उत्तर: हमें कभी भी दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से हम घमंडी बन जाते हैं और अपनी ही हार का कारण बनते हैं। इस संदर्भ में प्रसिद्ध कछुआ-खरगोश की कहानी उपयुक्त उदाहरण है।
एक तालाब के किनारे एक कछुआ रहता था और उसी के पास एक बिल में एक खरगोश भी रहता था। दोनों में दोस्ती थी, लेकिन खरगोश कछुए को कमजोर समझता था। वह अपनी गति और चालाकी पर बहुत गर्व करता था और कछुए की धीमी चाल को देखकर उसकी क्षमता को कम आंकता था।
एक दिन दोनों में दौड़ लगाने की शर्त हुई, तय किया गया कि जो पहले तय स्थान तक पहुँचेगा, वही विजेता होगा। दौड़ शुरू हुई और खरगोश जल्दी ही आधी दूरी तक पहुँच गया। उसने सोचा कि कछुआ बहुत धीरे-धीरे चल रहा है, उसे तो पहुँचने में बहुत समय लगेगा। इसलिए वह पेड़ के नीचे आराम करने लगा और सो गया।
वहीं, कछुआ धैर्यपूर्वक और निरंतर चलता रहा, बिना रुके या थके। जब खरगोश की नींद खुली और वह दौड़ फिर से लगाने लगा, तो उसने देखा कि कछुआ पहले ही फिनिश लाइन पार कर चुका था। खरगोश को अपनी गलती का अहसास हुआ कि उसने कछुआ अपनी तुलना में कमजोर समझकर उसे कम आँका।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं आंकना चाहिए। हर व्यक्ति में अपनी-अपनी विशेषताएँ और ताकत होती है, जिन्हें समझना और सम्मान देना आवश्यक है।
इस पाठ के अन्य प्रश्न
- साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
- ‘बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
- ‘इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
- पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौन्दर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
- इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौन्दर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
- निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए- (क) बालकु बोलि बधाँ नहि तोही। (ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
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- अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
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