतंत्र का गठन उसके संविधान के स्थापना के दौरान ही कर दी जाती है। लोकतंत्र को दुनियाभर में सबसे अच्छे शासन प्रणाली में शुमार है और इसी कारणवस लोकतान्त्रिक व्यवस्था आज अधिकतम देशों में लागू है। जब किसी भी देश में वहां के निवासी अर्थात जनता को वोट देने और अपने प्रत्याशी का सही चुनाव करने को मिल जाए तो ऐसे में उस देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था लागू हुई होती है। लोकतंत्र पर निबंध लिखने से पहले हमें यह जानना होगा कि लोकतंत्र का इतिहास, वर्तमान एवं भविष्य जान लेते हैं। 

लोकतंत्र क्या है?

मूलतः लोकतन्त्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण बनता हैै। अब्राहम लिंकन के अनुसार लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। लोकतंत्र में ऐसी व्यवस्था रहती है कि जनता अपनी मर्जी से विधायिका चुन सकती है। लोकतंत्र एक प्रकार की शासन व्यवस्था है, जिसमें सभी व्यक्तियों को समान अधिकार होता हैं। लेकिन अलग-अलग देश में इसके अलग-अलग अर्थ निकलते हैं।

लोकतंत्र पर निबंध (100 words) 

आज सारे विश्व भी मे लोक तंत्र की अपनी अलग परिभाषा है इनमे सबसे सटीक और जटिल परिभाषा पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकलन द्वारा दी गयी लोकतंत्र की परिभाषा सबसे मान्य मालूम जान पड़ती है। लिंकलन के अनुसार जनता के द्वारा, जनता का शासन एवं जनता के लिए शासन ही प्रजातंत्र है। प्राचीन काल में शासन व्यवस्था काफी अधीन हुआ करती थी क्युंकि राजतंत्र होने के कारण जनता की भागीदारी ना बराबर थी और साथ ही साथ जनता को कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं थे। समय ढलने के कारण जनता अपने हक़ के लिए आवेदना की और पूरे विश्वभर में शासन व्यवस्था लागू हुई। इस व्यवस्था में ताकत किसी एक आदमी के पास न होकर जनता के पास होती है। लोकतंत्र की नींव इस विश्वभर में बहुत पहले ही स्थापित हो गयी थी परंतु कई कारणों से इसकी हानि भी होती आ रही है। लोकतंत्र का जन्म भारतवर्ष में हुआ था जहाँ प्राचीन जनपद में राजा और जनता के बीच चुनाव हुआ था। इसके अलावा प्राचीन यूरोप के कुछ देशों में संसद के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा हुआ करता था परंतु इन नियमों से राजा वंछित रहता था।आधुनिक काल में लोकतंत्र की पूर्ण स्थापना अमेरिका के किसी राज्य में हुई। 

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लोकतंत्र पर निबंध (250 words)

लोकतंत्र प्राचीन काल से ही भारत एवं यूरोप जैसे कई देशों में विध्यमान है। पिछले दो हज़ार वर्षों से लोकतंत्र का इतिहास ऊँच नीच होते रहा है। जब नागरिकों ने अपनी सोच से समाज निर्माण की स्थापना की जिसके चलते अधिक मात्रा में लोगों को भागीदारी का मौका मिला। विश्व के सबसे प्राचीन शहरों में शुमार एथेंस एक यूरोपीय देश की राजधानी है जहाँ लोकतंत्र पिछले 3000 सालों से स्थापित है। ऐसे ही भारत उपमहाद्वीपों का सबसे प्राचीन और बड़ा देश होने के कारण लोकतंत्र व्यवस्था पिछले 2000 सालों से स्थापित है। कई विद्रोह और युद्ध के कारण ब्रिटिश सरकार ने इसकी इमारत गिरा दी परंतु 1947 में आज़ादी के बाद इसकी पुनः स्थापना की गई। आज भारत दुनिया का सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश है जहाँ हित एक आदमी के हाथों में न होकर पूरी जनता के हाथों में है। 
लोकतंत्र प्राचीनकाल से दो प्रकार के होते हैं-

