मैसूर राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई लड़ाई 18वीं शताब्दी के आखिरी तीन दशकों में से आंग्ल-मैसूर युद्ध है। आंग्ल-मैसूर युद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण था क्योंकि इस युद्ध के दौरान हैदर अली और टीपू सुल्तान को उखाड़ फेका दिया गया था। आंग्ल-मैसूर युद्ध भारत में ब्रिटिश और मैसूर के बीच हुई लड़ाई को 4 सैन्य टकरावों में बांटा गया है। इस ब्लॉग में आंग्ल-मैसूर युद्ध की चारों टकराव की संपूर्ण जानकारी दी जाएगी।
टाइम लाइन | डेट्स |
पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध | 1767-1769 |
दूसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध | 1780-1784 |
तीसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध | 1790-1792 |
चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध | 1798-1799 |
This Blog Includes:
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769)
पृष्ठभूमि
- यह बात है वर्ष 1612 में जब वाडियार राजवंश के अंतर्गत मैसूर क्षेत्र के अंदर हिंदू राज्य के रूप में उभरा।
- 1734 से वर्ष 1766 तक चिक्का कृष्णराज वाडियार द्वितीय ने शासन किया।
- एक सैनिक के रूप में हैदर अली जो को वाडियार वंश की सेना में नियुक्त किया गया था ।
- अपने महान प्रशासनिक कौशल , कुशलता और सैन्य रणनीति के बल पर मैसूर का वास्तविक में शासक बन गया था।
- हैदर अली के नेतृत्व में 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मैसूर एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा।
- प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध में मालाबार तट के समृद्ध व्यापार पर हैदर अली के नियंत्रण के साथ मैसूर की फ्रांसीसियों से निकटता ने अंग्रेजों के राजनीतिक और वाणिज्यिक हितों और मद्रास और उनके नियंत्रण को खतरे में डाल दिया था।
- बक्सर के युद्ध में बंगाल के नवाब के साथ अपनी सफलता के बाद अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किये करवाए थे।
- परंतु अंतिम समय में निजाम जिसके पहले से ही मराठों लोगो के साथ मतभेद थे, की हैदर अली से रक्षा करने के लिये निजाम उत्तरी सरकार तट अंग्रेज़ों को सौंपने के लिये राज़ी हो गया।
- हैदर अली के साथ विरोध करने के लिए हैदराबाद का निजाम, मराठा और अंग्रेज़ एकजुट हो गए थे ।
हैदर अली मैं अपनी चतुर पास से कूटनीतिक रूप से मराठों को तटस्थ कर दिया था । हैदर अली ने निजाम को अर्कोट के नवाब के विरुद्ध अपने सहयोगी के रूप में परिवर्तित कर लिया था।
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध क्या कारण था?
हैदर अली द्वारा निर्मित मजबूत सेना द्वारा बिदनूर, केनरा, सेरा, मालाबार और सुंडा सहित दक्षिण में क्षेत्रों का अधिग्रहण जिसके लिए उन्होंने फ्रांसीसी से समर्थन लिया। इससे अंग्रेजों में हड़कंप मच गया।
हैदर अली
एक अज्ञात परिवार में जन्मे हैदर अली (1721-1782) ने अपने सैन्य जीवन को देश के लिए बलिदान कर दिया था जिसकी शुरुआत राजा चिक्का कृष्णराज वाडियार ने मैसूर सेना में घुड़सवार के रूप में की थी।
- हैदर अली अशिक्षित थे परंतु बुद्धिजीवी भी थे और कूटनीतिक और सैन्य रूप से कुशल थे।
- वह वर्ष 1761 में मैसूर का वास्तविक शासक बना । हैदर अली ने फ्रांसीसी सेना की सहायता से अपनी सेना में पश्चिमी ढंग से प्रशिक्षण की शुरुआत की थी।
- हैदर अली की उत्कृष्ट सैन्य कौशल के साथ उन्होंने निजाम की सेना और मराठों को पराजित कर दिया था।
- हैदर अली ने अपनी सेना के साथ वर्ष 1761-63 में डोड बल्लापुर, सेरा, बेदनूर और होसकोटे पर कब्ज़ा कर लिया।
- साथ ही अपने चतुर्था से समस्याएँ उत्पन्न करने वाले दक्षिण भारत (तमिलनाडु) के पॉलीगरों को अपने अधीन कर लिया था।
