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उत्तर- लक्ष्मण ने व्यंग्यपूर्ण शब्दों में परशुराम से कहा कि हे मुनि! हमारे दृष्टिकोण से सभी धनुष एक समान हैं, फिर यह शिव-धनुष भी पुराना ही था। इसे टूटने से कोई खास लाभ या हानि नहीं हुई। अतः इसे लेकर इतना क्रोध करना उचित नहीं है। इस प्रकार लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध को व्यंग्य के माध्यम से कम करने का प्रयास किया।
इस पाठ के अन्य प्रश्न
- लक्ष्मण के कुल में किन-किन पर वीरता नहीं दिखाई जाती है और क्यों?
- परशुराम ने राम की विनयपूर्ण बातों का क्या जवाब दिया और क्यों?
- फरसे को दिखाते हुए परशुराम ने लक्ष्मण से आवेगपूर्ण वाणी में क्या कहा था?
- ‘अहो मुनीसु महाभट मानी’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
- पाठ ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के आधार पर परशुराम की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
- लक्ष्मण द्वारा परशुराम पर किए गए व्यंग्यों का उल्लेख कीजिए।
- ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में राम के किस स्वभाव की प्रशंसा व्यक्त हुई है?
- तुलसीदास का व्यक्तित्व एवं कृतित्व संक्षेप में लिखिए।
- परशुराम के क्रोधित होने का क्या कारण था?
- लक्ष्मण के वचनों का परशुराम पर क्या प्रभाव पड़ा?
- ‘रे नृप बालक’ इस पंक्ति में किसने, किससे क्या कहा है तथा क्यों?
- ‘सेवकु सो जो करै सेवकाई’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
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