Vishwa adivasi Diwas: आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनकी सांस्कृतिक विरासत और उनके योगदान को सम्मानित करने के उद्देश्य से हर साल 9 अगस्त के दिन विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। इस अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के माध्यम से दुनियाभर में आदिवासी जनता और उनके योगदान का जश्न मनाया जाता है। इस दिन आदिवासी समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा पर भी ध्यान आकर्षित किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 1994 में आदिवासी समुदायों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस दिन की शुरुआत की। इस ब्लॉग में आपको विश्व आदिवासी दिवस (Vishwa adivasi Diwas) के बारे में विस्तार से जानने को मिलेगा।
This Blog Includes:
- विश्व आदिवासी दिवस के बारे में – World Tribal Day in Hindi
- विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास – Vishwa adivasi Diwas
- विश्व आदिवासी दिवस का महत्व
- विश्व आदिवासी दिवस: साल 2024 की थीम
- विश्व आदिवासी दिवस: चुनौतियां और समाधान
- भारत की प्रमुख आदिवासी जनजातियां
- भारत के सबसे पुराने आदिवासी कौन?
- मूलनिवासी लोग कौन हैं?
- विश्व आदिवासी दिवस : कुछ रोचक तथ्य
- FAQ
विश्व आदिवासी दिवस के बारे में – World Tribal Day in Hindi
विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) 9 अगस्त के दिन मनाया जाता है। विश्व के आदिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस आदिवासी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है। इसे वर्ल्ड इंडिजिनस डे यानि विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) के नाम से भी जाना जाता है।
विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास – Vishwa adivasi Diwas
स्वदेशी और जनजातीय लोगों को अक्सर राष्ट्रीय शब्दों जैसे- मूल लोग, आदिवासी लोग, प्रथम राष्ट्र, आदिवासी, जनजाति, शिकारी-संग्रहकर्ता या पहाड़ी जनजातियाँ से जाना जाता है। विश्व के 90 से अधिक देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। दुनिया में आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 37 करोड़ है, जिसमें लगभग 5000 अलग-अलग आदिवासी समुदाय हैं और उनकी लगभग 7 हजार भाषाएँ हैं। इसके बावजूद आदिवासियों को अपने अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 9 अगस्त 1982 को आदिवासियों के हित में एक विशेष बैठक आयोजित की गई थी। तब से जागरूकता बढ़ाने और दुनिया की स्वदेशी आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) मनाया जाता है। यह दिवस सबसे पहली बार सयुंक्त राज्य अमेरिका में 1994 में मनाया गया था। जनजातीय समाज के उत्थान, उनकी संस्कृति और सम्मान को बचाने के साथ-साथ जनजातीय जनजातियों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही हर साल 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विश्व आदिवासी दिवस का महत्व
विश्व आदिवासी दिवस का महत्व कुछ इस प्रकार है –
- इस दिन से सही मायनों में आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर, भाषाओं और परंपराओं के संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
- इस दिन के माध्यम से आदिवासी समुदायों के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे क्षेत्रों में हो रहे भेदभाव का विरोध करने का अवसर मिलता है।
- इस दिन को उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने वाले एक माध्यम के रूप में देखा जाता है।
- इस दिन के माध्यम से समाज जान पाता है कि आदिवासी लोग जंगल, जल और भूमि के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- आदिवासी समुदायों की पारंपरिक पद्धतियां पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में सहायक होती हैं, जिनका हर मानव को सम्मान करना चाहिए।
विश्व आदिवासी दिवस: साल 2024 की थीम
हर साल वर्ल्ड अर्थ डे को एक थीम के साथ मनाया जाता है। साल 2024 में इसकी थीम है- ‘प्लेनेट वर्सेज प्लास्टिक’ इस थीम का उद्देश्य सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करना और उसके ऑप्शन्स की तलाश पर जोर देना है।
विश्व आदिवासी दिवस: चुनौतियां और समाधान
विश्व आदिवासी दिवस पर आप आदिवासी समाज के सामने आने वाली चुनौतियों को जानने के साथ-साथ, इनके समाधानों की भी खोज करेंगे। ये चुनौतियां और समाधान कुछ इस प्रकार हैं –
- आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव, जिसके लिए सरकारों को इस समाज में शिक्षा अभियान को चलाना चाहिए।
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, जिसके लिए उन इलाकों में अधिकाधिक अस्पताल और मेडिकल खुलने चाहिए।
- विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए आदिवासी समाज के लोगों में स्वरोजगार और कौशल विकास जैसी भावनाओं को जगाना चाहिए।
- आदिवासी समाज की भाषा, संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण करते हुए हमें उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाना चाहिए।
भारत की प्रमुख आदिवासी जनजातियां
भारत की प्रमुख आदिवासी जनजातियों में भील, संताल, गोंड, नागा, टोड़ा इत्यादि हैं जो कि भारत के मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गोंड: छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, नागालैंड, तमिलनाडु में रहती हैं। इन जनजातियों ने समय-समय पर भारत की पुण्यभूमि से विश्व को जल-जंगल और जमीन को बचाने का नारा दिया है।
भारत के सबसे पुराने आदिवासी कौन?
वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अध्ययन और अनुसंधान के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि भारत में मानवता की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई थी। भारत में जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा के तट पर हुआ था जो नवीनतम शोधानुसार विश्व की सर्वप्रथम नदी मानी गई है। यहाँ से डायनोसौर के अंडे और जीवाश्म भी मिले हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार गोंडवाना लैंड भू भाग के अलग हो जाने के बाद अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया एवं भारतीय प्रायद्वीप में विखंडन के पश्चात् यहां के निवासी अपने अपने क्षेत्र में बंट गए। कहा जाता है कि गोंड जनजाति के लोग गोंडवाना लैंड से आए थे और इनका यह नाम भी गोंडवाना लैंड से ही आया है। इस कारण से गोंड जनजाति के लोग भारत के सबसे पुराने आदिवासी माने जाते हैं।
मूलनिवासी लोग कौन हैं?
मूलनिवासी शब्द उन विशिष्ट लोगों के लिए एक सामान्य शब्द है, जिन्हें ऐतिहासिक प्रक्रियाओं के माध्यम से हाशिए पर धकेल दिया गया है और अपने स्वयं के विकास को नियंत्रित करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। स्वदेशी लोगों के लिए, स्वदेशी पहचान का दावा करने और दावा करने में आत्म-पहचान मूल सिद्धांत है। स्वदेशी लोग अपने इतिहास, राज्य के साथ संबंध, मान्यता के स्तर और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर विभेदित संगठनात्मक प्रतिनिधित्व का एक विशाल स्पेक्ट्रम प्रस्तुत करते हैं।
विश्व आदिवासी दिवस : कुछ रोचक तथ्य
World Tribal Day के अवसर पर आइये जानते हैं मूलनिवासियों से जुड़े कुछ रोचक तथ्य –
- 90 देशों में 370 मिलियन से अधिक स्वदेशी लोग फैले हुए हैं।
- मणिपुर और मिजोरम में पाई जाने वाली बनी मेनाशे जनजाति, इज़राइल की खोई हुई जनजातियों के वंशज हैं ।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा, मुंडा जनजाति से थे जो मुख्य रूप से झारखंड में पाई जाती है।
- जनजातीय लोगों का जानवरों के साथ अनोखा रिश्ता होता है। मध्य अफ़्रीका के बाका लोगों के पास जानवर की उम्र, लिंग और स्वभाव के आधार पर “हाथी” के लिए 15 से अधिक अलग-अलग शब्द हैं, और उनका मानना है कि उनके पूर्वज जानवरों के साथ जंगल में चलते हैं ।
- इंडोनेशिया की ओरंग रिम्बा जनजाति में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसकी गर्भनाल को सेंटुबुंग पेड़ के नीचे लगाया जाता है। बच्चे का जीवन भर उस पेड़ के साथ एक पवित्र बंधन होता है, और ओरंग रिम्बा के लिए, “जन्म वृक्ष” को काटना हत्या के बराबर है।
- विश्व की लगभग 22% भूमि पर स्वदेशी लोग रहते हैं और अनुमान है कि ग्रह की 80% जैव विविधता उनके पास है।
FAQ
यह 9 अगस्त के दिन मनाया जाता है।
2024 में यह 9 अगस्त 2023 को है।
इसकी शुरुआत 1994 से हुई।
मानवाधिकारों पर विश्व सम्मेलन की एक सिफारिश के बाद, महासभा ने विश्व के स्वदेशी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दशक (1995-2004) की घोषणा की।
विश्व आदिवासी दिवस को अच्छे से मनाने के लिए आप जागरूकता अभियान का हिस्सा बनकर, आदिवासी संस्कृति का प्रचार करें और उनके योगदान को अपना समर्थन दें।
भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और भूमि अधिकारों से जुड़े प्रावधान हैं। ये प्रावधान आदिवासी समुदायों को विकास की मुख्यधारा से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।
आदिवासी दिवस का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनकी संस्कृति और समस्याओं के बारे में समाज में जागरूकता फैलाना है।
विश्व आदिवासी दिवस सही मायनों में आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान, उनके पारंपरिक ज्ञान और पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान को पहचानने का एक सुनहरे अवसर के समान होता है।
भारत में भील, गोंड, संताल, नागा, और टोड़ा आदि प्रमुख आदिवासी जनजातियां हैं।
आदिवासी समुदायों को मुख्य रूप से शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, विस्थापन और भूमि अधिकारों का संकट, आर्थिक असमानता चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको इस ब्लॉग में विश्व आदिवासी दिवस (Vishwa adivasi Diwas) के बारे में विस्तार से जानने को मिल गया होगा। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग इवेंट्स ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।