हैदर अली को विजयनगर साम्राज्य के समय से ही दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में पॉलीगरों अथवा पलक्कड़ों को सैन्य प्रमुख एवं प्रशासन संचालकों के रूप में नियुक्त किया जाता था। हैदर अली अपनी सेना के साथ काश्तकारों से कर भी वसूलते थे।
- कुछ समय पश्चात अपनी पराजय से उभरते हुए माधवराव के अधीन मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया था।
- जिसके कारण वर्ष 1764, 1766 और 1771 में हैदर अली को पराजित किया था।
- मराठा लोगों ने शांति स्थापित करने के लिये हैदर अली को उन्हें बड़ी रकम चुकानी पड़ी थी।
- परंतु वर्ष 1772 में माधवराव की मृत्यु के बाद हैदर अली ने वर्ष 1774-76 के दौरान कई बार मराठों पर आक्रमण किये थे।
- हैदर अली ने अपनी बुद्धि से नए क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर शुरू कर दिया था और उसके साथ-साथ उनके द्वारा हारे गए सभी क्षेत्रों को भी वापिस प्राप्त कर लिया गया था।
यह भी पढ़ें: 1857 की क्रांति
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध का परिणाम
डेढ़ वर्ष तक युद्ध बिना किसी परिणाम के जारी रहा था। मद्रास के ऊपर आक्रमण करने के लिए हैदर ने अपनी रणनीति परिवर्तित की और अचानक मद्रास पर आक्रमण कर दिया था ।
- इससे मद्रास में अव्यवस्था और दहशत फैल गई थी।
- 4 अप्रैल, 1769 को अंग्रेज लोगों ने हैदर के साथ मद्रास की संधि करने के लिये विवश हो गए थे।
- इस संधि के कारण कई सारे कैदियों और विजित क्षेत्रों का आदान-प्रदान हुआ था।
- हैदर अली ने अंग्रेजों को सहायता प्रदान करने के लिए वादा किया था कि जब किसी अन्य राज्य द्वारा आक्रमण होगा तो उनको सहायता करेंगे।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-84)
पृष्ठभूमि
दूसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान वर्ष 1771 में जब मराठा सेना ने मैसूर पर आक्रमण किया था तब अंग्रेज़ मद्रास की संधि का पालन करने में विफल रहे थे।
- उस समय हैदर अली ने उन पर विश्वास भंग करने का आरोप लगाया था ।
- यह सभी सुविधा के साथ हैदर अली ने सेना की बंदूकों, शोरा और सीसा की आवश्यकताओं को पूरा करने के मामले में फ्रांसीसियों को अधिक साधन संपन्न पाया था।
- युद्ध सामग्री का आयात करना शुरू कर दिया गया था।
- दोनों के बढ़ते संबंधों के कारण अंग्रेज़ों के बीच की चिंताएँ बढ़ा दीं गई थी ।
- नतीजतन अंग्रेज़ों ने माहे को अपने अधिकार में लाने का प्रयास किया गया था ।
- परंतु यह सब हैदर अली के संरक्षण में था।
दूसरा आंग्ल मैसूर युद्ध क्या कारण था?
- 1771 में मराठों द्वारा मैसूर पर हमला किया गया था और अंग्रेजों ने हैदर अली को समर्थन प्रदान नहीं किया था, जैसा कि वे मद्रास की संधि में सहमत हुए थे।
- नतीजतन, हैदर अली के क्षेत्रों को मराठों ने जीत लिया जिसने हैदर अली को अंग्रेजों के खिलाफ और नाराज कर दिया।
- जब माहे, हैदर अली के शासन के तहत एक फ्रांसीसी कब्जे पर अंग्रेजों ने हमला किया, तो उन्होंने 1780 में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध का परिणाम
दूसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध के अंतिम परिणाम में हैदर अली ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध मराठों और निजाम के साथ गठबंधन किया था।
- हैदर अली ने कर्नाटक राज्य पर आक्रमण किया था । साथ ही उन्होंने अर्कोट पर कब्ज़ा कर लिया था।
- वर्ष 1781 में कर्नल बेली के अधीन अंग्रेज़ी सेना को पराजित कर दिया गया था।
- इस बीच अंग्रेज़ों (आयरकूट के नेतृत्त्व में) ने हैदर की तरफ से मराठों और निजाम दोनों को अलग कर दिया था ।
- परंतु हैदर अली ने साहसपूर्वक अंग्रेज़ों का सामना किया था।
- नवंबर 1781 में पोर्टोनोवो (वर्तमान में परगनीपेटाई, तमिलनाडु) में केवल एक बार हैदर अली को पराजय का सामना करना पड़ा था।
