वैदिक साहित्य अत्यन्त विस्तृत और मुश्किल था और इसे समझ पाना आम मनुष्य की वश की बात नहीं थी। अतः आगे चलकर वेद के अर्थ को सरलता से समझने तथा वैदिक कर्मकाण्डों के प्रतिपादन में सहायता देने के उद्देश्य से एक नए साहित्य की रचना की गई, जिसे ‘वेदांग’ कहा जाता है। इसकी संख्या छः है, जिनका ज्ञान वेद के यथार्थ ज्ञान के लिये अत्यावश्यक है- जो कि इस प्रकार हैं:- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष।
जानते हैं वेदांग के बारे में
यहाँ वेदांग के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है:-
- शिक्षा – इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है। स्वर एवं वर्ण आदि के उच्चारण और प्रकारो की यहाँ शिक्षा दी जाती है। इसका मुख्य उद्येश्य वेदमन्त्रों के अविकल यथास्थिति व विशुद्ध उच्चारण किये जाने का है। शिक्षा का उद्भव और विकास वैदिक मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण और उनके द्वारा उनकी रक्षा के उद्देश्य से हुआ है।
- कल्प – वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कल्प में कथन किया गया है। इसकी तीन मुख्य शाखायें हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र। कल्प वेद-प्रतिपादित कर्मों का भलीभाँति विचार प्रस्तुत करने वाला शास्त्र है। इसमें यज्ञ सम्बन्धी नियम दिये गये हैं।
- व्याकरण – इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है। वेद-शास्त्रों का प्रयोजन जानने तथा शब्दों का यथार्थ ज्ञान को समझने के लिए इसका अध्ययन आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में पाणिनीय व्याकरण ही वेदांग का प्रतिनिधित्व करता है। व्याकरण वेदों का ‘मुख’ भी कहा जाता है।
- निरुक्त – वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है। इसे वेद पुरुष का ‘कान’ भी कहा गया है। निःशेषरूप से जो कथित हो, वह निरुक्त है। इसे वेद की ‘आत्मा’ भी कहा गया है।
- ज्योतिष – इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´से है। यह वेद पुरुष का ‘नेत्र’ माना जाता है। वेद यज्ञकर्म में प्रवृत होते हैं और यज्ञ काल के लिए आश्रित होते है तथा ज्योतिष शास्त्र से काल का ज्ञान होता है। अनेक वेदिक पहेलियों का भी ज्ञान बिना ज्योतिष के नहीं हो सकता।
- छन्द – वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान ‘छन्दशास्त्र’ से होता है। इसे वेद पुरुष का ‘पैर’ कहा गया है। ये छन्द वेदों के आवरण है। छन्द नियताक्षर वाले होते हैं। इसका उदेश्य वैदिक मन्त्रों के समुचित पाठ की सुरक्षा भी है।
FAQs
छह वेदांग शिक्षा, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और कल्प हैं।
कुल छह वेदांग हैं।
वेदों को समझने के लिए वेदांग आवश्यक हैं इनके बिना वेदमन्त्रों के अर्थ जानना असम्भव है।
वेद ईश्वर को “ब्राह्मण” कहते हैं। ब्राह्मण (अक्सर भगवान ब्रह्मा के रूप में भ्रमित) अपरिवर्तनीय, अनंत, अंतर्निहित और पारलौकिक वास्तविकता है, जो इस ब्रह्मांड में सभी पदार्थ, ऊर्जा, समय, स्थान, अस्तित्व और इससे परे की हर चीज़ का दिव्य आधार है।
ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है।
आशा है इस ब्लॉग से आपको वेदांग के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।