  1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र- जब किसी देश में राजकीय संपदानों के लिए शासक के साथ साथ नागरिक भी भाग लेता है तो उस प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं। जनता से विचार विमर्श कर लेने के बाद ही फैसला किया जाता है। 
  2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र- जब कभी लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति जनता द्वारा चयनित प्रतिनिधियों द्वारा की जाती है तो उसे अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं। आजकल अधिकतर राष्ट्रों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का ही बोलबाला है। 

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भारतीय लोकतंत्र पर निबंध 300 शब्द

प्रस्तावना 
भारतीय लोकतंत्र भारतीय जनता के हेतु, भारतीय जनता द्वारा निर्वाचित जनता का शासन है। इसलिए भारतीय लोकतंत्र भारतीय लोकेच्छा और लोक-कल्याण का प्रतीक है। जब-जब जनता ने केन्द्रीय या प्रांतीय सत्ता को पसंद नहीं किया, उसे उसने सत्ता से ख़ारिज कर दिया।

लोकतंत्र भारत के कल्याण के लिए -
भारतीय लोकतंत्र महान भारत के कल्याण के लिए वचनबद्ध है। प्रधानमंत्री चाहे जवाहरलाल नेहरू रहे हों या इन्दिरा गाँधी, मोरार जी भाई देसाई रहे हों या विश्वनाथ प्रतापसिंह, सबने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार जन-कल्याण और देशोत्थान के कार्य किए। यही कारण है कि आज देश औद्योगिक दृष्टि से बहु-विकसित, वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत आगे, टेक्‍नोलोजी ऋल दृष्टि से विशिष्ट और राजनोतिक दृष्टि से स्थिर है। देश का चहुँमुखी विकास भारतीय लोकतंत्र की जीवंत उपलब्धि है।

लोकतंत्र के स्तम्भ -
लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और समाचार- पत्र। इन चारों स्तम्भों की स्वतंत्र सत्ता है, इन्हें स्वायत्तता प्राप्त है। लोकतांत्रिक भारत (डेमोक्रेट इंडिया) में चारों स्तम्भों का सुचारु रूप से संचालन भारतीय लोकतंत्र की पाँचवीं विशेष उपलब्धि है।

लोकतंत्र की समस्याएं -
भारतीय लोकतंत्र की जहाँ अनेक महती उपलब्धियाँ हैं, वहाँ उसकी समस्याएं भी बहुत हैं। ये समस्याएं स्थयं राजनीतिज्ञयों के सत्ता मोह और स्वार्थ से उपजी हैं। उनके व्यक्तिहित, दलहित से पुष्पित-पललवित हुई हैं और अब भस्मासुर बनकर उनको ही नहीं भारत के लोकतंत्र को डस रही हैं, भारत माता के शरीर को शव में परिणित करने की तैयारी से कर रही हैं।

हमारे लोकतंत्र की प्रथम समस्या है भारतीय- भारतीय में भेद । यह भेद-विष दो रूपों में लोकतंत्र को विषाक्त कर रहा है। पहला है "अल्पसंख्यकवाद तथा बहुसंख्यकवाद" । तथा दूसरा है "जातिवाद"। अल्पसंख्यकवाद तथा बहुसंख्यकवाद ने लोकतंत्र राष्ट्र को धर्म-निरपेक्ष छवि को धूमिल ही नहीं किया, देश को खंड-खंड करने का रास्ता भी प्रशस्त कर दिया है । दूसरी ओर, जातिवाद ने तो घर-घर में लड़ाई का बीज बो दिया है । एडमीशन, चुनाव तथा नौकरियों में उनके लिए पदों (सीटों) के आरक्षण ने लोकतंत्र के 'समानता' के सिद्धान्त को ही जल-समाधि ही दे दी है ।