- हालाँकि यह देखने को मिला था जी हैदर अली ने अपनी सेनाओं को वापीस संगठित किया था ।
- हैदर अली ने अंग्रेज़ों को पराजित कर के उनके सेनापति ब्रेथवेट को बंदी बना लिया था।
- हैदर अली की मृत्यु कैंसर के कारण 7 दिसंबर, 1782 हो गई थी।
- हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने बिना किसी सकारात्मक परिणाम के बारे में विचार कर एक वर्ष तक युद्ध जारी रखा था।
एक अनिर्णायक युद्ध से तंग आकर दोनों पक्षों के लोगों ने शांति का विकल्प चुना था। अंतिम परिणाम में क्या विचार किया था कि मैंगलोर की संधि (मार्च 1784) हुई थी, इसके तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे से जीते गए क्षेत्रों को वापस लौटा दिया था।
टीपू सुल्तान
नवंबर 1750 में टीपू सुल्तान का जन्म हुआ था। टीपू सुल्तान हैदर अली का पुत्र था और एक महान योद्धा था जिसे एक महान नाम ‘मैसूर टाइगर’ के रूप में भी जाना जाता है। टीपू सुल्तान के उच्च शिक्षित व्यक्ति था साथ ही उन्हें अरबी, फारसी, कन्नड़ और उर्दू भाषा में पारंगत थे।
- टीपू के अंदर अपने पिता जैसे ही गुण थे ठीक अपने पिता हैदर अली की तरह एक कुशल सैन्य बल के उत्थान और रखरखाव पर अधिक ध्यान दिया था।
- टीपू ने चतुराईपूर्ण ‘फारसी वर्ड्स ऑफ कमांड’ के साथ उसने यूरोपीय मॉडल पर अपनी सेना का गठन किया था।
- परंतु टीपू सुल्तान ने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये फ्राँसीसी अधिकारियों की सहायता ली थी।
- परंतु उसने उन्हें (फ्राँसीसियों को) एक हित समूह के रूप में विकसित नहीं होने दिया था ।
- टीपू को नौसेना बल के महत्त्व के बारे में भली-भांति अवगत था।
वर्ष 1796 में टीपू ने एक नौवाहन बोर्ड का निर्माण किया था और साथ ही 22 युद्धपोतों और 20 लड़ाकू जहाज़ों के बेड़े के निर्माण की योजना बनाई थी। उसने देश के अंदर मैंगलोर, वाज़िदाबाद और मोलीदाबाद में तीन डॉकयार्ड स्थापित किये थे।
- परंतु उसकी ये योजनाएँ फलीभूत नहीं हुईं थीं।
- टीपू के पास विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का संरक्षक भी था और उसे पुरे भारत देश में ‘रॉकेट प्रौद्योगिकी के प्रणेता’ के रूप में श्रेय दिया जाता है ।
- उसने साथ ही रॉकेट संचालन की व्याख्या करते हुए एक सैन्य पुस्तिका भी लिखी थी।
- टीपू मैसूर राज्य में रेशम उत्पादन का भी प्रणेता था।
टीपू लोकतंत्र प्रेमी और एक महान कूटनीतिज्ञ था । उन्होंने वर्ष 1797 में जैकोबियन क्लब की स्थापना के लिये श्रीरंगपटनम में फ्राँसीसी सैनिकों को समर्थन दिया था।टीपू स्वयं जैकोबियन क्लब का सदस्य बन गया था। उसने स्वयं को ‘नागरिक टीपू’ कहलवाया के नाम से जाना जाता था।उसने श्रीरंगपटनम में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया था।
यह भी पढ़ें: रौलट एक्ट
तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-92)
पृष्ठभूमि
मैंगलौर की संधि टीपू सुल्तान और अंग्रेज़ों के मध्य विवादों को हल करने के लिये पर्याप्त नहीं थी । दोनों ही दक्कन पर अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने का लक्ष्य रखते थे दौनो तरफ से टकर थी ।
- तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध अचानक से तब शुरू हुआ जब टीपू ने अंग्रेज़ों के एक सहयोगी त्रावणकोर पर आक्रमण कर दिया था।
- त्रावणकोर ऐसा व्यक्ति था जो ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये काली मिर्च का एकमात्र स्रोत था।
- त्रावणकोर ने कोचीन राज्य में डचों से जलकल और कन्नानोर खरीदा था ।
- जो टीपू की एक जागीरदारी थी , टीपू ने त्रावणकोर के कृत्य को अपने संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन माना था ।
यह भी पढ़ें: नमक आंदोलन
तीसरा आंग्ल मैसूर युद्ध क्या कारण था?
