“इन्कलाब जिंदाबाद” का नारा हसरत मोहानी ने वर्ष 1921 में दिया था, जिसका हिंदी अनुवाद “क्रांति अमर रहे” होता है। हसरत मोहानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे और वर्ष 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक नेता भी थे। वर्ष 1929 में इन्कलाब जिंदाबाद का नारा पहली बार दिल्ली के सेंट्रल असेंबली में क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने लगाया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इंकलाब जिंदाबाद एक ऐसा नारा जिसने प्रत्येक भारतीय को इस आंदोलन में भाग लेने के प्रेरित किया था। कुछ ऐसे शब्द या अभिव्यक्तियाँ हैं जो अमर हो जाती हैं और हमेशा हमारे साथ रहती हैं- इंकलाब (क्रांति) उनमें से एक है।
इंकलाब जिंदाबाद का नारा किसने दिया था?
मौलाना हसरत मोहानी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के साथ एक उर्दू शायर, पत्रकार, इस्लामी विद्वान, और समाजसेवक भी थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। हसरत मोहानी ने वर्ष 1921 में ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ का मशहूर नारा दिया था। जिसके बाद भगत सिंह द्वारा इस नारे को हमेशा के लिए अमर कर दिया है।
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हसरत मोहानी कौन थे?
हसरत मोहानी का जन्म उन्नाव जिले के मोहान कस्बे में 1 जनवरी 1875 को हुआ था। इनका असली नाम सैयद फजल-उल-हसन था। उन्होंने एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज, अलीगढ़ से शिक्षा प्राप्त की, जिसे अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कहा जाता है। हसरत मोहानी जी बचपन से ही साहित्य में रुचि रखते थे। कहा जाता है कि शायरी करने की वजह से उनका नाम हसरत पड़ गया था।
वर्ष 1903 में मोहानी जी ने अलीगढ़ से ‘उर्दू-ए-मुअल्ला’ नाम की पत्रिका निकाली थी। जोकि अंग्रेजों की गलत नीतियों के खिलाफ तीखे अंदाज में लिखते थे। वे बिना डरे अपनी कलम से भारतीयों को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे, ये सब देख कर अंग्रेज सरकार भी उनकी कलम से खौफ खाती थी। उनकी इस बेधड़क आवाज दबाने के लिए उन्हें वर्ष 1907 में दोबारा जेल में डाल लिया गया था।
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FAQs
1921 में हसरत मोहानी ने।
8 अप्रेल 1929 को।
1921 में इंकलाब ज़िन्दाबाद था।
गुलाम हुसैन थे।
क्रांति (इंकलाब) का अर्थ है।
मौलाना हसरत मोहानी द्वारा बनाया गया था।
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