ईमानदार और चरित्रवान लोगों का चुनाव से हटना -
लोकतंत्र शासन की दूसरी समस्या है प्रज्ञाचक्षुत्व। लोकतंत्र की आँखें नहीं होतीं । लोकतंत्र में मंत्री उपमंत्री की आँख से देखता है, उपमंत्री सचिव की आँख से, सचिव उपसचिव की आँख से, डिप्टी-सेक्रेटरी अंडर-सेक्रेटरी की तथा अंडर-सेक्रेटरी 'फाइल' की आँख से देखता है। इसका परिणाम यह होता है कि प्राय: तथ्य और कथ्य में अंतर पड़ जाता है। अयोध्या का राम मंदिर ढाँचा विवाद इस फाइली आँख का दोष है। संसद में मंत्रियों के विवादास्पद उत्तर इन फाइली नेत्रों का दोष है।

अधिनायकवादी प्रवृति -
लोकतंत्र शासन की तीसरी समस्या है अधिनायकवादी प्रवृत्ति की। भारत का प्रधानमंत्री लोकतंत्रात्मक पद्धति से इस पद को प्राप्त करता है, परन्तु प्रधानमंत्री बनने के बाद उसमें तानाशाह की आत्मा जाग्रत हो जाती है । कई मुख्यमंत्री में यही प्रवृत्ति रही है। किसी भी निर्वाचित मुख्यमंत्री को बार-बार बदलना, प्रान्तीय सरकारों के कार्य में हस्तक्षेप करना, विपक्ष शासित प्रांतीय सरकारों को तोड़ना, बिना परामर्श राज्यपालों की नियुक्ति करना, सम्बन्धित राज्य-सरकारों की सहमति के बिना राष्ट्रीय स्तर पर समझौते करना, संसद को अपनी मर्जी का चाबी-भरा खिलौना समझना लोकतंत्र की आड़ में जनतंत्र की हत्या ही तो है।

भारतीय लोकतंत्र की चौथी समस्या है, संसद में दिए जाने वाली भाषण में 'तर्क, प्रमाण और वाकचातुरी की।' तर्क और चातुरी के लिए चाहिए समझ, अध्ययन और विवेक। पार्टी के अन्धभकत सांसदों में वह चतुराई कहाँ ? वाक्चातुरी के नाम पर संसद तथा विधानसभाओं में होती है गाली-गलौज, हाथापाई, चरित्र-हिन की अश्लील बातें तथा अध्यक्ष के आसन के सम्मुख नारेबाजी। तर्क, प्रमाण और वाकचातुरी के अभाव में संसद्‌ की गरिमा कहाँ, लोकतंत्र की शोभा कहाँ ?

उपसंहार 
भारत विशाल राष्ट्र है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा महान राष्ट्र है। इस विशाल देश के प्रारम्भिक कर्णधारों द्वारा लोकतंत्रात्मक शासन को अपनाना उदार दृष्टिकोण का परिचायक है। उसमें भारत के कल्याण की दूरदर्शिता है। हाँ, सत्ता-मोह से उत्पन्न राजनीतिज्ञों का चरित्र-संकट तंथा चुनाव में भ्रष्टाचरण भारतीय लोकतंत्र की प्रबल समस्याएं आज भी हैं। 

लोकतंत्र पर निबंध (500 शब्द)