- अंग्रेजों द्वारा हैदराबाद के निज़ाम और मराठों के साथ अपने संबंधों को सुधारने के प्रयासों के साथ, टीपू सुल्तान, जिन्होंने अपने पिता हैदर अली की मृत्यु के बाद मैसूर पर नियंत्रण कर लिया था, ने अपने सैन्य संसाधनों को बेहतर बनाने के लिए फ्रांसीसियों की मदद ली।
- टीपू सुल्तान मैंगलोर की संधि के खिलाफ गए और दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान पकड़े गए अंग्रेजी कैदियों को मुक्त करने से इनकार कर दिया।
तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के परिणाम
अंग्रेज़ों ने त्रावणकोर का साथ दिया और मैसूर पर आक्रमण कर दिया था ।
- टीपू की बढ़ती शक्ति से ईर्ष्या रखने वाले लोग जैसे कि निजाम और मराठा अंग्रेज़ों से मिल गए थे।
- वर्ष 1790 में टीपू सुल्तान ने अपनी बुद्धि से ने जनरल मीडोज़ के नेतृत्त्व में ब्रिटिश सेना को हराया था ।
- वर्ष 1791 में लॉर्ड कार्नवालिस ने नेतृत्व संभाला था।
- बड़े सैन्य बल के साथ अंबूर और वेल्लोर होते हुए बैंगलोर (मार्च 1791 में अधिकृत) और वहाँ से श्रीरंगपटनम तक पहुँचा था।
- फिर से अंत में मराठों और निजाम के समर्थन के साथ अंग्रेज़ों ने दूसरी बार श्रीरंगपटनम पर आक्रमण किया था।
- टीपू ने अपनी पुरी ताकत के साथ अंग्रेज़ों का डटकर सामना किया परंतु सफल नहीं हो सका था ।
वर्ष 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि के साथ युद्ध समाप्त हुआ था ।यह देखने को मिला कि इस संधि के तहत मैसूर क्षेत्र का लगभग आधा हिस्सा ब्रिटिश, निजाम और मराठों के गठबंधन द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया था।
- बारामहल, डिंडीगुल और मालाबार अंग्रेज़ों को मिल गए थे, जबकि मराठों को तुंगभद्रा और उसकी सहायक नदियों के आसपास के क्षेत्र मिले थे और आश्चर्य की बात यह है कि निजाम ने कृष्णा नदी से लेकर पेन्नार से आगे तक के क्षेत्रों पर अधिग्रहण कर लिया था।
- इसके अतिरिक्त टीपू से तीन करोड़ रुपए युद्ध क्षति के रूप में भी लिए गए थे ।
- युद्ध क्षति पूर्ति का आधा भुगतान तुरंत किया जाना था जबकि शेष भुगतान किश्तों में किया जाना था। जिसके कारण लिये टीपू के दो पुत्रों को अंग्रेज़ों लोगों द्वारा बंधक बना लिया गया था।
- तृतीये आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण धीरे धीरे दक्षिण में टीपू की प्रभावशाली स्थिति नष्ट हो गई और वहाँ ब्रिटिश वर्चस्व स्थापित हो गया था।
यह भी पढ़ें: महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
चतुर्थ आंग्ल-मराठा युद्ध (1799)
पृष्ठभूमि
चतुर्थ आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान वर्ष 1792-99 की अवधि में अंग्रेज़ों और टीपू सुल्तान दोनों ने अपनी क्षति पूर्ति का प्रयास किया था ।
- टीपू ने श्रीरंगपटनम की संधि की समस्त शर्तों को पूर्ण किया था।
- फिर उसके पुत्रों को मुक्त कर दिया गया था।
- वर्ष 1796 में जब वाडियार वंश के हिंदू शासक की मृत्यु हो गई थी।
- उस समय टीपू ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया था और साथ ही पिछले युद्ध में अपनी अपमानजनक पराजय का बदला लेने का निर्णय किया गया था।
- वर्ष 1798 में लॉर्ड वेलेजली को सर जॉन शोर के बाद एक नया गवर्नर जनरल बनाया गया था ।
देखते ही देखते फ्राँस के साथ टीपू के बढ़ते संबधों को देखते हुए वेलेजली की चिताएँ बढ़ गईं थीं। टीपू के स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त करने के उद्देश्य से उसने सहायक संधि प्रणाली के माध्यम से उसे अपने अधीन करने के लिये विवश किया गया था।
- अंग्रेजों ने टीपू पर विश्वासघात के इरादे से अरब, अफगानिस्तान और फ्राँसीसी द्वीप (मॉरीशस) और वर्साय में गुप्तचर भेजकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया गया था।
- टीपू से वेलेजली संतुष्ट नहीं हुआ था।
- इसी कारण की वजह से चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध शुरू हुआ।
चौथा आंग्ल मैसूर युद्ध क्या कारण था?
