19 जून 2024 भारत के लिए अविस्मरणीय पहल के लिए दर्ज हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। पांचवीं शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने वाला एक प्रसिद्ध शिक्षण केंद्र था, जो 800 वर्षों तक फलता-फूलता रहा। नालंदा यूनिवर्सिटी की गौरवमयी यात्रा ऐतिहासिक महत्व रखती है क्योंकि परिसर का नाम प्राचीन विश्वविद्यालय के नाम पर ही रखा गया है। इसलिए यहां हम विस्तार से History of Nalanda University in Hindi जानेंगे।
‘भारत के गौरव’ नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
History of Nalanda University in Hindi बात की जाए तो 1,600 वर्ष पहले यानि पांचवी सदी में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। इतिहासकारों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 450 ईसवी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी और बाद इस यूनिवर्सिटी को हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला था।
इतिहास के अनुसार, सन् 1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय और उसकी लाइब्रेरी को नष्ट कर दिया गया था। छह शताब्दियों की गुमनामी के बाद 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन ने विश्वविद्यालय को फिर से खोजा। बाद में 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने आधिकारिक तौर पर इसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना था।
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दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था नालंदा
नालंदा विश्वविद्यालय के स्ट्रक्चर की बात की जाए तो इस यूनिवर्सिटी में 300 कमरे, 7 बड़े कमरे और स्टडी के लिए 9 मंजिल की एक बड़ी लाइब्रेरी थी और इस लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए 3 लाख से अधिक किताबें थीं। यह दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध था और इसने चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया सहित दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया।
2010 में पारित हुआ था नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक
यूनिवर्सिटी की विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए, नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने का विचार पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने 2006 में प्रस्तावित दिया था। 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक पारित होने के बाद इस दृष्टिकोण को गति मिली, जिसके परिणामस्वरूप 2014 में राजगीर के पास एक अस्थायी स्थान से इसका संचालन शुरू हुआ। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2016 में राजगीर के पिलखी गांव में स्थायी परिसर की आधारशिला रखी थी। निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ था।
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नालंदा के सम्मानित शिक्षकों में से एक थे शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट
नालंदा में चिकित्सा, आयुर्वेद, बौद्ध धर्म, गणित, व्याकरण, खगोल विज्ञान और भारतीय दर्शन जैसे विषयों को पढ़ाया जाता था। 8वीं और 9वीं शताब्दी ई. के दौरान पाल वंश के संरक्षण में विश्वविद्यालय ने खूब ख्याति पाई। नालंदा का स्थायी प्रभाव मुख्य रूप से गणित और खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान में देखा जाता है। आपको बता दें कि भारतीय गणित के अग्रणी और शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट छठी शताब्दी के दौरान नालंदा के सम्मानित शिक्षकों में से एक थे।
यूनिवर्सिटी के 10 हजार छात्रों में शामिल थे सम्राट हर्षवर्धन, धर्मपाल और धर्मकृति
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नालंदा यूनिवर्सिटी में 10 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स पढ़ाई करते थे और उन्हें पढ़ाने के लिए लगभग 2,000 से ज्यादा शिक्षक थे। बता दें कि नालंदा यूनिवर्सिटी से कई महान विद्वानों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी और दुनिया में प्रसिद्धि पाई जिनमें सम्राट हर्षवर्धन, धर्मपाल, धर्मकृति, बसुबंधु, आर्यवेद, नागार्जुन आदि शामिल थे।
कठिन साक्षात्कारों के बाद मिलता था प्रवेश
इस विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स का एनरोलमेंट कठिन माना जाता था। बता दें कि नालंदा यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए छात्रों को कठिन साक्षात्कार देना होता था और इसके अलावा मेरिट के आधार पर भी स्टूडेंट्स का एनरोलमेंट होता था और एनरोलमेंट होने के बाद उन्हें फ्री में एजुकेशन प्रोवाइड कराई जाती थी। इसके अलावा उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी की जाती थी। आपको बता दें कि इस यूनिवर्सिटी में भारत के अलग-अलग राज्यों के अलावा कई देशों से स्टूडेंट्स स्टडी के लिए आते थे।
FAQs
नालंदा में पुस्तकालय का नाम रत्नसागर, रत्नोधि और रत्नरंजक था। ये सभी पुस्तकालय ‘धर्मगंज’ नामक एक परिसर में स्थित थे और यह एक इमारत थी जिसमें 90 लाख किताबें रखी जा सकती थीं।
नालंदा विश्वविद्यालय पुस्तकालय भवन में 3 बहुमंजिला इमारतें हैं। कुछ इमारतें नौ मंजिल ऊंची थीं।
नालंदा विश्वविद्यालय के कुछ हर्षवर्धन, नागार्जुन, वसुबंधु आदि छात्र हैं। इनमें से हर्षवर्धन कन्नौज साम्राज्य के सम्राट थे। बाद में बंगाल के गौड़ राजवंश द्वारा हमला किए जाने के बाद उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण किया।
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