जब जनता के द्वारा चुनाव होने पर किसी तंत्र की स्थापना होती है तो उसे लोकतंत्र कहते हैं। इसका मतलब जब बिना किसी चुनाव के तंत्र की स्थापना होती है तो उसे राजतंत्र कहते हैं। लोकतंत्र और चुनाव के विषय में दुनियाभर के महान राजनेता एवं प्रतिनिधि जैसे पंडित जवाहर लाल नेहरू, अब्राहम लिंकन, लॉर्ड विवरेज आदि ने अपने अपने विचार प्रकट किए हैं। लोकतंत्र में चुनाव का महत्व यह है कि किसी भी प्रकार की भेद-भावना एवं असमानता को स्थान प्राप्त नहीं है। लोकतंत्र में चुनाव होने के कारण जनता को अपने परिणामों पर विचार करने को मिलता है। 15 अगस्त 1947 के बाद संविधान समिति बनाई गयी और 26 जनवरी 1950 को संविधान पूरे देशभर में लागू हुआ। संविधान में लोकतंत्र को संपूर्ण रूप से समझाया गया है और साथ ही साथ ये दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र का निर्माण यह मद्दे नज़र रख कर बनाया गया कि समाज की सारी बुराइयाँ जैसे रंग, जाति, आदि को मिटाया जा सके और सभी को एक बराबर का दर्ज़ा मिले। दूसरे देशों से बेहतर संबंध बनाने के लिए एवं एक सफल राष्ट्र का निर्माण करने के लिए लोकतंत्र का पालन महत्वपूर्ण है। 
लोकतंत्र में जनता को अपने मौका मिलता है जिसके चलते उन्हें अपने परिणामों पर विचार विमर्श भी प्राप्त है। इसकी तमाम विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. लोकतंत्र आम जनता के हित के लिए आधारित होता है। 
  2. राजनीतिक छेत्रों में किसी भी प्रकार के भेदभाव एवं असमानता को स्थान प्राप्त नहीं है। 
  3. जनता को अपना राजनीतिक दल चयन करने के लिए बेहतर शिक्षा मिलती है जिसके आधार पर सही दल का चुनाव होता है। 
  4. लोकतंत्र में हिंसा और क्रांति के लिए की स्थान नहीं है। 
  5. सरकार चयनित होने पर शासन जनता के अनुसार चलाया जाता है जिससे उनकी तमाम परेशानियों को मद्दे नज़र रखा जाता है। 
  6. लोकतंत्र में एक बेहतर कानून की स्थापना होती है। 
  7. पूर्ण स्वंतंत्रा प्रदान होती है जिसके चलते एक बेहतर मानव समाज की स्थापना होती है। 

नोबेल पुरष्कार साहित्य विजेता व कुशल राजनीतिज्ञ जाॅर्ज बर्नार्ड शाॅ के शब्दों में- ‘‘प्रजातंत्र एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसका लक्ष्य सभी लोगों का यथासंभव अधिक से अधिक कल्याण करना है।’’ अर्थात् लोकतंत्र का महत्व है किसी एक का ना होकर पूरे समाज का हित हो जिसका लाभ अधिक से अधिक लोग उठा सकें। जनता में किसी प्रकार का भेदभाव, जातिवाद, असमानता नहीं रहता है और सभी छेत्रों में सब एक समान हैं। आज विश्वभर में लोकतंत्र की सराहना होती है लेकिन लोगों ने कई सुधार की मांग की है। लोकतंत्र में विघ्न डालने वाले कई विषय हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती है जैसे-

  1. अशिक्षा
  2. गरीबी
  3. भेदभाव
  4. सांप्रदायिकता
  5. जातिवाद
  6. असमानता, आदि। 

लोकतंत्र पर प्रभाव डालने वाली इन सभी बुरी शक्तियों का सर्वनाश ज़रूरी है ताकि एक बेहतर समाज की स्थापना कर सकें। 

FAQ

लोकतंत्र क्या है लोकतंत्र क्यों है? 

जनता के द्वारा, जनता का शासन एवं जनता के लिए शासन ही लोकतंत्र है। हर धर्म, जाति, रंग, शिक्षा आदि के लिए धन का मूल्य एक ही है। 

लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं? 

प्राचीनकाल से लोकतंत्र दो प्रकार की होती है-
विशुद्ध या प्रत्यक्ष लोकतंत्र
प्रतिनिधि सत्तातमक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र

भारत में लोकतंत्र की स्थापना कैसे हुई? 

भारत में लोकतंत्र तब स्थापित हुआ जब 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। 

लोकतंत्र का जनक कौन है? 

भीमराव अंबेडकर ने अपनी अध्यक्षता में 26 जनवरी 1950 को संविधान समिति लागू किया। 

लोकतंत्र की शुरुआत कैसे हुई? 

 15 अगस्त 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद लोकतंत्र की समिति का चुनाव हुआ और विश्वभर में सबसे बड़ी लोकतंत्र की नींव रखी। 

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