- सेरिंगपट्टम की संधि टीपू और अंग्रेजों के बीच शांति का आश्वासन नहीं दे सकी।
- टीपू ने लॉर्ड वेलेस्ली द्वारा प्रस्तावित सहायक गठबंधन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
- टीपू ने आगे चलकर फ्रांसीसियों के साथ गठबंधन किया जिसे अंग्रेजों ने एक खतरे के रूप में देखा।
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध सहायक संधि
- चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान वर्ष 1798 में लॉर्ड वेलेजली ने भारत में सहायक संधि प्रणाली की शुरुआत की थी।
- जिसके तहत यह देखने को मिला कि सहयोगी भारतीय राज्य के शासक को अपने शत्रुओं के विरुद्ध अंग्रेज़ों से सुरक्षा प्राप्त करने के बदले में ब्रिटिश सेना के रखरखाव के लिये आर्थिक रूप से भुगतान करने को बाध्य किया गया था।
- कभी-कभी यह हालात होती थी कि शासक वार्षिक रूप से आर्थिक भुगतान करने के बजाय अपने क्षेत्र का हिस्सा सौंप देते थे।
हैदराबाद का निजाम एक पहला भारतीय शासक था जिसने सहायक संधि पर हस्ताक्षर किए थे । इस के अंदर इस बात का उल्लेख किया गया था कि सहायक संधि करने वाले देशी राजा अथवा शासक किसी अन्य राज्य के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने या अंग्रेज़ों की सहमति के बिना समझौते करने के लिये स्वतंत्र नहीं थे।
- जो राज्य तुलनात्मक रूप से मज़बूत और शक्तिशाली थे केवल सिर्फ उन्हें अपनी सेनाएँ रखने की अनुमति दी गई थी, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनकी सेनाओं को ब्रिटिश सेनापतियों के अधीन रखा गया था।
- इस के अंदर एक और बात है कि सहायक संधि राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति थी, लेकिन इसका पालन अंग्रेज़ों ने कभी नहीं किया।
- मनमाने ढंग से निर्धारित एवं भारी-भरकम आर्थिक भुगतान ने राज्यों की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया और राज्यों के लोगों को गरीब बना दिया गया था।
- वहीं ब्रिटिश अब भारतीय राज्यों के व्यय पर एक बड़ी सेना रख सकते थे।
- यह सभी लोग संरक्षित सहयोगी की रक्षा और विदेशी संबंधों को नियंत्रित करते थे ।
- उनकी भूमि पर शक्तिशाली सैन्य बल की तैनाती करते रहते थे।
आंग्ल-मैसूर युद्ध का परिणाम
17 अप्रैल, 1799 को युद्ध शुरू हुआ और 4 मई, 1799 को उसके खत्म होने के साथ युद्ध समाप्त हुआ।
- टीपू को पहले ब्रिटिश जनरल स्टुअर्ट ने पराजित किया और फिर जनरल हैरिस ने हराया था।
- लॉर्ड वेलेजली के भाई आर्थर वेलेजली ने भी चतुर्थ आंग्ल-मराठा युद्ध में भाग लिये थे ।
- मराठों और निजाम ने फीर से अंग्रेज़ों की सहायता की क्योंकि मराठों को टीपू के राज्य का आधा भाग देने का वादा किया गया था।
- सबसे अधिक बात यह है कि निजाम पहले ही सहायक संधि पर हस्ताक्षर कर चुका था।
- टीपू सुल्तान युद्ध में मारा गया था।
- परंतु टीपू सुल्तान के सभी खजाने अंग्रेजों द्वारा जब्त कर लिये गए थे।
अंग्रेज़ों ने अपनी बुद्धि से मैसूर के पूर्व हिंदू शाही परिवार के एक व्यक्ति को महाराजा के रूप में चुना था और उस पर सहायक संधि आरोपित कर दी थी।
- मैसूर को अपने अधीन करने में करते करते अंग्रेजों को 32 वर्ष लग गए थे।
- दक्कन में फ्रांसीसी फिर से प्रवर्तन का खतरा स्थायी रूप से समाप्त हो गया था।
यह भी पढ़ें: साइमन कमीशन
MCQs
दक्षिण भारत में ब्रिटिश नियंत्रण चार एंग्लो-मैसूर युद्धों के अंत के साथ स्थापित किया गया था। प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाली कई प्रतियोगी परीक्षाओं में एंग्लो-मैसूर युद्धों पर कई प्रश्न पूछे जाते हैं। हमने एंग्लो-मैसूर युद्धों पर सबसे अधिक पूछे जाने वाले शीर्ष दस प्रश्नों को संकलित किया है।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध का कालक्रम क्या था?
