रस हिंदी काव्यशास्त्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मूलभूत तत्व है। सरल शब्दों में कहा जाए तो, जब किसी कविता, कहानी या रचना को पढ़ने या सुनने पर हमारे मन में विशेष प्रकार का आनंद, भावना या भावोद्रेक उत्पन्न होता है, उसे रस कहते हैं। रस साहित्यिक रचना की आत्मा है, जो पाठक या श्रोता के हृदय में भावनाओं की तरंगें उत्पन्न करता है और उसे सौंदर्य का अनुभव कराता है।
रस की परिभाषा (Ras Ki Paribhasha)
‘रस’ शब्द ‘रस्’ धातु और ‘अच्’ प्रत्यय के मेल से निर्मित है। जब हम किसी काव्य को पढ़ते या सुनते हैं, तो उसमें वर्णित विषय या वस्तु का चित्र हमारे मन में उभरता है। इससे हृदय में एक अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। इस आनंद को शब्दों में पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता, केवल महसूस किया जा सकता है। काव्य में उत्पन्न यही अनुभूति ‘रस’ कहलाती है।
परिभाषा:
“काव्य के माध्यम से उत्पन्न होने वाला आनंद या भावपूर्ण अनुभूति रस कहलाती है।”
संस्कृत आचार्य आचार्य भरत ने ‘रस’ को परिभाषित करते हुए कहा है:
“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।”
अर्थात विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।
रस के तत्व
रस के निर्माण में मुख्यतः तीन तत्त्व होते हैं:
- विभाव — जो भावों को उत्पन्न करने का कारण होता है (जैसे प्रियतम का दर्शन)।
- अनुभाव — जो उत्पन्न भावों के बाहरी संकेत होते हैं (जैसे आँखों से आँसू बहना)।
- व्यभिचारी भाव — सहायक भाव जो मुख्य भावना को पुष्ट करते हैं (जैसे भय, उत्साह, चिंता आदि)।
इन तीनों के संयोग से रस की अनुभूति होती है।
रस के प्रकार (Types of Ras)
आचार्य भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में आठ रसों का वर्णन किया था, बाद में आचार्य मम्मट ने एक और रस जोड़कर इन्हें नौ रस कर दिया। ये नौ रस निम्नलिखित हैं:
| रस का नाम | स्थायी भाव | उदाहरण |
|---|---|---|
| शृंगार रस | प्रेम | राधा-कृष्ण का प्रेम |
| हास्य रस | हँसी | किसी मजेदार घटना पर हँसना |
| करुण रस | शोक | प्रियजन के वियोग में दुख |
| रौद्र रस | क्रोध | युद्ध के समय वीरों का गुस्सा |
| वीर रस | उत्साह | युद्ध में वीरता |
| भय रस | भय | अंधकार में डर |
| बीभत्स रस | घृणा | गंदगी देखकर घृणा होना |
| अद्भुत रस | आश्चर्य | अनोखे दृश्य देखकर चकित होना |
| शांत रस | निर्वेद | मोक्ष या वैराग्य की भावना |
रस का महत्व
- रस पाठक या श्रोता को रचना से भावनात्मक रूप से जोड़ता है।
- साहित्य के माध्यम से जो अनुभूति होती है, वही रस है।
- रस के बिना कोई भी कविता, कहानी या नाटक प्रभावशाली नहीं बन सकता।
- रस साहित्यिक कृति की आत्मा है, जो पाठक को आनंदित करती है और उसे भीतर से स्पर्श करती है।
रस काव्य की वह आत्मा है जो शब्दों में प्राण फूँकता है। यह पाठक या श्रोता के मन में गहरे भावों को जगाकर उसे साहित्यिक आनंद प्रदान करता है। इसलिए हिंदी साहित्य और काव्यशास्त्र में रस का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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