A. 1780 – 1784 ईस्वी
B. 1767 – 1769 ईस्वी
C. 1782 – 1785 ईस्वी
D. 1761 – 1765 ईस्वी
चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध का कालक्रम क्या था?
A. 1786 – 1788 ईस्वी
B. 1790 – 1792 ईस्वी
C. 1798 – 1799 ईस्वी
D. 1798 – 1800 ईस्वी
हैदर अली मैसूर की गद्दी पर कब बैठा?
A.1764 ईस्वी
B.1761 ईस्वी|
C. 1763 ईस्वी
D. 1756 ईस्वी
तीसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान ब्रिटिश गवर्नर-जनरल कौन था?
A. लॉर्ड कार्नवालिस
B. लॉर्ड डलहौजी
C. लॉर्ड वेलेस्ली
D. लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स
टीपू सुल्तान का मकबरा कहाँ स्थित है?
A. कोयंबटूर
B. धारापुरम
C. वायनाडी
D. श्रीरंगपट्टनम
निम्नलिखित में से कौन-सा आंग्ल-मैसूर युद्ध सेरिंगपट्टम की संधि द्वारा समाप्त हुआ?
A. पहला
B. दूसरा
C. तीसरा
D. चौथा
चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान ब्रिटिश गवर्नर-जनरल कौन था?
A. सर जॉन शोर
B. लॉर्ड वेलेस्ली
C. सर जॉन मैकफर्सन
D. लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान ब्रिटिश गवर्नर-जनरल कौन था?
A. लॉर्ड रिपोन
B. लॉर्ड वेरेलस्ट
C. लॉर्ड लिटन
D. लॉर्ड वेलेस्ली
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान ब्रिटिश गवर्नर-जनरल कौन था?
A. लॉर्ड रिपोन
B. लॉर्ड विलियम बेंटिंक
C. लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स
D. लॉर्ड वेलेस्ली
टीपू सुल्तान की मृत्यु किस आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान हुई थी?
A. पहला
B. दूसरा
C. तीसरा
D. चौथा
उत्तर
- A
- C
- B
- A
- D
- C
- B
- B
- C
- D
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
आंग्ल मैसूर युद्ध में कौन से दो पक्ष शामिल थे?
दक्षिणी भारत में मैसूर और ब्रिटिश साम्राज्य
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध कब हुआ था?
1767-1769
हैदर अली कौन थे?
हैदर अली मैसूर के मुस्लिम शासक और सैन्य कमांडर थे जिन्होंने 18 वीं शताब्दी के मध्य में दक्षिणी भारत में युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध का प्रमुख परिणाम क्या था?
हैदर अली और अंग्रेजों के बीच मद्रास की संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
टीपू सुल्तान कौन था?
टीपू सुल्तान हैदर अली का पुत्र था जिसने तीसरा और चौथा एंग्लो मैसूर युद्ध लड़ा और चौथे युद्ध में अपने शहर की रक्षा करते हुए उसकी मृत्यु हो गई।
टीपू सुल्तान ने मैसूर की गद्दी कब संभाली?
1782 में अपने पिता हैदर अली की मृत्यु के बाद, टीपू सुल्तान ने गद्दी संभाली।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध कब लड़ा गया था?
दूसरा आंग्ल मैसूर युद्ध 1780-1784 तक हुआ।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध के किसी एक परिणाम का उल्लेख कीजिए।
इस प्रकार मैंगलोर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे जो द्वितीय एंग्लो मैसूर युद्ध के अंत को चिह्नित करते थे।
उस समय अवधि का उल्लेख करें जिसमें तीसरा एंग्लो मैसूर युद्ध हुआ था।
तीसरा आंग्ल मैसूर युद्ध 1790-1792 के बीच हुआ।
टीपू सुल्तान की मृत्यु किस आंग्ल मैसूर युद्ध के दौरान हुई थी?
चौथे युद्ध के दौरान शहर की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई।
एंग्लो मैसूर में कितने युद्ध हुए?
मैसूर में कुल 4 युद्ध हुए।
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध किसने जीता?
पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध मैसूर राज्य द्वारा जीता गया था।
एंग्लो मैसूर युद्ध का परिणाम क्या था?
मैसूर की राजधानी पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था। इस युद्ध में शासक टीपू सुल्तान मारा गया।
सालबाई की संधि पर किसने हस्ताक्षर किए?
17 मई, 1782 को [मराठा साम्राज्य] और [ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी] के प्रतिनिधियों द्वारा वॉरेन हेस्टिंग्स और के बीच [प्रथम एंग्लो-मराठा युद्ध] के परिणाम को हल करने के लिए लंबी बातचीत के बाद “सालबाई की संधि” पर हस्ताक्षर किए गए थे।
आंग्ल-मैसूर युद्ध के पश्चात का परिदृश्य
लॉर्ड वेलेजली ने मैसूर साम्राज्य के सूंदा और हरपोनेली ज़िलों को मराठों को देने की पेशकश की, जिसे बाद में मना कर दिया गया था।
- निजाम को अंतिम रूप में गूटी और गुर्रमकोंडा ज़िले दिये गए थे।
- चतुर्थ आंग्ल-मराठा युद्ध के पश्चात् अंग्रेज़ों ने कनारा, वायनाड, कोयंबटूर, द्वारापुरम और श्रीरंगपटनम पर अधिकार कर लिया था।
- मैसूर का नया राज्य एक पुराने हिंदू राजवंश के कृष्णा राज तृतीय (वाडियार) को सौंप दिया गया था।
- जिसने सहायक संधि स्वीकार कर ली थी।
FAQs
दक्षिणी भारत में मैसूर और ब्रिटिश साम्राज्य
1767-1769
हैदर अली मैसूर के मुस्लिम शासक और सैन्य कमांडर थे जिन्होंने 18 वीं शताब्दी के मध्य में दक्षिणी भारत में युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हैदर अली और अंग्रेजों के बीच मद्रास की संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
टीपू सुल्तान हैदर अली का पुत्र था जिसने तीसरा और चौथा एंग्लो मैसूर युद्ध लड़ा और चौथे युद्ध में अपने शहर की रक्षा करते हुए उसकी मृत्यु हो गई।
1782 में अपने पिता हैदर अली की मृत्यु के बाद, टीपू सुल्तान ने गद्दी संभाली।
दूसरा आंग्ल मैसूर युद्ध 1780-1784 ई.
इस प्रकार मैंगलोर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे जो द्वितीय एंग्लो मैसूर युद्ध के अंत को चिह्नित करते थे।
तीसरा आंग्ल मैसूर युद्ध 1790-1792 के बीच हुआ।
चौथे युद्ध के दौरान शहर की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई।
प्रथम मैसूर युद्ध अंग्रेजो और हैदर अली के बीच 1767 से 1769 ई. तक हुआ, जिसका कारण मद्रास में अंग्रेज़ों की आक्रामक नीतियाँ थीं। मैसूर राज्य वर्तमान कर्नाटक का राज्य था। मैसूर राज्य में चकियाँ कृ्ष्णराय नाम के शासक का राज्य था जो कि वोडियार वंश से था।
आशा करते हैं कि आपको आंग्ल-मैसूर युद्ध का ब्लॉग के बारे में सभी जानकरियां मिल गई होंगी। यदि आपको हिस्ट्री की पढ़ाई में इंटरेस्ट है और आप विदेश में कोई हिस्ट्री रिलेटेड कोर्स करना चाहते हैं तो 1800 572 000 पर कॉल करके Leverage Edu एक्सपर्ट्स के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें और बेहतर गाइडेंस पाएं।